डॉ. राम वल्लभ आचार्य।
भोपाल में भारतीय संगीत की सांस्कृतिक परंपरा का सूत्रपात करने वाले संस्कृति पुरुष पं. सुरेश तातेड़ का आज अपराह्न 3 बजे दुखद निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे और विगत लगभग एक वर्ष से कैंसर जैसी भयावह बीमारी से जूझ रहे थे।
बावजूद इसके 14 जून को होने वाले सम्मान समारोह और 12 जुलाई को होने वाले गुरु वंदना महोत्सव की सारी तैयारियाँ कर चुके थे कि अचानक पाँच दिन पहले श्वास में तकलीफ के चलते बड़े चिकित्सा संस्थान में भर्ती कराया गया और जाँच में चिकित्सकों द्वारा हृदय की कार्यक्षमता 80 प्रतिशत समाप्त होना पाये जाने पर गहन हृदय चिकित्सा इकाई में उनकी चिकित्सा की जा रही थी। वे अपने पीछे पत्नी, एक पुत्र अतुल तातेड़, एक पुत्री तथा भाईयों व नाती पोतों से भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं, उनकी अन्त्येष्टि कल की जायेगी।
स्व. श्री धनराज ताँतेड़ एवं स्व. श्रीमती मान कुँअर तांतेड़ के सुपुत्र पं. सुरेश तांतेड़ का जन्म मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के शाजापुर जिले के तहसील स्थल शुजालपुर में 25 दिसम्बर 1944 को हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। वहीं आपने तबला वादन की प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की।
सन 1963 में आपने भोपाल को अपनी कर्मभूमि बनाया और संगीत प्रेमी मित्रों के साथ मिलकर यूथ कल्चरल सोसायटी नामक सांस्कृतिक संस्था का गठन किया जिसका नाम बदलकर बाद में "अभिनव कला परिषद" कर दिया गया।
संस्था अपनी सुरमयी यात्रा के 62 पड़ाव पार कर चुकी है। इस दौरान 400 से अधिक कार्यक्रमों में अब तक विभिन्न कला रूपों के 4000 से अधिक नवोदित से लगाकर शीर्षस्थ कलाकार प्रस्तुतियाँ दे चुके हैं। संस्था की सुदीर्घ संगीत सेवा हेतु इसे मध्यप्रदेश शासन द्वारा "राजा मानसिंह तोमर राष्ट्रीय सम्मान" प्रदान किया गया।
पं. सुरेश तांतेड़ ने गुरु शिष्य परंपरा को पुनर्प्रतिष्ठित करने की भावना से सन 1970 में संस्था "मधुवन" की स्थापना की और प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विविध कला क्षेत्रों के सात मनीषियों की गुरू के रूप में वंदना कर उन्हें "श्रेष्ठ कला आचार्य" की मानद उपाधि से अलंकृत एवं सम्मानित करने की परंपरा कायम की।
पं. सुरेश तांतेड़ ने सन 1993 में धार्मिक व सांस्कृतिक नगरी उज्जैन में भारतीय सनातन सांस्कृतिक मंदिर महोत्सव की परंपरा को पुनर्स्थापित कर उत्सव महाकालेश्वर संगीत समारोह आयोजित किया । इस संस्था ने भी पचास वर्षों से अदिक का सफर तय कर लिया है।
पं. तातेड़ ने अपने अनथक प्रयासों से न केवल भोपाल शहर के सांस्कृतिक शून्य को भरा अपितु इसे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और प्रतिष्ठित कर दिया।
समय पर धन की व्यवस्था न होने पर अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखकर कलाकारों को मानदेय देने वाला यह व्यक्ति अंतिम समय तक पूरी निष्ठा और समर्पण से अपने मिशन में संलग्न रहा।
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