कीर्ति राणा।
यूसीसी लागू करने को आतुर केंद्र सरकार ने आदिवासी समाज को पहले से विश्वास में ले लिया होता तो इस समाज में सरकार के खिलाफ अविश्वास की लहर नहीं फैलती।
जिन पांच राज्यों मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में साल के अंत में चुनाव होना है उनमें आदिवासी मतदाताओं की भी बहुलता है।
शायद यही कारण रहा कि हाल ही में सम्पन्न हुई संसदीय कमेटी की बैठक में कमेटी के अध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने सुझाव दिया कि यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) का आदिवासी समाज पर असर न पड़े, इसका ख्याल रखा जाना चाहिए।
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी ने गत माह भोपाल की सभा में समान नागरिक संहिता पर बयान देकर एजेंडा सेट करने की कोशिश की है।
समान नागरिक संहिता कानून बन जाने पर सभी पंथ के लोगों के लिये विवाह, तलाक, विरासत व बच्चा गोद लेने आदि में समान रूप से लागू हो जाएगा। इसके खिलाफ मुस्लिम नेताओं ने तो आवाज उठाना शुरु कर दी है,आदिवासी समाज में भी बैचेनी है।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय की संस्था ‘छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज (सीएसएएस) के अध्यक्ष-पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने भी कहा है केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे उन जनजातियों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा जिनके पास अपने समाज पर शासन करने के लिए अपने स्वयं के पारंपरिक नियम हैं।
उनके संगठन को समान नागरिक संहिता पर पूरी तरह से आपत्ति नहीं है, लेकिन केंद्र को इसे लाने से पहले सभी को विश्वास में लेना चाहिए।
लोकसभा में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटें हैं, जिसमें से करीब 28 पर बीजेपी को जीत मिली थी।गठबंधन पॉलिटिक्स में इस बार इन सीटों का महत्व काफी बढ़ गया है।
यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) लागू किए जाने की स्थिति में बहु पत्नी विवाह मामले में खासकर मुस्लिम और आदिवासी ही प्रभावित होना है।
सरकार को यदि एक वर्ग की नाराजी से फर्क नहीं पड़ता तो दूसरे वर्ग की नाराजी का वह खुद सामना नहीं करना चाहती।
लिहाजा अब केंद्र से लेकर चुनावी राज्यों में भाजपा नेताओं को संदेश दिया जा रहा है कि इस बात को बहु प्रचारित करें कि यूसीसी से आदिवासी समाज को मुक्त रखने पर विचार चल रहा है।
मध्य प्रदेश में अपने कार्यकर्ताओं को मैदान में झोंकने का खाका तैयार कर चुकी भाजपा अब 230 विधानसभा क्षेत्रों में अगले महीने से जो विधानसभा सम्मेलन करने वाली है, उसमें शामिल होने वाले नेता आदिवासी बहुल क्षेत्रों में यह बात खासतौर से समझाएंगे कि यूनिफार्म सिविल कोड लागू होने से आदिवासी समाज का कोई नुकसान नहीं होगा और उनके समाज की प्रथा, परंपरा भी बाधित नहीं होगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और हिंदुस्तान मेल के संपादक हैं।
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