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चोरी हो गयी...और वह भी एक बहुत बड़े प्रतिष्ठित द्वारा

मीडिया            Aug 08, 2016


deepak-tiwariदीपक तिवारी। बड़े दुखी मन से कहना पड़ रहा है कि मेरी एक प्रिय और अमूल्य वस्तु की, मेरी आँख के ही सामने चोरी होती रही और मैं कुछ नहीं कर पा रहा था। लेकिन अब हद पार हो गयी है। चोरी एक बड़े अखबार ने की इसलिए मैं सार्वजनिक रूप से नहीं कह रहा था। मर्यादाओं के चलते मैंने उस समाचार पत्र के प्रमुख को तीन बार मौखिक और sms पर शिकायत और निवेदन किया कि आपका अखबार मेरी पुस्तक के अंश चुराकर छाप रहा है। कृपया पुस्तक और लेखक को क्रेडिट दें। नईदुनिया अख़बार ने अपने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सभी संस्करणों के संपादकीय पृष्ठ पर ''किस्सा कुछ यूँ था'' नाम के कॉलम में लगातार मेरी पुस्तक ''राजनीतिनामा मध्यप्रदेश- राजनेताओं के किस्से'' 1956-2003, प्रकाशक इंद्रा पब्लिशिंग हाउस, के अंश छापे। बिना मुझे इसकी credit दिये। plagiriosm-naidunia-2 यह पुस्तक मैंने छह साल के शोध और पुस्तकालयों में बैठ कर लिखी थी और उन सभी लेखकों और स्रोतों को बाकायदा क्रेडिट दी है जिनसे उद्धरण लिए हैं। सामान्य शिष्टाचार यह है कि यदि लेखक से अनुमति किसी कारण नहीं हो पा रही है तो साभार कर के पुस्तक के अंश छापे जाते हैं। यहाँ तो अखबार ने अपना ही बता कर छाप दिया। plagiriosm-naidunia-4 नईदुनिया मेरे लिए अनेकों अन्य पाठकों की तरह पत्रकारिता का एक ऐसा institution था जिसने मुझे भाषा के संस्कार दिए। मैं अक्सर गर्व से बताता था की गाँव में भी रहकर अपने स्कूली ज़माने से रोज़ दोपहर में नईदुनिया के बिना भोजन नहीं करता था। आज उसी अखबार के बारे में इस तरह का लिख कर अच्छा नहीं लग रहा। लेकिन कई बार लगता है की ज़रूरी हो गया था क्योंकि संपादक से बात हो जाने के बाद भी अगर अखबार plagiarism की आदत न छोड़े तो ठीक नहीं। लेखन की चोरी को अंग्रेजी में plagiarism कहते हैं। पश्चिमी देशों में कई पत्रकारों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा और कई प्रतिष्ष्ठित अखबारों ने अपने पाठकों से माफ़ी मांगी जब वे इस तरह की लेखन-चोरी में पकडे गए। plagiriosm-naidunia-3 अब आप ही बताइए क्या कर सकता था मैं ? Copyright का मामला तो बनता ही है लेकिन आप पाठकों को भी इस चोरी के बारे में बताना, मेरा दायित्व है। क्योंकि यह मेरे प्रिय अखबार से जुड़ा मामला है। एक पाठक होने के नाते मैं इस अखबार का भागीदार भी हूँ। इसलिए इस पर मेरा अपरोक्ष अधिकार भी बनता है। मैंने जब इसकी शिकायत पिछले दिनों की तो संपादक का बड़प्पन था की उन्होंने गलती स्वीकारी और अगले दिन ठीक भी की, लेकिन वह केवल एक ही दिन रहा । यह पूरा प्रकरण में आप सभी पाठकों के सामने रख रहा हूँ। आप ही बतायें इसका क्या समाधान है। फेसबुक वॉल से


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