फिल्म समीक्षा:ज्योतिषी से पूछकर जाइये राधेश्याम देखने

पेज-थ्री            Mar 11, 2022



डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
अगर आपने राधेश्याम फिल्म का ट्रेलर देखा हो, तो उसे ही 25-30 बार देख लीजिए, इंटरवल तक फिल्म वैसी ही है। उसके बाद एक मिक्सी में थोड़ी टाइटेनिक, थोड़ी बाहुबली और थोड़ी सी साहो मिलाकर घोंट लीजिए, हो गई राधेश्याम तैयार।

फिल्म में वीएफएक्स का बेहतरीन उपयोग किया गया है और लोकेशन्स काफी सुंदर है। जिंदगी में पहली फिल्म देखी, जिसमें हीरो कोई हस्तरेखाविद की भूमिका में है और हस्तरेखाविद भी ऐसा कि जो भूत, भविष्य, वर्तमान सभी पढ़ लेता हैं। उसकी कोई भविष्यवाणी गलत साबित नहीं हो पाई। प्रधानमंत्री इमरजेंसी लगाएगी यह घोषणा भी हस्तरेखाविद प्रधानमंत्री की हथेली देखकर कर देता है।

अब फिल्म देखने के बाद यह बात कही जा सकती है कि अगर आपके भाग्य में राधेश्याम देखना होगा, तो वह आप देखेंगे ही। चाहे फिल्म कितनी भी झेलनीय क्यों न लगे।

हीरो हस्तरेखाविद क्या है, नास्त्रेदमस का बाप हैं। उसका गुरू ही उसे हस्तरेखा विज्ञापन का आइंस्टीन कहता हैं। अब इतना बड़ा आदमी हैं, तो वह कोई मुंबई, नागपुर में तो रहेगा नहीं। वह घूमता फिरेगा, लंदन, रोम, न्यूयॉर्क, स्वीटजरलैंड और यूरोप के शानदार इलाकों में। काम करने के लिए उसके पास केवल मोहब्बत करना है।

जब फुर्सत मिलती है, तब हस्तरेखाविद देख लेता है। फिल्म में हीरो को या उसके किसी मैनेजर को एक पैसा वसूल करते नहीं दिखाया गया, लेकिन बंदा है बिंदास। जब चाहता है, तब उस देश में चला जाता है। महंगी स्पोर्ट्स बाइक और स्पोर्ट्स कार में घूमता हैं।

पैराग्लाइडिंग करता हैं, महंगे-महंगे होटलों में जाता है और मौका पड़ने पर रजनीकांत जैसा कोई भी कर्तब दिखाने में सक्षम हैं। मूल रूप से कन्नड़ में बनी फिल्म एक साथ हिन्दी, तमिल, तेलुगु, मलयालम भाषाओं में भी रिलीज हुई हैं।

कोरोना काल के बाद सिनेमा घरों और मल्टीप्लेक्स में जो मय्यत जैसा माहौल था, वह अब टूटने लगा है। छोरा-छोरियों को फिल्म पसंद आएगी, क्योंकि इसमें हीरो वहीं सबकुछ करता है, जिसका सपना भारत के मध्यवर्गीय शहरों में रहने वाले अधिकांश युवा देखते हैं।

घूमना-फिरना, खाना-पीना, प्रसिद्ध जगहों पर यात्रा करना, हर मौसम में पर्यटन केन्द्रों पर जाना, यही सबकुछ हीरो करता रहता हैं।

टिकट लेकर सामने बैठा युवा दर्शक, शायद यही सपना देखना चाहता है। इसीलिए सिनेमा हॉल में युवाओं की भीड़ नजर आ रही हैं। कन्नड़ में प्रभास का अपना जादू हैं। पूजा हेगड़े हीरोइन हैं और एयरटेल गर्ल के रूप में मशहूर हुई साशा श्रेत्री, भाग्यश्री और मुरली शर्मा आदि भी अलग भूमिकाओं में हैं।

फिल्म देखकर यहीं लगता है कि अस्पतालों में काम करने वाले तमाम डॉक्टर और नर्सों का एक मात्र दायित्व लेडी डॉक्टर के प्रेम प्रसंगों में रूची लेना और उसे आगे बढ़ाने में मदद करना होता हैं। विदेश में ऐसे अस्पताल होते हैं, जहां मरीज कम होते हैं और डॉक्टर ज्यादा।

मरीज भी ऐसे, जो इलाज के लिए नहीं टाइम पास करने के लिए भर्ती हो जाते हैं। अस्पतालों में ऐसे पर्दे लगे होते हैं, जैसे कि किसी बाल रूम डांस की तैयारी चल रही हो। फिल्म में हर चीज को भव्य और ग्लैमरस दिखाने की कोशिश की गई हैं। गानों में कोई दम नहीं।

फिल्म में यही द्वंद दिखाने की कोशिश की गई है कि हाथों की रेखाओं में जो लिखा है, वह होकर ही रहता है। अंत तक आते-आते उसमें संशोधन किया जाता है और कहा जाता है कि 1 प्रतिशत लोग ऐसे होते हैं, जो अपने भाग्य की रेखाओं को अपने कर्मों से बदलने में सक्षम होते हैं।

मेडीकल साइंस और ज्योतिष के बीच की लड़ाई भी फिल्म में दिखाई गई हैं, लेकिन बेचारा डायरेक्टर पूरी फिल्म में तो यह दिखा नहीं सकता था कि भाग्य ही प्रबल होता हैं, इसलिए जो बीमार है, उसका इलाज मत करो।

पात्रों से कहलवाना पड़ा कि कर्म भाग्य को बदल सकता है और चिकित्सा विज्ञान भी चमत्कार कर सकता हैं। फिल्म के निर्देशक राधाकृष्ण कुमार हैं और निर्माता गोपीकृष्ण। टी-सीरिज वाले भूषण कुमार ने फिल्म को रिलीज किया हैं।

दिलचस्प बात यह है कि ज्योतिष के प्रति आस्था दिखाने वाली यह फिल्म कोरोना के चक्कर में दो साल डब्बे में बंद रही।

इससे जाहिर है अब फिल्म वाले कह सकते हैं कि हो गया ना भाग्य प्रबल और कोरोना से लड़ाई लड़ने वाले डॉक्टर कह सकते हैं कि चमत्कार चिकित्सा विज्ञान का हैं।

फिल्म 25 साल तक के युवाओं के लिए मनोरंजक हैं। 25 से 40 की उम्र वालों के लिए झेलनीय और 40 से बड़ों के लिए अझेलनीय हैं। (शर्ते लागू)

 



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