पुण्य प्रसून बाजपेयी।
जिस दौर में अरबों-खरबों लेकर फरार होने या ना चुकाने का चलन हो चुका है, उस दौर में रविवार को फिर ये खबर आ गई कि पंजाब के तरण तारण में मुख्त्यार सिंह ने 8 लाख के कर्ज तले खुदकुशी कर ली। तो मध्यप्रदेश के छतरपुर में द्रगपाल सिंह ने डेढ़ लाख के कर्ज को ना लौटा पाने के भय तले आत्महत्या कर ली।
तो संदेश साफ है नियम-कायदे सबके लिये एक सरीखे नहीं हैं। क्योंकि एक तरफ रईस कर्ज लेकर फरार हो जाता है। देश छोड़ देता है और गरीब किसान कर्ज तले खुदकुशी कर लेता है। शनिवार को महाराष्ट्र में परभणी के गणेश किशनराव। बीड के दिलीप आत्माराम और वर्धा के सुधाकर मदुजी ने भी खुदकुशी कर ली और ऐसे वक्त में प्रधानमंत्री मोदी खामोश हैं।
वित्त मंत्री अरुण जेटली खामोश हैं। जांच एजेंसी सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स हरकत में है। रिजर्व बैक सहमा हुआ है तो संयम में है। अब सार्वजनिक बैंकों की पूरी कतार ही संदेह के घेरे में है तो बैंक को लेकर हर कोई हर सवाल खड़ा कर रहा है।
जिस सीबीआई को सत्ता का तोता तक बताया गया अब उसी की जांच के आसरे ही बैंकों की साख बचाने और क्रोनी कैपिटलिज्म का खेल खुलने की उम्मीद लगायी जा रही है। पर जांच के दौर में जो उभर रहा है उसमें रईसों के पॉलिटिकल पावर के साथ नैक्सेस से बैंकों का नतमस्तक होना सामने आ रहा है।
बैंक का संचालन तक रईसों के इशारे पर उभर रहा है। बैंकों को बचाये रखने के लिये रईसो के कर्ज को बट्टा खाता में डालने की पॉलिसी उभर रही है। बैंकों के देसी-विदेशी शाखाओं के बीच तालमेल ना होना भी उभर रहा है।
यानी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की लूट ने बैंक प्रणाली का एक ऐसा सिस्टम उभारा है जिसकी परते अगर खुलती गई तो फिर राजनीति के साथ लोन लेने वाले रईसों की निकटता भी सामने आयेगी। एनपीए का गोरखधंधा और कर्ज को राइटऑफ करने वाले हालात भी सामने आयेंगे। जनता के पैसे पर निगरानी रखना और बिना निगरानी रईसों को लोन देना भी सामने आयेगा।
यानी ये ऐसे सवाल हैं जिन पर सरकार को इसलिये बोलना चाहिये क्योंकि 1991 में बाजार इक्नामी का दरवाजा जिस प्रधानमंत्री ने खोला। संयोग से उसी पीएम पर शेयर ब्रोकर हर्षद मेहता ने शपथ पत्र के जरीये घूस देने का सार्वजनिक आरोप लगाया।
याद कीजिये 16 जून 1993 को शेयर ब्रोकर हर्षद मेहता ने तत्कालीन पीएम राव को एक करोड़ की घूस देने का आरोप सार्वजनिक तौर पर लगाया। लेकिन न तो झूठा आरोप लगाने के आरोप में हर्षद मेहता को सजा हुई और न ही घूस लेने के आरोप में नरसिम्हा राव को। नतीजतन देश में भ्रष्टाचार बढ़ता चला गया।
1993 में ही वोहरा कमेटी की रिपोर्ट में लिखा भी गया कि कैसे क्रोनी कैपिटिलिज्म का खेल हो रहा है। कैसे सत्ता की करप्शन में भागेदारी है। तो पीएम को कुछ बोलना तो चाहिये। पर संकट देखिये सीबीआई हरकत में है।
पीएनबी की जिस शाखा से घोटाला हुआ उसे सील कर दिया गया है । 24 घंटे के भीतर सील हटा लिया गया, तो शक किस पर होगा? पीएनबी ने जिन 10 कर्मचारियों को सस्पेंड किया है । उनसे पूछताछ कर रही है। विशेष पूछताछ पूर्व कर्मचारी गोकुल नाथ शेट्टी से हो रही है जिसे खेल में महत्वपूर्ण मास्टमाइंड माना जा रहा है। सीएफओ विपुल अंबानी से पूछताछ हो रही है। गीताजंली समूह की 18 सहायक कंपनियों की बैलेंस शीट परखी जा रही है।
इसके अलावा सीबीआई उन 200 फर्जी कंपनियो के दस्तावेजों को परख रहा है, जिनकी जरीये लोन की रकम छुपायी जाती थी। और पूछताछ में दो विपरित तथ्य उभरे है। एक तरफ कहा जा रहा है कि एलओयू के फर्जी दस्तावेजों को अधिकारी पकड़ सकते थे। तो दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि एलओयू के दस्तावेजों के लिये स्विफ्ट सिस्टम में लाग इन के लिये अकाउट डिटेल और पासवर्ड नीरव की टीम के पास था।
यानी एक तरफ पूछताछ में ये निकल रहा है कि एलओयू के लिये सिवफ्ट सिस्टम के पासवर्ड के जरीये नीरव मोदी की टीम के लोग पीएनबी अधिकारी के तौर पर अवैध तरीके से स्विफ्ट सिस्टम में लॉग इन करते थे। सूत्रों की मानें तो आरोपियों को बदले में कमीशन मिलता था। हर एलओयू और स्विफ्ट सिस्टम के अवैध एक्सेस पर प्रतिशत तय था। यह रकम घोटाले में शामिल कर्मचारियों के बीच बंटती थी ।
पर सीबीआई के सूत्र इस बात से भी इंकार नहीं कर रहे है कि पीएनबी इसे आंतकरिक जांच की तरफ ले जाना चाहती है। इसलिये पूछताछ में कहा गया कि एएलय़ू में तरह की विसंगतियां थीं, जिन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता था। यानी बैकिंग प्रणाली के तौर तरीकों के लिहाज से समझे तो कोई आसानी से बैंकों के साथ घोखाधड़ी कर नहीं सकता है।
नीरव मोदी के मामले में हालात को परखे तो बैंकिंग सिस्टम में कोई भी खरप्शन के आसेर घुस सकता है। तो ऐसे में अगला सवाल यही है कि क्या एनपीए के खेल में बैंकिंग सिस्टम ही दीवालिया होने के हालात में तो नहीं हैं। क्योंकि बीते साझे पांच बरस में देश के 27 सरकारी और 22 निजी क्षेत्र के बैंकों ने 3 लाख 67 हजार 765 करोड़ रुपये राइटऑफ कर दिए।
रिजर्व बैंक के ही मुताबिक 2012-2013 में 32127 करोड़, 2013-14 में 40870 करोड़, 2014-15 में 56144 करोड़, 2015-2016 में 69210 करोड, 2016-17 में 103202 करोड़। 2017-18 के शुरुआती छह महीनो यानी अप्रैल से सितबंर तक 66162 करोड़। बीते पांच बरस के दौर में देश के बैंकों ने इतनी रकम को या तो डूबा हुआ मान लिया या कहें अपनी बैलेंस शीट से ही हटा दिया।
यानी देश के 27 सार्वजनिक बैंक और 22 निजी क्षेत्रों के बैंकों ने 367765 करोड रुपये राइटआफ कर दिया । इन आंकडों के भीतर का सच ये है कि सरकारी बैंकों ने प्राइवेट बैंकों के मुकाबले लगभग पांच गुना रकम राइट आफ कर दी साढ़े पांच बरस के दौर में निजी बैंकों ने 64187 करोड राइट आफ की।
तो सार्वजनिक बैंकों ने 303578 करोड की राशि राइट आफ की। तो अगला सवाल यही है कि क्या बैंकों के जरीये रईसों का लोन लेना और ना लोटाना इतना आसान हो चला है कि बैक अपनी साख बनाये रखने के लिये लोन की रकम बट्टे खाते में डाल रहे हैं।
यानी कोई बैक नहीं चाहता है कि उसकी बैलेस शीट में बकाया नजर आये। तो इसमें सरकार ही मदद करती है। तो बैक की बैलेस शीट चाहे इससे साफ सुधरी नजर आये पर पर सच तो यही है कि लोन की रकम आम उपभोक्ताओ की है। उपभोक्ताओं का भरोसा बैंकों से डिगेगा। तो फिर बैक दिवालियेपन की तरफ बढ़ेंगे।
कैसे बैंकों के लिये हालात खराब हो रहे है ये इससे भी समझा जा सकता है जिन उद्योग या व्यक्तियों की कर्ज की रकम को राइट ऑफ किया जाता है, उनकी संपत्तियों पर बैंकों को नजर रखना चाहिए, मगर ऐसा होता नहीं हैं। जानते हुये कि पहले कर्ज लेकर फंला रईस ने कर्ज नहीं लौटाया फिर भी उस रईस को दुबारा कर्ज दिया जाता है क्योंकि ऐसे में वही व्यक्ति दूसरी कंपनी बनाकर कर्ज लेने की कतार में लग जाता है।
ध्यान दीजिए तो इसी दौर में बैको में भी कांप्टीशन है और कर्मचारी के उपर दवाब होता है कि वह लोन लेने वालो का जुगाड करे। उनका अपना टारगेट होता है। परिणाम इसी का है कि विजय माल्या 9000 करोड़। नीरव मोदी ने 11500 करोड़ का चूना लगाया।
इस कड़ी में एक नाम रोटोमैक्स के विक्रम कोठारी का आया। जिन्होंने 800 करोड का कर्ज लिया। वैसे कोठारी की फाइल भी खुली तो मामला 3000 करोड तक का सामने आया। इलाहबाद बैंक से 375 करोड़। यूनियन बैंक से 432 करोड़।
इंडियन ओवरसीज बैंक से 1400 करोड़ बैंक आफ इण्डिया से 1300 करोड़। बैंक आफ बड़ौदा से 600 करोड़। तो ऐसे में ये फेरहिस्त कितनी लंबी होगी कहा रुकेगी कोई नहीं जानता क्योकि आवारा पूंजी ने अब देश के सामने सवाल खडे किये है कि आम जन की किमत पर रईसो की रईसी कूतक चलेगी और बीते 3 बरस में जो 18 हजार रईस देश छोड़ गये उनमें कोई घोटालेबाज या कहें कर्ज लेकर भागने वाला नहीं होगा। इसकी गांरटी लेते हुये ही पीएम मोदी दो शब्द बोल दें तो भी चलेगा।
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