डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
ये फिल्म आपको उलझा कर रख देगी। हिंदी फिल्म उद्योग हर हफ्ते ऐसी ही कोई ना कोई फिल्म परोस देता है। यह फिल्म जोरदार हो सकती थी, लेकिन कमजोर पटकथा के कारण फिल्म 'झोलदार' बन गई है। शुरू में तो समझ में ही नहीं आता कि फिल्म किसी एमएमएस कांड पर है या रॉ के किसी जासूस पर, युवा महिला ब्यूरोक्रेट की सफलता पर है या है भानुमति का कुनबा !
एक हैं भानुमति (जाह्नवी कपूर- फिल्म में सुहानी भाटिया)। युवा हैं। सुन्दर हैं। ब्यूरोक्रेट हैं। बाप भी ब्यूरोक्रेट हैं और दादा भी। बाप का बड़ा नाम है। दादा का भी है। सीधे पीएम तक पहुंच है। मंत्री के साथ बराबरी से बैठती है। कोई प्रोटोकॉल नहीं।
भारतीय विदेश सेवा में काठमांडू में हैं और बेहतरीन काम के लिए प्रमोशन पर सीधे ब्रिटेन में नंबर टू पोजीशन पर भेजा जाता है। लोग कहते हैं कि बड़ी पोस्टिंग पहुँच के कारण मिली है। (आईएफएस अधिकारी भानुमति कहती है कि मैं पूजा खेड़कर जैसी नहीं हूं।) जलवे हैं, शैम्पेन और जैक एंड जिंजर है, वीवीआईपी की पार्टियां हैं। तामझाम है।
लंदन में किसी अनजान विदेशी शेफ के साथ रात बिताती है, जिसका वीडियो बन जाता है और भानुमति को पता चलता है कि जो हमबिस्तर था, वो तो आईएसआई का बंदा है। बेचारी भानुमति को ब्लैकमेल का शिकार होकर देश विरोधी काम करना पड़ता है।
हालात ऐसे बनते हैं कि उसे ही एक मामले में रॉ के लिए काम करना होता है। कहां डिप्टी हाई कमिश्नर और कहाँ रॉ? पर दर्शक बेवकूफ हैं, उलझ जाते हैं। फिर पाकिस्तानी पीएम, आतंकवादी का प्रत्यर्पण, पाक पीएम की यात्रा, उनकी हत्या की साजिश नाकाम, भानुमति की जांबाजी, अगैरह वगैरह, आदि इत्यादि।
समझ नहीं आता कि बंदी नायब तहसीलदार है या डिप्टी है कमिश्नर? फिल्म में गुलशन देवैया, राजेश तैलंग, राजेंद्र गुप्ता, आदिल हुसैन ,रोशन मैथ्यू , मेयांग चांग , जितेंद्र जोशी , जैमिनी पाठक, अली खान और राजेंद्र गुप्ता आदि भी हैं।
फिल्म में झोल ही झोल हैं, मानो दर्शक की परीक्षा हो, कितना झेल सकते हो, बताओ ? ना रे बाबा, ना !
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