मल्हार मीडिया भोपाल।
न्यू जर्सी(अमेरिका) स्थित युवा हिंदी संस्थान और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के संयुक्त प्रयासों से विकसित फुलब्राइट-हेस जीपीए हिंदी पाठ्यक्रम निर्माण परियोजना के तहत 20 सदस्यीय दल ने ज्ञान तीर्थ सप्रे संग्रहालय का अध्ययन-भ्रमण किया। अमेरिका के विभिन्न संस्थानों में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े शिक्षकों का यह दल मुख्य रूप से भारतीय संस्कृति के अध्ययन के लिए यहाँ आया हुआ है।
युवा हिंदी संस्थान अमेरिका के अध्यक्ष अशोक ओझा और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में हिंदी की वरिष्ठ प्रोफेसर ग्रेबिएला निक इलेवा ने बताया कि दल में शामिल सदस्य भारत भ्रमण के अनुभवों के आधार पर अमेरिकी विश्वविद्यालयों के अनुकूल हिंदी पाठ्यक्रम तैयार करेंगे। भारत भ्रमण के दौरान विभिन्न गतिविधियों का समन्वय हिंदी सेवी डॉ.जवाहर कर्णावट कर रहे हैं।
सप्रे संग्रहालय अवलोकन के दौरान अध्ययन दल के सदस्यों का रोमांच देखते ही बनता था। उनका कहना था कि ज्ञान का इतना विशाल भांडार इतने व्यवस्थित तरीके से संजोये हुए उन्होंने अन्यत्र नहीं देखा। हर व्यक्ति यह जानना चाहता था कि पांच करोड़ पृष्ठों की संदर्भ संपदा से समृद्ध सप्रे संग्रहालय की स्थापना की प्रेरणा कैसे मिली? इतनी महत्वपूर्ण सामग्री एकत्रित कैसे हुई? और इसकी देखरेख कैसे की जाती है? संस्थापक विजयदत्त श्रीधर ने दल के सदस्यों की हर जिज्ञासा का समाधान किया।
ड्यूक युनिवर्सिटी, नॉर्थ कैरोलिना की प्रोफेसर कुसुम नैपशिक और मयूरी रमन नयन ने रामायण, महाभारत और भगवद्गीता पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए सप्रे संग्रहालय के संस्थापक विजयदत्त श्रीधर से विस्तृत साक्षात्कार रिकार्ड किया। उदाहरणों के साथ श्री श्रीधर ने उन्हें बताया कि रामायण, गीता और महाभारत का महत्व और उनके अध्ययन की उपादेयता सम्पूर्ण मानव समाज के लिए चिरकालीन है। रामायण सिखाती है कि मनुष्य का आचरण और संबंधों का निर्वाह कैसा होना चाहिए। महाभारत सीख देती है कि मनुष्य को क्या-क्या नहीं करना चाहिए। गीता से ज्ञान मिलता है कि जीवन कैसे जीना चाहिए।
अध्ययन दल की सुश्री मयूरी की आंखें तब नम हो गई जब उन्हें बताया गया कि 150 वर्ष पहले जो गिरमिटिया मजदूर भारत से मॉरीशस, फीजी आदि देशों को ले जाए गए थे, विपरीत परिस्थितियों में उनके मनोबल का आधार श्रीरामचरितमानस का गुटका और गंगाजलि में तुलसी की पत्ती डालकर ले जाया गया गंगाजल था। आज उन देशों में उनकी प्रगति और हैसियत का आलम यह है कि उनके वंशज राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के शीर्ष पदों तक पहुँचे हैं। मयूरी उसी भोजपुरी अंचल से आती हैं।
अध्ययन दल को सप्रे संग्रहालय के प्रकाशन ‘चंबल की बंदूके गांधी के चरणों में’, ‘मूर्धन्य संपादक’, और ब्रोशर भेंट किए गए। श्री अनुपम मिश्र की पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ और श्री अमृतलाल बेगड़ की पुस्तक ‘सौन्दर्य की नदी नर्मदा’ को हिन्दी के आदर्श गद्य के रूप में अमेरिकी प्राध्यापकों ने ग्रहण किया।
अध्ययन दल के श्री अनुभूति काबरा का कहना था कि 'यह अद्भुत संग्रहालय है। यहाँ तो कुछ दिन बिता कर इतिहास की चुस्कियां लेनी चाहिए।' श्री अशोक ओझा का कहना था -'सप्रे संग्रहालय समाज के सभी शिक्षार्थियों के लिए एक अमूल्य धरोहर है।' दल में न्यू जर्सी स्थित युवा हिंदी संस्थान और न्यूयॉर्क युनिवर्सिटी के साथ-साथ यूनिवर्सिटी ऑफ़ टैक्सास, मैकमिलन सेंटर,येल युनिवर्सिटी, ड्यूक युनिवर्सिटी तथा मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक एवं विद्यार्थी भी शामिल थे।
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