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सर्वे साजिश है तो मासूम के साथ हुई दरिंदगी का जवाब देने कोई सामने क्यों नहीं आता?

खरी-खरी            Jun 29, 2018


तरूण व्यास।

हे Shivraj Singh Chouhan तुम्हारे चरणों में...
दूसरे देशों के सर्वे बताते हैं कि भारत ऐसा देश हैं जहां महिलाओं की हालत सबसे बदतर है तो यहां के तथाकथित "देशभक्तों" के पिछवाड़े सुलग जाते हैं। इसके बाद वो सभी देशभक्त तमाम मुस्लिम देशों के ऐसे पिक्चर्स जिसमें महिलाओं पर ज़ुल्म किए जा रहे हैं वो अपनी फ़ेसबुक वॉल पर पोस्ट करना शुरू कर देते हैं।

अगर कोई ये कहता है कि किसी सर्वे में कही गईं बातें विश्व पटल पर भारत को बदनाम करने की साज़िश है, तो सवाल है कि मंदसौर में सात साल की मासूम बच्ची के साथ हुई दरिंदगी का जवाब देने कोई सामने क्यों नहीं आता।

मंदसौर कांड के आरोपी इरफ़ान के लिए कौनसी सज़ा मुकर्रर हो ये बताना इंसानों की समझ के बाहर है। फांसी! फांसी! फांसी! की आवाज़ें तो हर जगह से आ रही हैं। मग़र फांसी क्या उस हरामज़ादे के लिए पर्याप्त है?

मंदसौर कांड के आरोपी दरिंदे इरफ़ान के लिए या फ़िर भविष्य में भी कोई इस तरह का अपराधी हमारे आपके सामने आता है तो समाज को भी हैवान बन जाना जरूरी है। जिससे इस तरह के जघन्य अपराध का विचार आने भर से आदमी की हड्डियां सिहर उठें।

ऐसे में कानून,संविधान, नीति, न्याय और मानव अधिकारों की बातें करने कोई आपके हमारे सामने आए तो पहले इनके घुटनों पर वार किए जाना भी बेहद ज़रूरी है।

बेशक आप ये कह सकते हैं कि मेरी ये पोस्ट जनता को कानून हाथ में लेने के लिए उकसाने का काम करेगी। तो मेरा जवाब है इस देश की जनता को ऐसे अपराधियों के ख़िलाफ़ कानूनी न्याय की बाट जोहने की ज़रूरत ही क्या है।

पुलिस थानों और न्यायलय की लफ़्फ़ाज़ियां को कौन नहीं जानता इस मुल्क में,जो इस तरह के जघन्य अपराधियों को न्याय प्रक्रियाओं से गुजरने का मौका दिया जाए।

कानून और राजनीति तो वैसे भी हमारे देश में ख़ुद से ख़ुद के विकास की चीज़ें हैं।जिसकी चपेट में न्याय की चौखटें भी आ चुकी हैं। हिजड़ों की रहनुमाई में मिल रहे ज़ख्मों को भर जाने का इंतज़ार करने से बेहतर हम ख़ुद अपने हक़ीम बन अपना मुस्तक़बिल बचा लें।

बेटियों का मामा बनते फिरने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ वाली योजना आपकी सरकार का प्रदेश की जनता के साथ किया जा रहा एक बहुत बड़ा फ़रेब है।

यहां बेटियां ना तो पढ़ पा रही हैं ना बढ़ पा रही हैं। मध्यप्रदेश में बेटियां को मारा जा रहा है उनके ज़िस्म को गिद्धों की तरह नोचा जा रहा है।

हाल ही का मामला इंदौर का भी है। मेडिकल स्टूडेंट डॉक्टर स्मृति लाहरपुरे शिक्षा माफ़िया सुरेंद्र भदौरिया की मनमानी फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ते—लड़ते आत्महत्या कर लेती है।

पूरा देश का मीडिया उस ख़बर को सर पर उठाए उठाए घूम रहा है। लड़की को आत्महत्या करे तीसरा सप्ताह गुज़रने को आ गया है लेकिन दोषियों के ख़िलाफ़ एफआईआर तक दर्ज़ नहीं की जा सकी है! इस प्रदेश की जनता स्वीकार चुकी है शिवराज जी, बेटियां हैं तो मौत है,बलात्कार है, आत्महत्या है अगर नहीं है तो बस न्याय नहीं है।

शिवराज जी मध्यप्रदेश के इस गाने को बदल दीजिए
"सुख का दाता सब का साथी शुभ का यह संदेश है,माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है"

दरअसल मध्यप्रदेश की मौजूदा हालत कुछ यों है।

"दुःख का दाता,अपराधों का साथी,अशुभों का यह संदेश है
उजड़ती कोख़, बलात्कारियों को आश्रय, शवराज का मध्यप्रदेश है"।

मध्यप्रदेश की जनता के साथ मंदसौर घटता रहेगा अगर वो ख़ुद नहीं जागी। शहरों को स्मार्ट बनाने की दौड़ में देश प्रदेश को ऐसा रोज़गार थमा दिया गया कि कहीं ऐसे लोग दिखते ही नहीं जो मूल समस्याओं पर बात करते नज़र आए। ऐसे में जब कोई दूसरा देश हमें हमारी बहन बेटियों की हालत बताता है तो हम अचानक से देशभक्त बन जाते हैं लेकिन मंदसौर कांड और आत्महत्या करती अपनी बेटियों के बारे में नहीं सोचते।

फेसबुक वॉल से।

 


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