मल्हार मीडिया डेस्क।
पिछले कुछ महीनों में फ़ोर्ब्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल, सीएनएन, फॉर्च्यून और टाइम जैसी नामी वेबसाइट्स के एफिलिएट कारोबार को गूगल की नई पॉलिसी के चलते बड़ा झटका लगा है।
गूगल द्वारा हाल में लागू की गई साइट रिपुटेशन एब्यूज़ पॉलिसी से इन सभी वेबसाइट्स की सर्च रैंकिंग में भारी गिरावट देखी गई है। इससे इन कंपनियों को करोड़ों का नुकसान हो चुका है। इस बदलाव ने न केवल उनके मुनाफे को प्रभावित किया है, बल्कि एफिलिएट मॉडल के भविष्य पर भी सवाल खड़े किए हैं।
हाल ही में सर्च विजिबिलिटी फर्म सिस्ट्रिक्स और कई सर्च कंसल्टेंट्स ने मुद्दे पर अपनी बात कही है। सिस्ट्रिक्स के अनुसार, सर्च में गिरावट के कारण इन कंपनियों को कुल मिलाकर कम से कम $7.5 मिलियन (लगभग 61 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ है।
इन मीडिया कंपनियों ने थर्ड-पार्टी कंपनियों जैसे फ़ोर्ब्स मार्केटप्लेस, क्रेडिबल और थ्री शिप्स के साथ साझेदारी में एफिलिएट बिज़नेस मॉडल को अपनाया था, जो उनके ब्रांड के तहत काम कर रहे थे और इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा था।
एडवीक में प्रकाशित मार्क स्टेनबर्ग और पॉल हीबर्ट की एक रिपोर्ट में इस बाबत तमाम जानकारियां दी गई हैं।
चूंकि मामला काफी टेक्निकल है तो इसे उदाहरण से समझा जा सकता है- सीएनएन के ‘सीएनएन अंडरस्कॉर्ड’ के नाम से प्रोडक्ट की सिफारिश करने वाले प्लेटफॉर्म को थर्ड-पार्टी कंपनी फ़ोर्ब्स मार्केटप्लेस द्वारा चलाया जा रहा था।
इससे दोनों कंपनियां होने वाले मुनाफे को शेयर करती थीं और इस एफिलिएट मॉडल से उनकी सर्च रैंकिंग भी काफी मजबूत बनी हुई थी।
कई विशेषज्ञों ने इसे पैरासाइट एसईओ कहकर संबोधित किया, क्योंकि यह मॉडल मुख्य वेबसाइट के नाम का उपयोग करके उसकी सर्च रैंकिंग का फायदा उठाता था।
टाइम स्टैम्प्ड में 97% की गिरावट
सर्च रैंकिंग में गिरावट जुलाई से शुरू हुई जब टाइम की एफिलिएट साइट टाइम स्टैम्प्ड की रैंकिंग में भारी गिरावट आई. इसके बाद सितंबर के अंत में और अक्टूबर की शुरुआत में अन्य प्रमुख एफिलिएट साइट्स भी प्रभावित हुईं।
सिस्ट्रिक्स के अनुसार, 12 सितंबर से 31 अक्टूबर तक फ़ोर्ब्स एडवाइजर में 43%, डब्ल्यूएसजे बाय-साइड में 77%, सीएनएन अंडरस्कॉर्ड में 63%, फॉर्च्यून रिकमेंड्स में 72% और टाइम स्टैम्प्ड में 97% की गिरावट आई।
सर्च एक्सपर्ट लिली रे के अनुसार, सर्च रैंकिंग में थोड़ी-सी भी गिरावट से भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है. फ़ोर्ब्स एडवाइजर के एक पूर्व कर्मचारी के मुताबिक, अगर हमारी रैंकिंग में थोड़ा भी उतार-चढ़ाव होता था, तो एडिटर्स को टॉप मैनेजमेंट के सवालों का सामना करना पड़ता था।
गूगल ने किया टार्गेट?
सिस्ट्रिक्स के मार्केटिंग मैनेजर स्टीव पाइन के अनुसार, यह गिरावट केवल इन कंपनियों के एफिलिएट सेक्शन में देखी गई है, मुख्य डोमेन पर नहीं। यह असामान्य पैटर्न दर्शाता है कि गूगल की नई नीति का प्रभाव इन साइट्स के एफिलिएट सेक्शनों तक ही सीमित है।
पाइन के अनुसार, “किसी विशेष डायरेक्ट्री को टार्गेट करने के लिए बहुत ही खास एल्गोरिदम या मैनुअल हस्तक्षेप की जरूरत होती है, जो इस मामले में हुआ है।”
साइट रिपुटेशन एब्यूज़ पॉलिसी
मई में लागू की गई गूगल की ‘साइट रिपुटेशन एब्यूज़’ पॉलिसी इस नई गिरावट का कारण मानी जा रही है। गूगल अब इस तरह के एफिलिएट बिज़नेस मॉडलों पर रोक लगाने का प्रयास कर रहा है, जो मुख्य वेबसाइट के नाम का उपयोग करके सर्च रैंकिंग को बढ़ाते हैं। गूगल के प्रवक्ता के हवाले से एडवीक (ADWEEK) ने लिखा कि गूगल की स्पैम पॉलिसी में सुधार किया गया है, ताकि इन धोखे वाले तरीकों को रोका जा सके, और यह सुनिश्चित किया जा सके कि साइट का एक हिस्सा मेन कंटेंट से पूरी तरह अलग न हो।
मीडिया कंपनियों को करना होगा ज्यादा निवेश
इस गिरावट से प्रमुख मीडिया कंपनियों पर आर्थिक दबाव बढ़ सकता है। फ़ोर्ब्स, जो कि वर्तमान में कोच इंक. की प्राइवेट इक्विटी ब्रांच को लगभग $570 मिलियन (लगभग 4,635 करोड़ रुपये) में बेचने की योजना बना रही है, इसके एफिलिएट बिज़नेस के मूल्य में कमी इन सौदों पर प्रभाव डाल सकती है।
इसी तरह, टाइम, जिसे इसके मालिक मार्क और लिन बेनिऑफ लगभग $150 मिलियन (लगभग 1,220 करोड़ रुपये) में बेचने की योजना बना रहे हैं, भी इस गिरावट से प्रभावित हो सकता है।
इस नए बदलाव के परिणामस्वरूप एफिलिएट मॉडल का भविष्य अनिश्चित हो सकता है। सर्च विशेषज्ञ रे के अनुसार, “यह मॉडल कुछ वर्षों तक काफी सफल रहा था, परंतु अब गूगल ने इस पर सख्ती करनी शुरू कर दी है।” भविष्य में मीडिया कंपनियों को एफिलिएट बिज़नेस का फायदा उठाने के लिए इसे अपने नियंत्रण में लेना होगा, जिससे ज्यादा पूंजी और संसाधनों में निवेश की जरूरत होगी।
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