डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी।
आज़ाद एक घोड़े का नाम है और यह उसी की कहानी है। घोड़े और इंसान के रिश्तों की कहानी। लेकिन कमज़ोर कहानी के कारण फिल्म प्रभावी नहीं बन सकी।
दर्शक को इसमें बेताब, मर्द, हाथी मेरे साथी, लगान और तेरी मेहरबानियां जैसी कई फिल्मों का मिला जुला रूप देखने को मिलता है।
मुंबई फिल्म जगत में चल रहे भाई भतीजावाद नमूना है यह फिल्म। निर्देशक अभिषेक कपूर , जितेंद्र के भानजे हैं और हीरो अमन देवगन के मामा हैं अजय देवगन। हीरोइन राशा थडानी, रवीना टंडन थडानी की बेटी हैं।
नए कलाकारों ने ताकत तो लगाई लेकिन कमजोर कहानी फिल्म को ले डूबी।
आजाद की हीरोइन बेताब और मर्द की नकचढ़ी हीरोइन जैसी है। फिल्म का घोड़ा आज़ाद राजेश खन्ना की फिल्म हाथी मेरे साथी के दोस्त ही ऐसा है। फिर घुड़सवारी को लेकर जो शर्त लगाई गई, वह लगान की याद दिला देती है।
फिल्म की कहानी 1920 की बताई गई है लेकिन गाने की 21 वी सदी के हैं। 1991 में आई 'पत्थर के फूल' में रवीना टंडन पर फिल्माया गया गाना 'कभी तू छलिया लगता है' की तरह उनकी बेटी ने 'उई अम्मा' गाने में एक्टिंग की है।
फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर ने 'आशिक मस्ताना' में मोनिका बेदी के और 'उफ़ ये मोहब्बत' में ट्विंकल खन्ना के हीरो के साथ काम किया था। लेकिन ये फिल्में नहीं चली।
उनकी निर्देशित आर्यन,फितूर, केदारनाथ और चंडीगढ़ की आशिकी फ्लॉप रही। केवल दो फिल्में - काई पो छे और रॉक ऑन ही सफल रहीं थी। अब यह फिल्म भी उनकी नाकाम फिल्मों में शामिल हो गई है।
फिल्म का सबसे अच्छा पहलू यह है कि इसमें घोड़े के हाव भाव को ऐसे दिखाया गया है मानो वो बात कर रहा हो यही इस फिल्म की एकमात्र खूबी है। घोड़ा है तो मारवाड़ का, लेकिन लगता पूरा अरबी है।
अजय देवगन का भांजा डांस करने में उनसे बेहतर है। अजय देवगन इस फिल्म में मुख्य हीरो नहीं हैं।
अगर आपको घोड़ों और दूसरे चौपायों से प्यार हो तो आप यह फिल्म देखने जा सकते हैं, वरना पैसे की बर्बादी है।
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