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बिहार में वोटर कार्ड जांचने चुनाव आयोग ने मांगे 11 डॉकयूमेंट

राष्ट्रीय            Jul 05, 2025


 मल्हार मीडिया ब्यूरो।

बिहार में वोटर कार्ड जांच करने के लिए चुनाव आयोग ने नई मुहिम छेड़ दी है। जिसे विशेष गहन पुनरीक्षण कहा जा रहा है। इसके तहत मतदाता सूची को अपडेट करने का काम भी चल रहा है। लेकिन, अब इसमें नागरिकता की जांच का मुद्दा भी उठ रहा है। भारतीय निर्वाचन आयोग आमतौर पर नागरिकता की जांच से दूर ही रहता है। ECI मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने के लिए लोगों के दावों और आपत्तियों पर ध्यान देता है। बाकी का काम गृह मंत्रालय देखता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लग सकता है ब्रेक

ECI के पुराने अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि ECI का काम सिर्फ ये देखना है कि वोट डालने का अधिकार सिर्फ नागरिकों को मिले।लेकिन, कोर्ट ने ये भी बताया है कि ECI को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1995 का लाल बाबू हुसैन मामला एक उदाहरण है। लाल बाबू हुसैन बनाम Electoral Registration Officer (ERO) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ECI के दो आदेशों को रद्द कर दिया था। ये आदेश 21 अगस्त, 1992 और 9 सितंबर, 1994 को जारी किए गए थे। पहले आदेश में सभी जिलाधिकारियों को पुलिस जांच के जरिए ये पता लगाने का अधिकार दिया गया था कि कोई व्यक्ति विदेशी है या नहीं। दूसरे आदेश में ERO को विदेशी नागरिकों की पहचान कर उनके नाम मतदाता सूची से हटाने का अधिकार दिया गया था।

इन आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाएं तब दायर की गईं जब ग्रेटर बॉम्बे (अब मुंबई) में लगभग 1.67 लाख लोगों को नोटिस जारी किए गए। उनसे ये दस्तावेज मांगे गए थे। (i) जन्म प्रमाण पत्र (ii) भारतीय पासपोर्ट (iii) नागरिकता प्रमाण पत्र (iv) नागरिकता रजिस्टर में एंट्री का प्रमाण।

दिल्ली के पहाड़गंज में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था

वहीं, दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में भी ऐसा ही हुआ। वहां उत्तर प्रदेश और बिहार से आए कई गरीब लोग रहते थे। ERO ने उनके दस्तावेज इसलिए नहीं माने क्योंकि वे ECI के नियमों के हिसाब से नहीं थे।

1995 में सुप्रीम कोर्ट ने ECI के दोनों आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि ECI के नियमों के हिसाब से नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर है, जबकि कई लोग पहले भी वोट डाल चुके थे।कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि ECI ने पहले ही उनकी जांच कर ली थी, तभी उनके नाम मतदाता सूची में शामिल किए गए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने ERO के काम के तरीके पर उठाए थे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने ERO के काम करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए कुछ नियम बनाए। कोर्ट ने कहा कि अगर ERO को लगता है कि किसी ऐसे व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में है जिसकी नागरिकता संदिग्ध है, तो नोटिस जारी करने से पहले ERO को पिछली मतदाता सूची की जांच करनी चाहिए और उसे ध्यान में रखना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये अर्ध-न्यायिक होनी चाहिए। जांच अधिकारी को सभी सबूतों पर ध्यान देना चाहिए, चाहे वे दस्तावेज हों या कुछ और व्यक्ति को अपनी बात रखने और अपना मामला साबित करने का मौका मिलना चाहिए। जांच अधिकारी को संविधान, नागरिकता अधिनियम और नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए।

असम में अवैध प्रवासियों की समस्या बहुत ज्यादा है। 2002 में गहन पुनरीक्षण के दौरान ये मुद्दा फिर से उठा। HRA चौधरी बनाम ECI मामले में असम के नागांव में कई मतदाताओं को 'D' (doubtful citizenship) यानी संदिग्ध नागरिकता के साथ एक अलग मतदाता सूची में डाल दिया गया था। ऐसा ECI के 1997 के आदेश के बाद किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 1995 के आदेश को फिर से दोहराया था

सुप्रीम कोर्ट ने ECI के अधिकार को मानते हुए 1995 में दिए गए नियमों को दोहराया। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को मतदाता सूची से निकालने से पहले उसे अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए. साथ ही, संदिग्ध नागरिकता के मामले को संबंधित tribunal/authority यानी न्यायाधिकरण/प्राधिकरण को भेजना चाहिए और उसके अनुसार कार्रवाई करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने ECI को याद दिलाया कि इसका मकसद सही नागरिकों के साथ अन्याय नहीं करना है, बल्कि विदेशियों को मतदाता सूची में शामिल होने से रोकना है।इसके बाद ECI ने सावधानी से काम किया और मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए कम दखल देने वाला तरीका अपनाया। ECI ने मतदाताओं पर ज्यादा भरोसा किया।

एक उदाहरण है 2013 में गोवा में एक मतदाता चुनाव लड़ने के बाद विदेशी नागरिक पाया गया। ये मामला कोर्ट में गया और इसमें गृह मंत्रालय को भी दखल देना पड़ा। इसके बाद ECI ने अपने Form 6 (मतदाता सूची में नाम शामिल करने का आवेदन) में बदलाव किया। अब हर मतदाता को ये घोषणा करनी होती है कि वह भारतीय नागरिक है और गलत जानकारी देने पर उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

 


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