वहां स्टेबलिशमेंट का मतलब ही है सेना

खरी-खरी            Jun 02, 2023


हेमंत कुमार झा।

इमरान खान अपने समय में दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय क्रिकेटरों में शुमार थे। पाकिस्तान में तो वे अतुलनीय थे, भारत में भी उन्हें  जितना सम्मान और प्यार हासिल हुआ वह किसी भी अन्य विदेशी खिलाड़ी को नहीं हुआ।

उन्होंने अपनी कप्तानी में अपने देश के लिए विश्व कप भी जीता और अपने रिटायरमेंट के बाद भी बतौर कप्तान, बतौर ऑल राउंडर एक किंवदंती की तरह बने रहे।

वे चाहते तो अपनी अथाह दौलत के बल पर आरामदेह और आलीशान जिंदगी जी सकते थे लेकिन, उनके भीतर बेचैनी थी।

यह बेचैनी महज प्रधानमंत्री बनने के लिए तो कतई नहीं थी, क्योंकि बकौल खुद इमरान , "पाकिस्तान में न जाने कितने प्रधानमंत्री आए और गए, किनको कितना याद करते हैं लोग, किनको कितना जानते हैं लोग, इमरान खान की शख्सियत किसी प्राइम मिनिस्टर की पोस्ट की मुंहताज नहीं।"

सियासत उनकी बेचैनियों की अभिव्यक्ति का माध्यम बनी।

हालांकि, शुरुआत में वे गिरे, लड़खड़ाए लेकिन चलते रहे। समय ऐसा भी आया कि पाकिस्तानी सेना ने, जो देश की राजनीति पर हावी रहती है, उनमें अपने लिए और मुल्क के लिए उम्मीदें देखी और परोक्ष तौर पर उनके सपोर्ट में आ खड़ी हुई। 

अपने राजनीतिक सफर में अक्सर वे कट्टरता वादी शक्तियों से भी गलबहियां करते देखे गए।

आखिर, वे पाकिस्तान जैसे पिछड़े मुल्क की सियासत के मैदान में थे जहां कई तरह की कट्टर शक्तियां राजनीति को प्रभावित करने की हैसियत रखती थीं।

  बावजूद इन सबके, ऑक्सफोर्ड में पढ़े इमरान अपने मुल्क के लिए एक बेहतर सपना देखते थे।

एक दिन वे पाकिस्तान के प्राइम मिनिस्टर बन गए। लोगों ने उन्हें सेना की कठपुतली कहा, लेकिन सच यह था कि वे प्रधानमंत्री थे।

      जैसा कि इमरान का व्यक्तित्व है, जिन महत्वाकांक्षाओं के साथ वे राजनीति में आए थे, वे महज कठपुलती बने नहीं रह सकते थे।

     अंततः सेना के बड़े अधिकारियों से उनके मतभेद सतह के ऊपर आ गए और उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी।

    जिन कुछ वर्षों तक वे सत्ता में रहे, उनकी सरकार कोई प्रभावी छाप नहीं छोड़ सकी और खुद इमरान पर भी कई गंभीर आरोप लगे।

    पाकिस्तान के सत्ता तंत्र की अपनी जटिलताएं हैं। वहां "स्टेबलिशमेंट" का मतलब ही है "सेना"।

      इमरान कोई सफल प्रधानमंत्री साबित नहीं हो पाए लेकिन इतने असफल भी नहीं हुए कि मुल्क उनसे उम्मीदें छोड़ दे

   सत्ता से बेदखल होने के बाद भी वे पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय राजनेता, सबसे सम्मानित शख्सियत बने रहे और उम्मीदें कायम रहीं कि आम चुनाव होने की सूरत में उनकी सरकार फिर से बन सकती है।

  यानी, सेना के सपोर्ट के बिना भी वे सरकार बनाने की ताकत हासिल कर सकते हैं। लोगों का बहुमत उनके साथ है।

      इमरान ने बतौर क्रिकेटर इतिहास बनाया, अपार यश और प्यार हासिल किया। उन्होंने इसे मुल्क को लौटाना चाहा।

  इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी आंखों में अपने मुल्क के लोगों की बेहतरी के ख्वाब रहे, जिनके लिए वे जूझे, जूझ रहे हैं।

   पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार कोई राजनेता सेना के लिए इतनी बड़ी चुनौती बन कर सामने आया है। खुद सेना के भीतर भी इमरान की लोकप्रियता के चर्चे हो रहे हैं और कहा जा रहा है कि सेना प्रतिष्ठान उन अधिकारियों पर सख्त नजर रख रहा है जो इमरान के शुभचिंतक हैं, समर्थक हैं।

   इमरान वर्सेज सेना की लड़ाई पाकिस्तान में अपने चरम पर है। डर से कितने नेता इमरान का साथ छोड़ रहे हैं। लेकिन, जनता में इमरान छाए हैं। चुनाव हों तो इमरान को सत्ता में आने से रोका नहीं जा सकता। चाहे सेना कुछ भी कर ले।

  इसलिए, साजिश की जा रही है कि इमरान खान चुनावों में भाग ही न ले पाएं।

   संभव है, विपक्षियों की और सेना की ये साजिशें सफल हो जाएं। संभव है, इमरान राजनीति की मुख्य धारा से फिलहाल बाहर कर दिए जाएं।

  लेकिन, क्रिकेट के मैदान पर कठिन प्रतिद्वंद्वी इमरान इस मैदान पर भी जिस जीवट के साथ सेना और विरोधी राजनीतिज्ञों का सामना कर रहे हैं यह सारी दुनिया देख रही है।

    इमरान को देश ने बहुत कुछ दिया, इमरान ने भी अपना जीवन देश को दे दिया।

    अपने देश के लिए इमरान खान जो थे, उससे ज्यादा क्या हो सकता है? तब भी, उन्होंने अपना जीवन इन संघर्षों के हवाले कर दिया।

     वर्तमान राजनीतिक संकट में इमरान का चाहे जो हश्र हो, उन्होंने इतिहास तो रच ही दिया है। अभी उनकी उम्र सत्तर के करीब है। वे कुछ वर्ष और लड़ सकते हैं, जीत सकते हैं, हार सकते हैं।

उनकी हर जीत, उनकी हर हार इतिहास के निशान छोड़ती जाएंगी।

      सेलिब्रिटी के नैतिक दायित्वों में यह बिल्कुल जरूरी नहीं कि वह राजनीति में ही उतर जाए। लोगों की बेहतरी के लिए काम करने के और भी रास्ते हैं।  इमरान ने राजनीति को चुना, मोहम्मद अली ने स्थापित पूर्वाग्रहों के विरुद्ध अपनी नैतिक शक्ति के साथ आवाज उठाई। कई गरीब देशों के सेलिब्रिटी खिलाड़ियों ने अपने लोगों से जुड़े सवालों से जूझने का जज्बा दिखाया।

    अपने देश में ऐसे उदाहरणों की कमी है। खास कर, वर्त्तमान दौर में, जब "न्यू इंडिया" की कृत्रिम चकाचौंध में स्मार्ट टीवी और स्मार्ट मोबाइल की चमकती स्क्रीन पर सितारे सफलता और समृद्धि के नए मानक गढ़ रहे हैं, जन सापेक्ष सेलेब्रिटी का अकाल सा दिखता है।

   ठीक है, वे जनता से जुड़े सवालों को ले कर अपना वक्त बर्बाद नहीं करें, अपना कमाएं, खाएं और अपनी सफलता और लोकप्रियता का आनंद लें।

     लेकिन, ऐसा भी क्या कि करोड़ों लोगों की दीवानगी का सिला उन्हें ऑन लाइन जुआ खेलने के लिए प्रेरित करने वाले विज्ञापनों के साथ दिया जाए, फालतू किस्म के अस्वास्थ्यकर प्रोडक्ट्स का प्रचार कर दिया जाए।

     कोटि कोटि निर्धनों, अर्द्धशिक्षितों, निरीहों के नायक बन कर आसमान की ऊंचाइयां छूने वालों की जमात हमारे देश में घटिया प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग के सिवा और क्या कर रही है? यहां तक कि जुआ और शराब की भी मार्केटिंग, गुटखा तक की मार्केटिंग।

    इधर, लीग क्रिकेट की चकाचौंध में कब हमारे लीजेंड क्रिकेटर्स ऑन लाइन जुआ के प्रचार में उतर कर लोगों को क्रिकेट प्रेमी से जुआ एडिक्ट बनाने की होड़ में लग गए, पता भी नहीं चला।

  फ्रॉड किस्म का प्रचार, फ्रॉड न्यूज आदि के सहारे अरबों रुपए भारतीय नौजवानों से लूट लिए गए।

          लोगों के दिलों पर राज करने वाले ये सुपर सेलिब्रिटी खिलाड़ी गण इतना आत्म बल नहीं संजो सके कि महिला पहलवानों के साथ हो रहे घोर अन्याय के खिलाफ कुछ फुसफुसा भी सकें, आवाज उठाना तो दूर की बात है।

      बंगाल टाइगर सौरव गांगुली ने इस से जुड़े सवाल पर ठंडे स्वरों में कहा कि वे मामले को ठीक से नहीं जानते, इसलिए कुछ कह नहीं सकते, अनिल कुंबले ने सतर्कता के साथ कहा कि यह सब देख कर उन्हें 'दुःख' है, नीरज चोपड़ा ने कुछ अधिक वजनदार शब्द का इस्तेमाल किया कि यह सब देख कर वे 'निराश' हैं।

   एकाध और सेलिब्रिटी ने पूछने पर बच बचा कर कुछ इसी अंदाज में बयान दिए और अपना दामन इस विवाद से बचा ले गए।

 कोई बड़ा सेलिब्रिटी तो सामने आता जो कहता खुल कर कि देश की शान बढ़ाने वाली इन लड़कियों को न्याय मिलना ही चाहिए।

सब चुप हैं, अपनी-अपनी कमाई में लगे हुए। कोई कोल्ड ड्रिंक बेच रहा, कोई कार से लेकर उसकी टायर तक, कोई चिप्स तो कोई कुरकुरे।

 देश की राजनीति जिस तरह आम जन के हितों के विरुद्ध खड़ी है, जिस तरह निर्धन और निरीह लोग जीवन की दुश्वारियों से जूझ रहे हैं, किसी सेलिब्रिटी का इन सबसे कोई कंसर्न नजर नहीं आता।

 पाकिस्तान का 'स्टेबलिशमेंट' इमरान खान को राजनीतिक रूप से खत्म करने पर आमादा है। क्या होगा, वक्त बताएगा।  लेकिन, वे उदाहरण हैं कि सेलिब्रिटी ऐसे भी होते हैं जो अपने दौर के सवालों से जूझते हैं, अपने लोगों की बेहतरी के ख्वाब देखते हैं, उनके लिए लड़ते हैं और इसमें अपना पूरा जीवन लगा देते हैं। तभी तो, आज भी इमरान पाकिस्तान के सबसे बड़े नायक हैं।

 



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