मल्हार मीडिया डेस्क।
पहले हरियाणा और जम्मू-कश्मीर…और अब महाराष्ट्र और झारखंड हर जहर कांग्रेस की लुटिया डूब रही है. बीते दो महीने के दौरान इन चारों राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह हारी है. छह माह पहले लोकसभा चुनाव में पार्टी को जो मोमेंटम मिला था वह कुछ ही दिनों में फुस्स हो गया. ऐसे में सवाल उठाया जा रहा है कि आने वाले समय में क्या कमजोर होती कांग्रेस और कमजोरी होगी और उसे कमजोर करने का काम उसके अपने करेंगे?
जी हां, हम बात कांग्रेस को उसके अपने सहयोगी दलों में मिलने वाली संभावित चुनौतियों की. कांग्रेस पार्टी का महाराष्ट्र में बेहद बुरा प्रदर्शन रहा है. वह मात्र 16 सीटों पर सिमट गई है. छह माह पहले ही वह राज्य की 14 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी. बात झारखंड की करें तो उसे 16 सीटों पर जीत हासिल हुई है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो को 34 सीटों पर जीत मिली है. 2019 में झामुमो को 30 सीटें मिली थीं. इस बार राजद को भी चार सीटें मिली हैं.
कांग्रेस पार्टी ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 16 पर जीत मिली. दूसरी तरफ झामुमो ने 43 सीटों पर चुनाव लड़कर 34 पर जीत हासिल की. इस तरह कांग्रेस का स्ट्राइक रेट भी झामुमो की तुलना में काफी खराब रहा. कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा के साथ था. कांग्रेस हर जगह भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में पिछड़ रही है. दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन का हिस्सा रही राजद ने शानदार प्रदर्शन किया है. गठबंधन में उसे छह सीटें मिली थीं. उसमें से उसे चार पर जीत मिली है. यानी कांग्रेस की कमजोरी हर तरफ दिखती है.
हरियाणा से पटरी से उतरी कांग्रेस
दरअसल, हाल में संपन्न हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी इंडिया गठबंधन के साथियों को साथ लेकर चलने में नाकाम रही. उसने सहयोगी दलों के साथ कोई समझौता नहीं किया. अगर वह राज्य में चुनाव जीत जाती तो उसके पास समझौता नहीं करने को जस्टिफाई करने के लिए कारण होते. लेकिन, हार के बाद सवाल उठ रहे हैं कि जब उसको सहयोगियों को साथ लेकर चलने की बारी आती हो तो वह कन्नी काट लेती है. बावजूद इसके झारखंड में उसको ठीक-ठाक सीटें मिलीं.
अब बिहार की बारी
अगले साल अक्टूबर में बिहार में विधानसभा चुनाव हैं. यहां भी कांग्रेस राजद के साथ इंडिया गठबंधने की साझेदारी है. लेकिन, बीते लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे के मसले पर राजद और कांग्रेस के बीच तल्खी जगजाहिर है. लालू यादव ने कांग्रेस को बताए बिना कई सीटों के लिए अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए थे. राज्य में राजद बड़े भाई की भूमिका में है. बिहार एक बड़ा राज्य है और यहां विधानसभा की 243 सीटें हैं. इससे पहले अगले साल फरवरी में दिल्ली में विधानसभा चुनाव है. दिल्ली में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भाजपा है. यहां भी आप के साथ गठबंधन की संभावना कम है, क्योंकि कांग्रेस ने हरियाणा में आप के साथ गठबंधन नहीं किया था.
इंडिया के भीतर कांग्रेस के साथ होगा खेला
लोकसभा चुनाव में एक उम्मीद लेकर आई कांग्रेस उसके बाद के चार विधानसभा चुनावों में बुरी तरह पिट गई है. ऐसे में इंडिया गठबंधन के भीतर ही अब उसकी बार्गेनिंग पावर गिर गई है. राहुल गांधी बेशक लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं लेकिन हर राज्य में उनकी पार्टी लगातार कमजोर हो रही है. ऐसे में सहयोगी दल को भी उनसे कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है. इसकी झलक हेमंत सोरेन ने झारखंड में दे दी है. माना जा रहा है कि राज्य में हेमंत सोरेन पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम की कुर्सी सौंपकर खुद पार्टी की कमान संभालेंगे और तेजस्वी यादव के साथ मिलकर इंडिया गठबंधन को मजबूत करने का काम करेंगे, लेकिन इस गठबंधन में कांग्रेस को वो ताकत नहीं मिलेगी जो लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद उसे हासिल हुई थी.
न्यूज 18
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