दीपक शर्मा।
अपना हीरो, अभिनन्दन तो लौट आया है , अब फुर्सत मिले तो गौरव कुमार का हाल भी जान लीजिये।
कौन है गौरव ?
कोई पायलट ?
जी नहीं, पायलट नहीं, देश के एक बड़े पायलट प्रोजेक्ट के नायक ?
देखिये उनका क्या हाल हुआ ?
पढ़िए,
ये हकीकत पढ़िए।
"17.50 लाख हैंडेसट आर्डर कर दीजिये। कर दीजिये ऑर्डर। .... ये हैंडसेट (फोन) सबको ठोंक देगा। बिलीव मी सबको ठोंक देगा। "
लावा मोबाइल के बिज़नेस हेड, गौरव कुमार का ये बड़ा फैसला, देश की मोबाइल इंडस्ट्री के मुस्तकबिल को बदलने जा रहा था। लेकिन गौरव के इस फैसले ने अगले तीन महीनो में लावा को ही राख में तब्दील कर दिया।
कहां तो मोबाइल की सबसे बड़ी ईमारत तामीर हो रही थी और कहां समूची नीव ही ढह गयी।
जिस लावा कम्पनी के चेयरमैन हरीओम राय, प्रधानमंत्री मोदी के 'मेक इन इंडिया' प्रोजेक्ट के पोस्टर बॉय बने थे, उसी कम्पनी को चीन के शाओमी(Xiaomi) ने अपने फ़ोन MI-सीरीज से धवस्त कर दिया।
कहने को एक देसी कम्पनी ध्वस्त हुई लेकिन सच्चाई ये है कि चीन, हज़ारों अरब रुपये की हमारी मोबाइल फ़ोन इंडस्ट्री को एक निवाले में ही निगल गया और वो भी बिना किसी आहट के।
दरअसल लावा के गौरव कुमार ने जब 250 करोड़ रूपए से ज्यादा निवेश करके अपने स्मार्टफोन Z 61 को बाजार में उतारा तो उन्हें भरोसा था कि 6.50 हज़ार रुपये का ये फ़ोन देश में छा जायेगा। इसलिए कम्पनी के कुछ साझेदारों के विरोध के बावजूद, लावा ने Z 61 के 17 लाख से ज्यादा हैंडसेट बनाने का फैसला किया।
इस बीच, लावा के प्रोजेक्ट की भनक लगते ही शाओमी, सिर्फ 5.50 हज़ार रुपये में Z 61 से कहीं बेहतर फ़ोन लेकर तेज़ी से भारतीय बाजार में उतर आयी। नतीजा ये हुआ कि न सिर्फ Z 61 फ्लॉप हुआ बल्कि लावा कम्पनी का भट्टा ही बैठ गया।
कभी सैमसंग को टक्कर देनी वाली देसी कम्पनी माइक्रोमैक्स का भी हाल आज खस्ता है। 2010 में माइक्रोमैक्स दुनिया की दस बड़ी मोबाइल फ़ोन कंपनियों में एक थी और 2014 में माइक्रोमैक्स ने भारत में सैमसंग को भी सेल्स में पछाड़ दिया था।
लेकिन आज माइक्रो मैक्स का भारत में बाजार 5 प्रतिशत से भी कम है जबकि चीन की शाओमी, ओप्पो और वीवो का यहाँ 70 प्रतिशत बाजार पर कब्ज़ा है।
चीन ने सिर्फ तीन साल में भारतीय मोबाइल फोन कंपनियों की रीढ़ तोड़ दी है। इसका असर ये है कि ज्यादतर भारतीय कंपनियों में 50 फीसदी से अधिक कर्मचारियों की छंटनी हुई है। कईं भारतीय मोबाइल कंपनियों की फैक्ट्री पर ताला लगा है। कई फैक्टरियां तालाबंदी के मुहाने पर हैं।
शाओमी के CEO, ली जून का कहना है कि उनकी कम्पनी पूरी तरह से भारत पर केंद्रित है। और इस मकसद से पहली बार उन्होंने एक भारतीय अधिकारी, मनु लाल जैन को शाओमी का ग्लोबल वाईस प्रेजिडेंट नियुक्त कर दिया है।
चीन की मीडिया का भी कहना है कि सॉफ्टवेयर में यूँ तो भारत काफी समय से चीन से आगे था लेकिन आज इंटरनेट सॉफ्टवेयर और स्मार्ट फ़ोन टेक्नोलॉजी में भारत बहुत नीचे फिसल गया है।
बीजिंग की मीडिया इसे भारत पर बहुत बड़ी फ़तेह बता रही है।
बेशक, चीन ने सोची समझी रणनीति के तहत 'मेक इन इंडिया' प्लान की हवा निकाल दी है। इसीलिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग, भारत में निर्यात करने वाली कंपनियों को खास अहमियत देते हैं।
ओप्पो, वीवो और अब एमजी मोटर्स को कई तरह की छूट दी गयी है। सबका उद्येश्य एक है। भारत के इंडस्ट्रियल कॉर्पोरेट को भारत के भीतर शिकस्त देना।
ये हमला पुलवामा से सौ गुना बड़ा है लेकिन आज दिल्ली में सरकार और मुख्यधारा की मीडिया, ड्रैगन के इस हमले पर खामोश हैं।
दरअसल दोनों शोर पर प्रतिक्रिया देते हैं, साइलेंसर युक्त गन को भेदने में दोनों दक्ष नहीं। मीडिया ही क्यों, यहाँ तो विपक्ष भी ऐसी दक्षता और दिशा से कोसों दूर है !
सच तो ये है कि जिस देश में सरकार और विपक्ष की बड़ी फौज, ट्विटर और फेसबुक पर गालीगलौच करके सत्ता को छीन या खो रहे हों वहां टूटती हुई आर्थिक रीढ़, बिखरते उद्योग या सिमटती नौकरियों जैसे ज्वलंत मुद्दों की चिंता किसे और कैसे हो सकती है ?
शायद इसलिए आज हिमालय के उस पार, दैत्य बनता जा रहा लाल ड्रैगन पप्पू और फेंकू की नूराकुश्ती पर हंस रहा होगा।
ट्विटर पर कंजड़ों की तरह भिड़ते पत्रकार, नेता और ट्रोल, भारत के भविष्य को रेखांकित करते जा रहे हैं। निसंदेह ये चीन के लिए सबसे सुखद पल है।
कभी भुखमरी के कगार पर खड़ा चीन किस तरह भारत के अर्थ को जकड़ता जा रहा है इसका अंदाज़ा शायद दिन में चार बार कुर्ता बदलने वाले प्रचंड प्रचारक को न हो पर कुछ साल बाद आपके बच्चों को तब होगा, जब वीवो और ओप्पो जैसी दर्ज़नो कंपनियां, परचून और राशन तक हमें खिला रही होंगी।
इसलिए एक बार फिर याद दिला रहा हूँ ...
अपना अभिनन्दन लौट आया है।
अब अपने गौरव की भी सोचिये !
अभिनन्दन तो एक है .....पर गौरव हर उद्योग विहार में पायलट प्रोजेक्ट में उलझा है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
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