सवाल निजता की सुरक्षा का है:बदनामी भले हो, मगर आधार का बचाव तो तरीके से हो

खरी-खरी            Jan 12, 2018


संजय कुमार सिंह।
आधार की गोपनीयता के सवाल पर ट्रिब्यून की खबर को बिल्कुल अलग मोड़ दिया गया है। ट्रिब्यून की खबर यह थी कि कुछ अनधिकृत लोग आधार पोर्टल को ऐक्सेस करने के लिए यूजर आईडी और पासवर्ड बेच रहे हैं। यही नहीं, 300 रुपए अतिरिक्त लेकर आपके कंप्यूटर में सॉफ्टवेयर लोड कर दे रहे हैं और आप किसी का भी (संभवतः) या बहुत सारे लोगों का कार्ड प्रिंट (मतलब उसका दुरुपयोग) कर सकते हैं।

इसमें कार्ड की गोपनीयता से ज्यादा महत्वपूर्ण है यह अधिकार बेचना और खरीदना। कौन लोग यूजरआईडी बेच रहे हैं और क्यों? अगर आधार पोर्टल के लिए 500 रुपए में यूजर आईडी खरीदा जा सकता है और 800 रुपए में ही आप सैकड़ों लोगों के कार्ड और तस्वीरें देखने, पढ़ने, जानने और उन्हें प्रिंट करने का अधिकार पा सकते हैं जो आधार डाटा कैसे गोपनीय है? और यह पूछने का क्या मतलब है कि रिपोर्टर ने क्या देखा और क्या नहीं देखा? इसी तरह, इस दावे का क्या मतलब है कि आंकड़े सुरक्षित हैं।

एक व्यक्ति के रूप में मेरी आधार सूचना का यही मतलब है कि वह मेरे पास है और अगर उसकी फोटोकॉपी किसी के पास है तो वह गुप्त नहीं है। जैसा कि अधिकृत तौर पर भी कहा गया है, आधार कार्ड और उसकी फोटो कॉपी तो कई जगह देना ही है फिर वह कहां गोपनीय है। बिल्कुल सही बात है। पर सरकार ने हमारे ये विवरण हमसे लिए हैं, इकट्ठा किए हैं, अपने पास रखे हैं। बांटने, लुटाने या बेचने के लिए नहीं। हम जहां आधार दें वहां हमने सही आधार दिया है कि नहीं उसे मिलाने के लिए।

इसलिए इसे सुरक्षित रखना उसका काम है उसकी जिम्मेदारी है। मेरी जानकारी मेरे पास सुरक्षित नहीं है – सरकारी नियमों के कारण। उसके उपयोग की बाध्यता के कारण। पर सरकार यह कहकर नहीं बच सकती है कि जो चोरी गया वह गोपनीय कहां था वह तो आपके बैंक में है ही। पासपोर्ट बनाने के लिए दिया ही है। यह वैसे ही है कि सरकार ने नीरा राडिया का फोन टेप किया किसी मामले की जांच के लिए और रतन टाटा से उनकी निजी बातचीत लीक होने लगी। नीरा राडिया का फोन देशहित में टेप किया गया था।

यह रिकार्डिंग सरकारी संपत्ति है और रतन टाटा तथा नीरा राडिया का निजी मामला। इसे लीक क्यों होना चाहिए? इसकी गोपनीयता क्यों नहीं सुनिश्चित होनी चाहिए और क्यों नहीं टैप करने वाले को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? लेकिन बात इसपर नहीं होती है। बात इसपर होती है कि रतन टाटा ने क्या अनैतिक (गैरकानूनी नहीं और पता नहीं वह भी सही है कि नहीं) बातें की।

यह निजता से संबंधित एक गंभीर मुद्दा है पर ऐसे ही रह गया। इस संबंध में आज के अखबारों में प्रकाशित केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का बयान भी गौरतलब है। इंडियन एक्सप्रेस में यह, “डाटा, निजता से छेड़छाड़ के मुद्दे को मत बढ़ाइए” शीर्षक से छपा है। इसी खबर में आधार के "आर्किटेक्ट" नंदन नीलकेणी का यह बयान भी है कि आधार को बदनाम करने की साजिश चल रही है।

इसपर मैं यही कहूंगा कि आधार करने को बदनाम करने की साजिश भले ही चल रही हो पर उसका बचाव कायदे से नहीं हो रहा है। अव्वल को डाटा लीक गंभीर लापरवाही है और लीक के मुद्दे को मोड़ देना और तकनीकी बना देना कोई बचाव नहीं है। यह आपलोगों की लाचारी ही बताता है। अखबार के मुताबिक केंद्र सरकार ने कहा है कि देश में हो रही खोज और नवीनताओं को निजता की आड़ में मारा नहीं जा सकता है।

इस बात पर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से असहमत होने का कोई कारण नहीं है पर नवीनता, प्रगति, विकास, खोज या विज्ञान का मतलब यह नहीं है कि इसकी आड़ में सब कुछ सार्जनिक कर दिया जाए या कुछ छुपाने की कोशिश ही न की जाए। या ताले खुल सकते हैं इसलिए ताले लगाए ही न जाएं। सुरक्षा गार्ड को मारकर धन संपदा लूटी जा सकती है इसलिए सुरक्षा गार्ड रखा ही न जाए। उपाय तो पहले भी थे जहां सुरक्षा आवश्यक होती थी, होती है, सुरक्षा की व्यवस्था की ही जाती है। इसीलिए सीसीटीवी बेडरूम और शौचालयों में नहीं लगाए जाते हैं।

मेरा कहना है कि सूचना और तकनीक अपनी जगह। क्या गोपनीय है और क्या नहीं है यह तो हम तय करेंगे और एक बार जब किसी सूचना या व्यवहार को गोपनीय मान लिया जाए तो उसकी रक्षा होनी चाहिए। ऐसी सूचना लीक होगी तो शोर मचेगा उसे आप बढ़ाना मत कहिए। आधार के मामले में ट्रिब्यून की खबर को आप भले नकारात्मक कहिए पर वह उसकी सुरक्षा में लापरवाही का जीता-जागता मिसाल है। आपके नहीं मानने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और अनुवाद कम्युनिकेशन के संस्थापक

 


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