रायपुर किशोर कर।
भारतीय जनता पार्टी के अंदर अनुशासन और सब कुछ ठीक-ठाक होने का दावा करने वाली भाजपा सदमे में है। पार्टी के अंदर सुलग रहे विरोधाभास खुलकर सामने आ गया और प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बनाने की रणनीति पर जोरदार झटका लग गया।
दरअसल भाजपा के कद्दावर आदिवासी नेता पार्टी के कतिपय प्रतिद्वंद्वियों के रवैए से नाराज होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समक्ष हाथ का साथ थाम लिया है, और उन्होंने कांग्रेस प्रवेश के साथ श्री साय ने कहा कि कचरे से खाद बना लो यह कितनी अच्छी बात है, रसायनिक खाद तो बंद कर देना चाहिए ये बीमारी फैलाती हैं …?
तीन बार विधायक, तीन बार लोकसभा , दो बार राज्यसभा सदस्य ,दो बार भाजपा पार्टी के अध्यक्ष अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के और केंद्र में राष्ट्रीय अनूसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पद पर रहे इतना सब प्राप्ति के बावजूद आखिर साय के लिए ऐसी कौन सी परिस्थितियां रहीं कि उन्हें कांग्रेस का दामन थामने मजबूर होना पड़ा।
हालांकि भाजपा उनके बदले दूसरे आदिवासी नेता को मौका देने के फेर में थी, शायद उन्हें इसका अहसास हो गया था।
श्री साय के बारे में जग जाहिर है कि वे नमक नही खाते थे तो क्या हम ये मानें कि वे किसी के साथ नमक अदायगी नही करगें..?
अब सवाल खड़ा होता है के लंबे समय तक भाजपा का दामन थामने वाले और अपने आप को एक सफल राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित करने वाले डॉ नंद कुमार साय का हश्र स्व.विद्याचरण शुक्ल की तरह तो नहीं हो जायेगा?
जो भाजपा में शामिल हुए और तवज्जो नहीं मिलने के कारण वापस कांग्रेस में जाने मजबूर हुए थे।
या कहीं ऐसा तो नहीं की छत्तीसगढ़ की कद्दावर भाजपा सांसद रहीं स्व. श्रीमती करुणा शुक्ला की तरह तो नहीं हो जायेगा ? उन्हें कांग्रेस ने कभी अच्छा पद नहीं दिया।
वैसे श्री साय को कांग्रेस में जाना ही था तो ये समय का चयन उचित नहीं कहा जा सकता है? उन्हें कुछ और रुक कर कांग्रेस में जाना चाहिए था जिससे कांग्रेस को लाभ मिल सकता और कांग्रेस को भी इतनी जल्दी क्या था की उन्हें शामिल करना पड़ा।
हां तात्कालिक लाभ तो कांग्रेस जरूर उठा पायेगी , थोड़ा समय और रुकते तो इसका लाभ उन्हें जरूर मिलता।
हालांकि श्री साय ने सोशल मीडिया स्टेटस में लिखा है कि ‘ उम्र नहीं है, बाधा मेरी रक्त में अब भी ताप है ‘
अब तो आने वाला समय ही बताएगा कि साय के कांग्रेस में शामिल होने का लाभ कांग्रेस चुनाव में उठा पाती है या नहीं
डॉ नंदकुमार साहित्य कांग्रेस में जाने और भाजपा छोड़ने के बाद जहां भाजपा के अंदर आदिवासी वोट बैंक के नुकसान का खतरा मंडराने लगा है वहीं दूसरी ओर एक सशक्त आदिवासी चेहरे के कांग्रेस में शामिल होने के बाद कांग्रेस के अंदर भूपेश बघेल के सीएम की कुर्सी को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में भी चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।
हालांकि अभी विधानसभा चुनाव के लिए लगभग 6 महीने का समय बाकी है ऐसे हालातों में भाजपा अपने आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए क्या रणनीति अपनाती है और कांग्रेस डॉ नंदकुमार साय का किस तरह से लाभ उठा पाती है। यह देखने वाली बात होगी।
फिर भी भाजपा के लिए आत्ममंथन का दौर शुरू हो गया है, और चुनावी कवायद को लेकर रणनीति में जुटी भाजपा के रणनीतिकार अब नंदकुमार साय की रिक्तता को कैसे भर पाएंगे? यह सवाल भी सामने आ गया है।
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