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फिल्म समीक्षा: कोठों पर कब्जे की जंग में आजादी की जंग का तड़का हीरा मंडी

पेज-थ्री            May 02, 2024


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

तवायफ तो तवायफ ही होती है, भले ही वह कितनी भी पावरफुल क्यों न हो।  तवायफ और वेश्या  में अंतर होता है। यह बात बहुत सारे लोग नहीं जानते।  संजय लीला भंसाली ने अपने सबसे बड़े प्रोजेक्ट हीरा मंडी में यह बात स्पष्ट की है और आम आदमी को बताया है कि तवायफ क्या होती है और वेश्या क्या होती है?  तवायफें सिखाती थी कि तहज़ीब और तमीज़ क्या होती है।  बड़े घरों के लोग अपने बेटों को तवायफों से तहज़ीब और तमीज़ सीखने के लिए भेजा करते थे। तवायफों की बड़ी इज्ज़त हुआ करती थी।

हीरा मंडी की स्टारकास्ट जबरदस्त है। इसमें मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी,  शर्मिन सहगल, संजीदा  शेख, फरदीन खान, अध्ययन सुमन,  शेखर सुमन, फरीदा जलाल आदि  हैं। नेटफ्लिक्स पर यह सीरीज आठ एपिसोड में आ रही है। चार एपिसोड एक-एक घंटे के हैं और बाकी चार  पौन-पौन घंटे के। संजय लीला भंसाली का कहना है कि वे इस प्रोजेक्ट में 18 साल से दिमाग लगा रहे थे। 

उनकी योजना तो थी कि इसमें पाकिस्तानी सितारे फवाद खान, माहिरा खान और इमरान अब्बास को कास्ट करें। रेखा, करीना कपूर, रानी मुखर्जी को लें पर उनके इरादे पूरे नहीं हो पाए।  कई दर्शकों को हीरा मंडी का फिल्मांकन भव्य लगेगा। इसमें संजय लीला भंसाली का डायरेक्शन और संवाद हैं।  कई लोगों लगेगा कि इसमें उमराव जान और पाकीज़ा का टच है।

संजय लीला भंसाली को सिनेमा के पर्दे की तरह छोटे पर्दे पर भी ग्लैमर क्रिएट करना आता है। उनके लिए भव्यता एक कंज्यूमर आइटम है। माहौल है 1940 के आसपास का। 

'हीरा मंडी : द डायमंड बाजार' की मुख्य कहानी मल्लिका जान की कहानी है, जो लाहौर के हीरा मंडी की सबसे ताकतवर तवायफ है। वह आतंक का पर्याय है। 

उसकी बेटी बिब्बो जान क्रांतिकारियों का साथ दे रही है।  दूसरी तवायफ बेटी आलमजेब भी बगावत वाली शेरो-शायरी करती है।  उसका पुराना गुनाह  नए तेवर में फरीदन बनकर लौट आता है।  कोठों पर कब्जे की जंग में आजादी की जंग का तड़का है। 

तवायफ का गुरूर है, नवाबों का सुरूर है, जेवरों से लदी और ज़री के वस्त्रों से लिपटी, बुढ़ापे की ओर अग्रसर तवायफों की कहानियां हैं।

इन कहानियों में षड्यंत्र है, ग्लैमर है और मोहब्बत की कशिश भी है। कहानियों के भीतर कहानियां हैं। कभी लगता है कि आप पाक़ीज़ा देख रहे हैं, कभी लगता है कि उमराव जान और कभी लगता है कि गंगूबाई काठियावाड़ी देख रहे हैं। कहानियां  भले ही कोठों की हो, कहानी भले ही तवायफ की हो, लेकिन वहां भी साजिश है। मोहब्बत की कहानी है, मोहरा बनने और मोहरा बनाने की चालबाज़ी है। जासूसी है, उस्तादी है, उस्ताद जी भी हैं। उस्ताद और उस्तादजी का अर्थ कम ही लोग समझते हैं ! कुल मिलाकर कोठों पर कब्ज़ा ज़माने की साजिशों में आज़ादी की लड़ाई का तड़का है।

हीरा मंडी की तवायफों का अपना स्टैंडर्ड है ! वे सहज ही हमबिस्तर नहीं होतीं। हर किसी ग्राहक के साथ रिश्ता नहीं बनातीं। नवाब साब हों, या अंग्रेज़ बहादुर हों तो बेहतर! वे मुज़रे में लुटाया गया रूपया अपनी मालकिन को समर्पित कराती हैं। वो मालकिन ठहरी जल्लाद टाइप की, हेराफेरी हुई तो जामा तलाशी में नंगा कर देती है।

हीरा मंडी देखते हुए दिमाग लगाना पड़ता है कि आखिर कौन क्या है?  कौन किसकी खाला है और कौन किसकी बेटी है?  किसने किसको मारा?  किसने किसकी विरासत पर कब्जा किया? सास बहू के सीरियलों जैसी कहानी आगे बढ़ती है,  लेकिन इसमें जो ग्लैमर है इसका तड़का अलग ही है।  इसकी कहानी को समझने के लिए जरूरी है कि इसकी फैमिली ट्री को समझा जाए।  इसमें पुरुष किरदार तो  केवल प्यादे हैं!  एलजीबीटी किरदार भी आते हैं !

हीरा मंडी के संवाद बड़े ही साफ़ हैं। भाषा पर पकड़ सभी कलाकारों ने बनाए रखी है। मौसिकी  दिलचस्प है। हीरा मंडी पाक़ीज़ा की याद दिलाती है। वैसे ही डायलॉग,  वैसे ही भव्य  झूमर, नाचते फव्वारे,  हीरे जवाहरात का प्रदर्शन,  नोटों की बौछार,  कमी रह जाती तो रेल की सीटी की। प्रकाश और छाया संयोजन शानदार है। अमीर खुसरो का गाना और पीले कपड़े पहने बसंत की स्वागत करती तवायफ हुई दिल जीत लेती हैं। यही है संजय लीला भंसाली का खेला !

जो चीज खटक सकती है,  वह है बनावटीपन की हद! हर फ्रेम को इतना सजा दिया गया है कि लगता ही नहीं, हम गुलामी के दौर की कोई कहानी देख रहे हैं। हरेक पात्र पूरे मेकअप में! कोई भी गरीब नजर नहीं आता! इतनी ज्यादा समृद्धि अगर गुलाम भारत में थी तो इससे तो अच्छा है कि भारत गुलाम ही रहता !!!

मनीषा कोइराला की वापसी हुई है। नेपाल की यह अभिनेत्री ऐसी ख़ालिस उर्दू बोलती है कि असली बिब्बोजान लगती है। अपने रोल को ऋचा चड्ढा ने पूरी शिद्दत से निभाया।  संजीदा शेख की आंखों में लगातार सुलगती हुई आग आंसू बनकर बिखरती है और सोनाक्षी सिन्हा वैम्प के रूप में प्रभावी है। संजय लीला भंसाली मिर्ची को भी खीर बनाकर पेश करने का हुनर जानते हैं। वे कैमरे से खेलते हैं और एक मायावी संसार रचते हैं! इतिहास के एक शर्मिंदगी भरे को वे इतना ग्लैमराइज़्ड कर देते हैं कि दर्शक वाहवाह करने लगते हैं।

 



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