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फ़िल्म समीक्षा : कुछ खट्टा हो जाये

पेज-थ्री            Feb 17, 2024


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

वैधानिक चेतावनी : 'कुछ खट्टा हो जाए'  5जी के ज़माने में 2जी जैसी है! अगर आप गुरु रंधावा के फैन हैं तो ही हीरो के रूप में उनकी यह पहली फ़िल्म पसंद आएगी।

पारिवारिक फिल्मों के नाम पर प्यार, शादी, संयुक्त परिवार, खानदान आगे बढ़ाने का दबाव, गर्भवती होने का झूठा नाटक और उसका भंडा फोड़, करियर, यूपीएससी की तैयारी,  परिवार के लिए तथाकथित बलिदान, अलगाव और फिर वापस मिलना जैसे फार्मूले अब दर्शक पसंद नहीं करते! उस पर भी पंजाबी गाने! इंटरवल तक तो दर्शक इसे झेल पाते हैं पर फिर अधूरी फ़िल्म छोड़कर जाने लगते हैं। महिला सशक्तिकरण के नाम पर कितने लतीफ़े दर्शक झेल सकता है।

कहानी को जैसे बढ़ाया गया है वह अविश्वसनीय है। यूपीएससी क्लियर करते ही कोई कलेक्टर नहीं बन जाता। मिठाई बेचनेवाले महल जैसे घर में नहीं रहते।

निर्देशक जी. अशोक ने सांई मांजरेकर,अनुपम खेर, इला अरुण और साउथ के कॉमेडियन जी ब्रह्मानंद सहित कई कलाकारों को लिया है, पर वे सब खराब कथानक के कारण बेकार ही खर्च हो गए। कुछ संवाद चुटीले हैं और कुछ दो अर्थों वाले भी।

गुरु रंधावा ने म्यूजिक भी दिया है, पर वह दर्शकों में जोश पैदा नहीं कर पाए। गुरु रंधावा भी अब सोनू निगम, दिलजीत दोसांझ, हार्डी संधू, गुरुदास मान, आदित्य नारायण की लाइन में आ गए हैं- जिन्हें गायक के रूप में पसंद किया गया हीरो के रूप में नहीं। सचमुच हर कोई किशोर कुमार जैसा गायन और अभिनय एक साथ नहीं कर सकता!

यह फ़िल्म देखने सिनेमाघर में जाना समय और रुपये की बर्बादी है! अगर गए तो हो सकता है कि बीच से ही बाहर आना पड़े क्योंकि फ़िल्म अझेलनीय है।

 



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