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आतंक के खिलाफ सख्ती के लिये बनीं अदालतें दो साल बाद खत्म

राष्ट्रीय            Jan 07, 2017


मल्हार मीडिया डेस्क।

पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ सख्ती के नाम पर दो साल पहले बनाई गई विवादित सैन्य अदालतें शनिवार को बंद कर दी। बता दें कि पेशवार के आर्मी स्कूल पर हमले और 150 के करीब बच्चों की मौत से पैदा जनाक्रोश को देखते हुए सरकार ने आनन-फानन में ये अदालतें गठित की गई थीं।

शरीफ सरकार ने पेशावर हमले के बाद आतंकियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने के लिए इन अदालतों का गठन संविधान संशोधन के जरिये किया था। विधेयक में इन अदालतों की मियाद दो साल तय की गई थी। यह समयसीमा शनिवार को औपचारिक रूप से समाप्त हो गई। सेना द्वारा नागरिकों पर मुकदमा चलाने की असाधारण ताकतों की समाप्ति के बारे में सरकार या सेना की ओर से कोई औपचारिक बयान नहीं आया। इससे माना जा रहा है कि सरकार इन अदालतों की समय सीमा नहीं बढ़ाने जा रही है।


सैन्य अदालतों में जो मामले अभी भी लंबित हैं, उनपर अब पहले से गठित आतंकवाद निरोधक अदालतें सुनवाई करेंगी। प्रक्रिया के तहत इन मामलों को हस्तांतरित किया जा रहा है।


इन अदालतों को लेकर शुरू से ही देश में विवाद था। विभिन्न मानवाधिकार संगठनों एवं कार्यकर्ताओं ने इसे देश के संविधान और अंतरराष्ट्रीय चार्टर में वर्णित मूलभूत मानवाधिकारों का उल्लंघन करार दिया था।कई संगठनों ने इन अदालतों के खिलाफ पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन शीर्ष अदालत ने याचिकाओं को खारिज करते हुए इन्हें 2015 में वैध करार दिया था।


अप्रैल 2015 में काम करना शुरू किया और 28 दिसंबर 2016 को आखिरी फैसला दिया
275 मुकदमों की इस दौरान हुई सुनवाई, 161 आतंकियों को मौत और 116 को कैद की सजा सुनाई
12 आतंकियों की मौत की सजा पर हुआ अमल, इनमें पेशावर हमले का मास्टमाइंड शामिल
90 दिनों तक बिना किसी अदालत में पेश किए एजेंसियां कैदियों को हिरासत में रख पूछताछ कर सकती थीं



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