हेमंत कुमार झा।
प्रधानमंत्री ने कल कहा,"मेरा सपना है कि हर किसान के पास ड्रोन हो।"
आज खबर आई कि गौतम अडाणी ने ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया है।
यह भी संभव है कि अडाणी ने पहले ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में कदम बढ़ाने का फैसला लिया हो और उसके बाद प्रधानमंत्री ने यह सपना देखा हो।
जो भी हो, इस अद्भुत संयोग पर अंग्रेजी की एक कहावत याद आती है, "ग्रेट माइंड्स थिंक एलाइक"। यानी महापुरुष एक जैसे सोचते हैं।
आधुनिक कृषि में ड्रोन की उपयोगिता फसलों की निगरानी और कई तरह के नुकसान से बचाने में है।
ड्रोन बनाने वाली बेंगलुरु की एक कंपनी जेनरल एयरोनॉटिक्स में अडाणी ने 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदने की डील की है।
कृषि के अलावा डिफेंस सहित कई अन्य क्षेत्रों में ड्रोन का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है तो इसके निर्माण में पूंजी लगाना भविष्य में अकूत लाभ की गारंटी है।
ऊपर से, अगर प्रधानमंत्री के सपनों का साथ हो तो फिर कहना ही क्या है।
केंद्र सरकार देश में ड्रोन सेक्टर के विकास पर खासा जोर दे रही है और इसके लिये एक ड्रोन नीति भी तैयार की गई है।
अडाणी की योजनाओं और प्रधानमंत्री के सपनों का मेल वाकई अद्भुत है।
प्रधानमंत्री ने आयुष्मान भारत का सपना देखा, सरकारी खर्च पर 50 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य बीमा की घोषणा की, इधर कोरोना संकट के बाद मध्य आय वर्ग के लोगों में भी स्वास्थ्य बीमा करवाने की होड़ लगी, उधर अडाणी ने हेल्थकेयर के क्षेत्र में भी बड़े निवेश का फैसला ले लिया।
इसी 17 मई को 'अडाणी हेल्थ वेंचर्स लिमिटेड' नामक कंपनी की स्थापना हुई है।
भारत में चिकित्सा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के लिये अथाह अवसर हैं और सरकार की मंशा भी है कि लोग खांसी जुकाम होने पर भी निजी अस्पतालों की ओर ही रुख करें तो बेहतर है। अब, इस अवसर का लाभ अडाणी भी उठाना चाहें तो किसी को क्या दिक्कत?
एक सरकारी फार्मा कंपनी एच एल एल हेल्थकेयर को सरकार बेचने वाली है और जाहिर है, प्रधानमंत्री के सपनों के सहयात्री अडाणी इस कंपनी को खरीदने की होड़ में भी आगे हैं।
प्रधानमंत्री का सपना है कि भारतीय रेल की आधारभूत संरचना विश्वस्तरीय हो, देश के महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशनों की चमक-दमक से लोगों की आंखें चौंधिया जाएं।
अडाणी इस सपने को मुकाम तक पहुंचाने में जुट गए, उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई के पैसों को रेलवे प्लेटफार्म्स आदि खरीदने में झोंक दिया। आगे और झोंकेंगे।
प्रधानमंत्री का सपना है कि देश के बड़े बंदरगाह और हवाई अड्डे आधुनिक तकनीकों और सुविधाओं से लैस हों। उनके सपनों को पूरा करने के लिये अडाणी एक-एक करके न जाने कितने बंदरगाह और एयरपोर्ट खरीद चुके।
इसमें कोई संदेह नहीं कि आगे और खरीदेंगे, खरीदते जाएंगे।
बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि नरेंद्र मोदी के सपनों और अडाणी के व्यावसायिक प्रयासों का साथ दो दशक पुराना है, जब 2002 में मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे।
रिपोर्ट के मुताबिक 2002 में गौतम अडाणी की कुल संपत्ति 76 करोड़ डॉलर थी। 2014 में जब मोदी जी ने गुजरात छोड़ा तो इन 12 वर्षों में अडाणी की कुल सम्पत्ति एक हजार करोड़ डॉलर से अधिक हो चुकी थी।
यानी उन 12 वर्षों में उनकी संपत्ति में 13 गुणा से भी अधिक इज़ाफ़ा हुआ।
उन 12 वर्षों में मोदी जी गुजरात के लिये सपने देखा करते थे। फिर, 2014 में वे प्रधानमंत्री बन गए और तब देश के लिये सपने देखने लगे।
अब, मोदी जी के सपने बड़े थे तो अडाणी जी के दांव भी बड़े हुए।
बीबीसी की उसी रिपोर्ट में ब्लूमबर्ग बिलियेनर्स इंडेक्स के हवाले से बताया गया है कि फरवरी, 2022 में गौतम अडाणी की कुल संपत्ति 8850 करोड़ डॉलर हो गई थी। उस दिन वे मुकेश अंबानी को भी पछाड़ कर देश के सबसे अमीर बन गए थे।
यानी, 2014 से 2022 तक के 8 वर्षों के मोदी राज में अडाणी की कुल संपत्ति में 9 गुने की बढ़ोतरी हुई।
अब जब मोदी जी के सपने बड़े थे तो उन सपनों के सहयात्री अडाणी जी के लाभ भी बड़े ही होने थे।
आजकल अंबानी और अडाणी में होड़ लगी रहती है। किसी दिन वे देश के सबसे अमीर घोषित होते हैं तो किसी दिन ये घोषित होते हैं।
हालांकि, प्रधानमंत्री ने सपना तो यह भी देखा था कि 2022 तक किसानों की आमदनी भी कम से कम दोगुनी हो जाए। लेकिन, किसानों ने उनके सपनों के साथ घोर अन्याय किया।
जहां अडाणी मोदी जी के 8 वर्षों के राज में नौ गुनी छलांग लगा गए, किसान तो महज़ सवा गुनी छलांग में ही हांफने लगे।
उल्टे, कुछ दिलजले विश्लेषक तो बता रहे हैं कि भयानक मुद्रा स्फीति और बेलगाम महंगाई के कारण आम किसान पहले से और अधिक गरीब ही हो गए हैं।
उधर, नौजवानों की बेरोजगारी हालिया इतिहास के उच्चतम स्तरों पर पहुंच गई तो उनकी आमदनी की बात ही क्या करनी। जब आमदनी है ही नहीं तो उसमें बढ़ोतरी कैसी?
अपने बाप की रोटी तोड़ते वर्षों से बैंक, एसएससी, रेलवे आदि की तैयारी करते वैकेंसी की ओर टकटकी लगाए रहते हैं और वैकेंसी है कि रेगिस्तान के बादलों की तरह छलती ही जा रही है।
मोदी जी का सपना था कि हर वर्ष नौजवानों को दो करोड़ नौकरियां देंगे। लेकिन, उनके सपनों को सरकारी विभागों और प्राइवेट सेक्टर ने मिल कर भारी धोखा दिया।
सरकारी विभाग वैकेंसी निकालने की जगह पोस्ट ही खत्म करने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं।
आज की ही खबर है कि रेलवे के बाबू लोग भरी दोपहरी की तपती धूप में मुर्दाबाद—मुर्दाबाद करते पसीने से तरबतर हो रहे थे, क्योंकि रेलवे ने नॉन सेफ्टी संवर्ग के 72 हजार पदों को खत्म करने का निर्णय लिया है।
जब पद ही खत्म तो वैकेंसी कैसी? जब वैकेंसी ही नहीं तो बहाली कैसी?
ये तो अच्छा है कि दिल्ली के कुतुब मीनार से लेकर काशी की मस्जिद तक की खुदाई के लिये नारे लगाने को नौजवानों की अच्छी खासी वैकेंसी आई है।
उधर, मध्य प्रदेश से लेकर कर्नाटक तक में भी इसी टाइप की वैकेंसियों की बहार है।
जो नौजवान इतिहास की कब्रों को खोदने और खुदवाने में दिलचस्पी रखते हैं उन्हें प्रेरणा देने के लिये अक्षय कुमार की नई फिल्म पृथ्वीराज अगले सप्ताह आ ही रही है जिसके ट्रेलर के अंत में बड़े-बड़े हर्फ़ों में लिखा दिखता है, धर्म के लिए जिया हूँ, धर्म के लिये मरूंगा।
भले ही इतिहास के प्रोफेसर और छात्र पृथ्वीराज के धर्म के लिये जीने और धर्म के लिये मरने की बात सुन कर माथा पीट लें।
व्हाट्सएप युनिवर्सिटी से इतिहास को जानने वाले नौजवानों के लिये तो यह प्रेरक बात हो ही सकती है।
वैसे, मोदी जी 2014 से ही सपना देख रहे हैं कि देश के नौजवान 'स्किल्ड' हों ताकि देश को 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने में अपनी महती भूमिका निभा सकें।
अब, इन नौजवानों को स्किल्ड बनाने के लिये बड़े ही तामझाम से शुरू होने वाले 'कौशल विकास केंद्र' ही सफेद हाथी साबित होने लगे तो क्या किया जा सकता है।
बहरहाल, बड़े सपने देखने के लिये मोदी जी का अभिनंदन तो बनता ही है, और, उनसे भी अधिक, अडाणी-अंबानी का अभिनंदन बनता है जिन्होंने बताया कि दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि दर किसे कहते हैं।
हमलोग तो बचपन से सिर्फ इस मुहावरे को सुनते ही आ रहे थे, इन कारपोरेट प्रभुओं ने इन मुहावरों को साक्षात चरितार्थ करके भी दिखा दिया। हमारी पीढ़ी धन्य है।
लेखक पटना यूनिवर्सिटी में एसाशिएट प्रोफेसर हैं।
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