ममता मल्हार।
कायदे से धार्मिक स्थलों पर वीआईपी और पर्यटन कल्चर खत्म होना चाहिए था।
पर अब हुआ उल्टा वीआईपी कल्चर बढ़ा और पर्यटन कल्चर भी।
जो घूमने-घामने धार्मिक स्थलों पर जाते हैं वे यह भी अच्छे से जानते हैं कि वीआईपी क्यू भी कम लंबी नहीं होगी। सो रस्म अदायगी कर घूमने निकल जाते हैं।
गर्भगृह के पंडितों का बर्ताव देखिये आम इंसानों के साथ धक्कमुक्की और वीआईपीज को ईश्वर के समक्ष ही बैठाकर उनकी चाकरी में लग जाते हैं।
महाकाल पिछले कुछ सालों से एक खास वर्ग के हो गए हैं। चुनाव करीब हैं सो हर दूसरे-तीसरे दिन नेताओं का जमावड़ा, बैरिकेडिंग, आम इंसान के लिये दर्शन दुर्लभ और इनके लिये पूरी व्यवस्था बिछ जाती है।
भक्ति ईश्वरीय आराधना से ज्यादा दिखावा बन चुकी है। पूजा पाठ गुप्त और व्यक्तिगत होते हैं।
मगर अब लगता ये है कि वीआईपी दर्शन पूजा करने वाले जैसे फ़ोटो वीडियो डालकर पूरी जनता को चिढ़ाते प्रतीत होते हैं कि देखो हम सक्षम हैं, तुम पुजारियों पुलिस के धक्के खाओ या थप्पड़।
एक वीडियो में महाकाल की सवारी के दौरान लोगों से मारपीट हो रही है, एक बुजुर्ग की पीछे से गर्दन पकड़ी जा रही है।
यह आपके आधुनिक धार्मिक प्रोटोकॉल के नजरिये से धर्म है तो इससे बड़ा कोई अधर्म नहीं है।
महाकाल ही समझें इस कलयुग को। ऑनलाइन दर्शन कर लो।।घर में पूजन कर लो बेहतर है। क्योंकि यहां कोई कुछ जिम्मेदारी नहीं लेता, सिवाय वोट के
Comments