मल्हार मीडिया भोपाल।
सामाजिक संगठन 'सरोकार' द्वारा मातृत्व के पारंपरिक दृष्टिकोण को पुनः परिभाषित करने हेतु "माँ एक व्यक्ति" अभियान के अंतर्गत एक विशेष संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संवाद के दौरान जब यह सवाल उठा कि “क्या आप जानते हैं, आपकी मां का बचपन का नाम क्या था? उनका पसंदीदा रंग, खाना क्या है?, क्या आप जानते हैं कि मां की जिंदगी में सबके होते हुए अकेलापन क्यों हैं, उनके सपने कहां गुम हैं?” तब पूरे संवाद कार्यक्रम में कुछ देर के लिए सन्नाटा सा छा गया।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए टेक्नो इंडिया ग्रुप पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. जेबा खान ने मां को लेकर अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि मां तो अपने सपने, अपनी चाहतों को भूल पीढ़ियों की तरक्की की इबारत लिखती हैं, लेकिन एक व्यक्ति के रूप में मां की भावनाओं, जरूरतों और इच्छाओं को हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हमारा यह नजरिया, हमारी यह चुप्पी इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी है। सबको याद रखना चाहिए कि यह हमारी मां जिंदगी का वो मील का पत्थर है, जिसने हमने जीवन दिया, तरक्की का हर रास्ता दिखाया।
माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अतिथि प्राध्यापक दीपिका सक्सेना ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा मां को समझने के लिए किसी विशेष दिवस की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन यह संवाद कार्यक्रम ऐसा अवसर है, जहां जब हम ठहरकर उनके स्नेह और महत्वाकांक्षा पर ध्यान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी मां के स्वास्थ्य और भावनात्मक ज़रूरतों के प्रति जागरूक होना चाहिए।
संवाद कार्यक्रम में डॉ. रचना सिंघई ने विश्वास दिलाया कि वह जिन समूहों में जुड़ी हैं, वह मां एक व्यक्ति संवाद कार्यक्रम को लेकर अभियान चलाएंगे। एक कोचिंग संस्थान के संचालक अर्पित तिवारी ने कहा कि मैं खुद अपनी 60 वर्षीय मां को शिक्षिका रही मां को प्रोत्साहित करता हूं, कि स्वयं को उम्र के बंधन में न बांधे और अपनी रचनात्मकता, समाज और स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए हमेशा सक्रिय रहें। सयाली ने कहा कि मां को देवी को बनाने से परे उनके जीवन की खुशियां दूसरों पर निर्भर न हों. उनकी त्याग, बलिदान की बजाय इस विषय पर बात हो कि वह चाहती क्या हैं, क्या खाना, क्या पहनना, कैसे जीना चाहती हैं। सुश्री रश्मि ने मां को लेकर संवाद कार्यक्रम में कहा कि हम तो रखें ही मां का ख्याल, लेकिन वह खुद भी अपनी इच्छाओं, सपनों, स्वास्थ्य, जरूरतों पर खुलकर बात करें।
इसके अलावा कई अन्य वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। इससे पूर्व कार्यक्रम की संस्थापक सचिव कुमुद सिंह ने बताया कि "माँ एक व्यक्ति" अभियान का उद्देश्य माताओं को केवल त्याग और समर्पण की मूर्ति के रूप में देखने के बजाय उन्हें एक स्वतंत्र और स्वायत्त व्यक्ति के रूप में मान्यता देना है। अभियान के अंतर्गत माताओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, सम्मान और उनके सपनों की पूर्ति को प्राथमिकता दी जाती है। कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन शहनाज अली ने किया।
बता दें कि सरोकार संस्था द्वारा आयोजित यह आयोजन उपस्थितजनों के लिए न केवल आत्मविश्लेषण का कारण बना, बल्कि मां को एक समर्पित इंसान के रूप में स्वीकारने की दिशा में एक सशक्त सामाजिक संवाद की पहल भी रही।
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