Breaking News

खरीदने वाला निकला ही खरीददारी करने है, बिकने वालों का ईमान क्या

खरी-खरी            Jul 01, 2022


ममता मल्हार।

खरीदने वाला निकला ही बाजार में खरीददारी करने है
इंसानों की मंडी में खुद को बेचने वालों का ईमान क्या?

अफसोस इन्हें जनता चुनती है।
देश में डेमोक्रेसी है
पर अब तो डेमोक्रेसी की ऐसी-तैसी है।

आपको शब्द बुरे लग रहे होंगे,कुछ लोग कहेंगे शब्दों की मर्यादा रखिये।

पर मंटो के शब्दों में कहें तो जो करने में शर्म नहीं आती उसे बयान करने में समाज की मर्यादा का चीरहरण होने लगता है क्यों?

कभी ध्यान दिया है पिछले कुछ दशकों  में आम-आदमी पार्टी के अलावा पूरे देश में स्थापित दलों के अलावा कोई और दल पनप ही नहीं पाया।
यही 5-6 दल मिलकर गोल-पटक करते रहते हैं इधर से उधर, उधर से इधर।

वंशवाद का विरोध करेंगे मगर इन्हीं की औलादें रिश्तेदार सब जगह काबिज। हर दल का ध्यान दीजिये हर दल का यही हाल है।

कभी निर्दलीय सत्तापक्ष और विपक्ष के गले की फांस होते थे। पर लगता है स्थायी कमाई और रोजगार का मूलमंत्र अब सबको पता है।

जनता के सामने मनमोहिनी बातें करो, जीतो और बिक जाओ।

शादी का झांसा देकर रेप करना इसी को कहते हैं क्या?

 

दरअसल जनता अपनी औकात, बकत, हैसियत आजतक समझी ही नहीं है।

वे सेवक हैं जिनको तुम मालिक बनाकर उनके पैरों में लोट जाते हो।

वे जो तुम्हारे लिये करते हैं, वह उनकी ड्यूटी है और तुम्हारा हक, कोई अहसान नहीं। आज हकों को अहसान समझकर उनके पैरों में लोटने का नतीजा है कि तुम हिम्मत ही नहीं कर पा रहे हो विरोध की।

तुमको कहा जा रहा है 4 साल की नौकरी में 40 लाख लो।

संविदा नौकरी करो बगैर पेंशन, बगैर एक्सटेंशन।

मध्यप्रदेश में ही संविदा कर्मचारियों में त्राहि-त्राहि मची है, कई अतिथि शिक्षक हक की लड़ाई लड़ते काल-कवलित हो गए।

अभी चुनावी माहौल में जो सरकार किसी को चांटा पड़ने पर भी मुआवजे का एलान कर दे रही है, वह इनकी तरफ देखने तैयार नहीं है।

2019 की पीएससी का हाल पता कर लो, सिलेक्टेड लोग भी बाहर बैठे हैं जानी।

ऊपर वालों के लिये सबकुछ सहज-सुलभ उपलब्ध

तुम खुश होते हो बेच-खरीदकर  सरकार बनने पर।

पर तुममें हिम्मत नहीं है यह पूछने की बतौर कार्यकर्ता भी कि हम धूल फांक रहे हैं बेरोजगारी महंगाई बढ़ रही है जनता के लिये पैसा नहीं है तो फिर, ये विधायक खरीदने, उनको होटलों में छुपाने का पैसा कहां से आ रहा है?

जनता जो खुद के लिये तय करती है वही उसे मिलता है और वह वही सिस्टम डिजर्व करती है जिसका सपोर्ट करेगी।

पर जब हाथी पागल हो जाये खुद की औलाद को भी कुचलता जाता है तुम क्या हो?

 



इस खबर को शेयर करें


Comments