छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
पिछले कुछ दिनों में बुंदेलखंड में सरकार के तरक्की के दावों को खोखला साबित करती घटनाये सामने आई हैं। कफन के पैसे ना होने पर चंदा जोड़ दलित महिला का अंतिम संस्कार किया जाता है। वहीं अपनी पत्नी का आर्थिक तंगी के चलते ईलाज ना करा पाने से मजबूर एक मजदूर आत्महत्या कर लेता है। एक युवक कर्ज के तले दबे होने पर फांसी के फंदे पर झूल गया। शायद यह घटनायें रहनुमाओं को शर्मसार कर दें।
वैसे सरकार के आंकड़े ही गवाह हैं कि सागर संभाग के पांच जिलों में एक वर्ष के दौरान गरीबी, बेरोजगारी और किसानी व्यवसाय से तंग आकर 583 लोगों ने आत्महत्या कर ली। जहां 43 किसान, 91 खेतिहर मजदूर, 240 दिहाड़ी मजदूर, 185 बेरोजगार, 10 गरीब एक वर्ष में आत्महत्या कर ले फिर भी कहा जाये कि देश बदल रहा है तो यह नीति निर्धारकों की बेशर्मी के सिवा कुछ नहीं।
बीती 10 जून को छतरपुर जिले के नौगांव में टीबी अस्पताल के बाहर एक वृद्ध रामरतन अहिरवार अपनी मृत पत्नी के शव को लेकर बिलखता नजर आया। हरपालपुर निवासी यह व्यक्ति आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। उसके पास शव को घर ले जाने और अंतिम संस्कार तक के लिये पैसे नहीं थे। नौगांव नगर के जागरूक लोगों ने चंदा एकत्रित कर महिला का अंतिम संस्कार किया।
इसी तरह 9 जून की रात्रि छतरपुर के सीताराम कालोनी किराये के मकान में रहने वाले 28 वर्षीय बालचंद्र साहू ने निवासी पिपट ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। प्राप्त जानकारी के अनुसार यह युवक दिल्ली में मजदूरी करता था। पत्नी का प्रसव कराने छतरपुर आया था। प्रसव के बाद पत्नी की तबियत बिगड़ गई तो युवक ने खून भी दिया। डाक्टरों ने कमजोरी के कारण लगातार इलाज कराने की सलाह दी। आर्थिक तंगी पत्नी के इलाज में रूकावट बनी तो अततः युवक ने हालातो से तंग होकर आत्महत्या कर ली।
तीसरी घटना दमोह जिले के बटियागढ थाना के ग्राम तिदुंआ की प्रकाश मे आई। जहां 36 वर्षीय बोरे अहिरवार ने घर में ही फांसी लगा ली। कुछ दिनो पूर्व इस युवक की पत्नी शांति को मौंत हो गई थी। जिसकी तेरहवी के लिये 20 हजार का कर्ज लिया था। पैशे से मजदूर बोरेलाल पर कर्ज का बोझ इस कदर भारी पडा की उसने जिदंगी को ही खत्म कर लिया। इसी तरह 8 जून को सागर जिला मुख्यालय के शास्त्री वार्ड में रहने वाले 30 वर्षीय गोपाल यादव ने भी फांसी लगा ली। बताया गया कि यह युवक भी मजदूर था और आर्थिक तंगी से गुजर रहा था।
बुंदेलखंड मे इस तरह कि घटनाये आम होती जा रही हैं जिन पर ध्यान देने की गंभीर पहल सरकार की तरफ से कम ही हुई है। बुंदेलखंड बेरोजगारी, गरीबी, के दंश को आजादी बाद से ही झेल रहा है। कागजो में दावो की लेखनी होती है लेकिन सरकार के आंकडे ही हकीकत को बयां करते हुये अपनी गवाही देते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार सागर संभाग के पांच जिलों सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह और पन्ना में वर्ष 2015 दौरान 1436 आत्महत्या के मामले पंजीबद्ध हुये। जिसमें गरीबी, बेरोजगारी से तंग आकर 209 लोगों ने आत्महत्या की। वहीं 374 किसान, खेतिहर मजदूर और दिहाडी मजदूरो ने मौंत को गले लगाया।
बुंदेलखंड के सबसे पिछड़े पन्ना जिले में दिहाडी मजदूरो के आत्महत्या कर देने के मामले तो चितंनीय के साथ एयरकंडीशनर में योजनायें बनाने वालों के मुंह पर किसी तमाचे से कम नहीं। यहां वर्ष 2015 के दौरान 106 दिहाडी मजदूरों ने आत्महत्या की। सागर संभागीय मुख्यालय वाले जिले में भी 102 दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पूरी तरह खेती पर निर्भर रहने वाले 91 खेतिहर मजदूरों ने भी मौत को गले लगाया।
हाल ही में मध्यप्रदेश के गृहमंत्री ने किसान आंदोलन के दौरान आंकड़े प्रस्तुत किये कि पिछले वर्ष 2016 दौरान मात्र 4 किसानों ने मध्यप्रदेश में आत्महत्या की। सागर जिला मुख्यालय के मूल निवासी गृहमंत्री भूपेन्द्रसिंह को आंकड़े झटका देने वाले होंगे कि वर्ष 2015 के दौरान मात्र सागर संभाग में 43 किसानों ने आत्महत्या की। जिसमें उनके मूल सागर में 18, टीकमगढ़ में 15, पन्ना में 5, दमोह में 3 और छतरपुर जिले में 2 किसानो ने मौत को गले लगाया। सरकार की नजरो में आत्महत्या के कई कारण होते है। जो किसान कर्ज से तंग होकर आत्महत्या करता है उसके आंकड़े पूरे मध्यप्रदेश में मात्र चार हैं।
अब इन रहनुमाओ को समझना होगा कि जिदंगी को खत्म करने का फैसला आसान नहीं होता। गरीबी अर्थात भुखमरी से भी सागर संभाग के पांच जिलो में 10 लोगो ने आत्महत्या की तो इसे क्या सरकार की नाकामी नही माना जायेगा। अगर अभी भी कहा जाये कि या सरकार के कागज कहे कि आल इज वेल है तो ये शर्मनाक होगा।
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