ओम प्रकाश।
सितंबर 2021 में मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (MCC) ने जेंडर न्यूट्रल करने का फैसला किया. क्रिकेट नियमों को बनाने और उनमें सुधार करने वाली संस्था एमसीसी नै बैट्समैन को बैटर, थर्डमैन को थर्ड और नाइटवाचमैन को नाइटवाच शब्दों में बदल दिया.
एमसीसी ने बैट्समैन, थर्डमैन और नाइटवाचमैन शब्दों को रूल बुक से हटा दिया. इससे पहले जब महिलाओं के मैच होते थे तो उन्हें बैट्समैन कहा जाता था.
इसी तरह उनके लिए थर्डमैन और नाइटवाचमैन शब्दों का प्रयोग किया जाता था. यह बात महिला क्रिकेटरों को नागवार गुजरती थी. जब इन शब्दों में बदलाव किया गया तो महिला क्रिकेट जगत में जोरदार स्वागत हुआ.
इन शब्दों में बदलाव हुए अब दो साल बीत चुके हैं. आज भी कई कॉमेंटेटर बैट्समैन शब्द का धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं.
इसी तरह थर्डमैन भी बोलते रहते हैं. यह मैं कई पूर्व क्रिकेट कॉमेंटेटर्स की बात कर रहा हूं. इतना ही नहीं कई क्रिकेटर एक्स (ट्वीट) करते हुए भी बैट्समैन लिखते हैं. बीसीसीआई अधिकारी भी बैट्समैन लिख देते हैं.
मुझे याद है कुछ महीने पहले राजीव शुक्ला ने बैट्समैन शब्द का इस्तेमाल करते हुए ट्वीट किया था. मैं यह बात सिर्फ भारत के संदर्भ में नहीं कर रहा हूं.
विदेशी क्रिकेटर भी ट्वीट करते, बात करते या कॉमेंट्री के दौरान बैट्समैन और थर्डमैन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. जिसे यकीन न हो वह ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका के बीच मैच के दौरान हिंदी या अंग्रेजी कॉमेंटेटर्स की कॉमेंट्री ध्यानपूर्वक सुने गलती पकड़ में आ जाएगी.
चाहे हिंदी के स्पोर्ट्स एडिटर हों या अंग्रेजी के ये लोग अभी तक बैट्समैन,
थर्डमैन शब्दों से बाहर नहीं निकल पाए हैं. इस मामले में यूट्यूबर्स की बात ही क्या की जाए?
जिन्हें क्रिकेट की पूरी टर्मिनोलॉजी नहीं पता है वे क्रिकेट ज्ञान बांट रहे हैं. 15-20 साल से क्रिकेट देखने/सुनने वाले ऐसा ज्ञान देते हैं जैसे वही सब जानते हैं.
ऐसे लोगों से मैं कहना चाहता हूं जब 2 साल में तीन शब्द नहीं सीख पाए तो और हम क्या उम्मीद करें?
मैं ऐसे एकाध लोगों को जानता हूं जिन्होंने 30-35 साल देश-विदेश जाकर कॉमेंट्री की लेकिन यूट्यूबर के तौर पर पिछड़ गए.
उनकी कमी यह थी कि वे टॉप मोस्ट क्रिकेट परसनैलिटी को अपने चैनल पर बुलाते थे.
वे ऐसे लोग होते थे जिन्होंने क्रिकेट पढ़ते-लिखते और टीम इंडिया के साथ मैच कवर करते जिंदगी खपा दी. लेकिन उन लोगों की बातें आज की पीढ़ी समझ नहीं पाई.
इनकी असफलता यह रही कि ये लोग आंख बंदकर किसी एक क्रिकेटर या टीम की तारीफ नहीं कर पाए. या यूं कहें खिलाड़ी या टीम भले ही खराब प्रदर्शन करे लेकिन ये लोग उसके प्रति भक्ति नहीं दिखा पाए.
आज का यूजर ज्ञान नहीं हो-हल्ला पसंद करता है. अधिकतर यूट्यूबर्स को भारत-पाकिस्तान करने में मजा आता है. यूजर्स भी यही चाहते हैं.
तुलनात्मक और प्रासंगिक बात करेंगे तो व्यूज नहीं आएंगे. ज्यादा ज्ञान देंगे व्यूअर हवा नहीं देंगे.
अधजल गगरी सब कुछ है. खैर! मेरे लिए वे यूट्यूबर अच्छे हैं जो काम की बात करते हैं. मैं इन यूट्यूबर्स की अपेक्षा पूर्व क्रिकेटरों को यूट्यूब पर देखना और सुनना पसंद करता हूं.
वे चाहे भारत, पाकिस्तान या कहीं के भी हों. उनके ज्ञान और तर्क आगे ये यूट्यूब की दुकान चलाने वाले कहीं नहीं टिकते.
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