छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
साहब पीने के पानी के लिये यहां तो समस्या है, शौचालय के उपयोग के लिये पानी कहां से लाये। इन जबाबो ने बुंदेलखंड के गांवो में शौचालयो की स्थितियो का आंकलन करने पंहुच रहे अधिकारियो को परेशानी में डाल दिया है। कहा जाता है बिन पानी सब सून। इसी पानी की कमी ने स्वच्छ भारत अभियान मिशन के मूल खुले में शौच मुक्त भारत की अवधारणा को झटका दे दिया है।
स्वच्छता अभियान के तहत् महात्मा गांधी की 150 जंयती तक स्वच्छ भारत की परिकल्पना को साकार करने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। लोगों के स्वास्थ्य से सीधे जुडा यह मिशन भी सरकारी मशीनरी की चिरपरिचित गंभीर बीमारी के कारण धरातल से दूर कागजी रंग रंगता नजर आ रहा है। जहां शौचालयों का निर्माण हो गया वहां पानी की कमी के कारण शौचालय अनुपयोगी साबित हो रहे हैं।
खासकर बुंदेलखंड में जो दशको से सूखे की मार झेल रहा है। पिछले वर्ष दौरान बुंदेलखंड में औसत से कहीं अधिक बारिश हुई थी। बारिश की अधिकता के बाद भी हेंडपम्प सूख गये और पानी का स्तर कई मीटर नीचे खिसक गया। जानकारो का कहना था कि तेज बारिश के बाद भी जलसंरक्षण के स्त्रोातो की कमी के कारण जल सकंट का सामना करना पड रहा है। इन दिनो स्वच्छता अभियान के ग्रामीण अंचलो का अधिकारी दौरा कर शौचालयो की स्थिती का जायजा ले रहे है। ग्रामीणों से जब उनके द्वारा शौचालयों का उपयोग करने का सवाल पूछा जाता है, तो टका सा जबाब मिलता है जब पीने की पानी समस्या है तो शौचालयो के लिये कहां से पानी लायेंगे।
इस जबाब में ही गांवों में शौचालयों के उपयोग की वस्तुस्थिति का सच छुपा है। जहां शौचालयो का निर्माण हो गया वहां भी पानी की कमी खुले में शौच की मजबूरी बनी हुई है। मध्यप्रदेश के स्वच्छ पोर्टल के अनुसार सागर संभाग के पांच जिलो सागर, छतरपुर, टीकमगढ, दमोह एंव पन्ना में शौचालय निर्माण के हालात अच्छे नहीं है।
सागर संभाग में 2625 गांव है जिनमें 16 लाख 14 हजार 140 परिवार निवासरत है। संभाग में 6 लाख 56 हजार 228 शौचालय है। जिनमें मात्र 1 लाख 80 हजार 497 उपयोगी है। जिनमें से भी 1 लाख 79 हजार 608 शौचालयो का उपयोग हो रहा है। सरकारी रिकार्ड के अनुसार इनमें से भी मात्र 1 लाख 45 हजार 830 शौचालयो में ही पानी उपलब्ध है। सरकारी आंकडे ही दर्शाते है कि पहले तो शौचालय निर्माण की धीमी रफतार है। जहां निर्मित भी हो गये तो वहां पानी की कमी के कारण वे उपयोग विहीन हैं।
संभाग में परिवारों की सख्यां के हिसाब से मात्र 32 प्रतिशत घरो में ही शौचालय का निर्माण हो सका है। जिसमें भी मात्र 25 प्रतिशत शौचालय ही उपयोगी है। ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के गृह जिले सागर में 4लाख 36 हजार 983 परिवारों के बीच मात्र 2 लाख 5 हजार 20 शौचालय है। जिसमें से 69 हजार 727 का उपयोग हो रहा है। इसमें भी 9961 शौचालय पानी की कमी के कारण उपयोग विहीन है। यही हाल अन्य चार जिलो का है। जहां टीकमगढ में 28443 में से 4643, छतरपुर में 32061 में से 7682, दमोह में 27664 में से 7682 और पन्ना जिले में 22406 में से 4424 शौचालय शुष्क अवस्था में है।
जहां पानी की कमी कारण इनका उपयोग नही हो रहा है। इन जिलो में शौचालय निर्माण के हालात भी गंभीर है। छतरपुर में 365048 परिवारो में 123352, दमोह में 282609 में 133461, पन्ना में 226103 में 67587 और टीकमगढ़ में 303397 परिवारो में 126808 के पास ही शौचालय है। केन्द्र सरकार के इस मिशन में 2 अक्टूबर 2019 तक हर घर में शौचालय निर्माण का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। शौचालय निर्माण की यही चाल रही तो तय है कि कागजो में चाहे रंग भर दिये जाये लेकिन इस मिशन की हकीकत सरकार की उपहास का कारण बन सकती है। महत्वपूर्ण है कि शौचालयों का निर्माण होने के बाद भी उनके उपयोग की गांरटी का मापदंड क्या होगा इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं।
कारण है वह पानी की कमी जो विकराल रूप धारण करती जा रही है। पानी पाने की जद्दोजेहद ने जिदंगी के मायने बदल दिये हैं। बुंदेलखंड में तो कई ऐसे गांव है जहां किलोमीटर दूर से पानी लाना पडता है। इन हालातो में सरकारी भय से शौचालय अवश्य बन जाये पर उनकी उपयोगिता तो पानी की उपयोगिता पर ही निर्भर रहेगी।
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