राकेश दुबे।
संघ प्रणीत भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को जो कुछ समझ आ रहा है, कह रहे हैं। आराध्यों की “जाति” की खोज करना.उसके नाम पर कुछ भी ऊल-जलूल कहना इस पार्टी में फैशन बनता जा रहा है।
हद तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं के साथ संघ भी चुप्पी साधे है। लगता है संघ ने भी अपने एजेंडे से ‘जाति विहीन समाज’ को निकाल दिया है। यह सब क्यों हो रहा है समझ से परे है और इस पर चुप्पी तो और भी रहस्यमय है।
उत्तर प्रदेश भाजपा के फायर ब्रांड नेता एवं बीजेपी व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक विनीत अग्रवाल शारदा ने अब हनुमान को वैश्य बता दिया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि 'भगवान हनुमान के साथ भगवान श्रीराम भी वैश्य समाज से है।
इस बीजेपी नेता ने यहाँ तक कहा कि वैश्य भगवान श्रीराम के वंशज हैं। विनीत अग्रवाल का मानना है कि हनुमान को भगवान राम का दत्तक पुत्र माना जाता है जिसका साफ अर्थ है कि भगवान राम भी वैश्य थे।
विनीत अग्रवाल शारदा का यह भी दावा है कि अयोध्या में राम मंदिर का कामकाज जारी है और जल्द ही भगवान तंबू से निकलकर अपने भव्य मंदिर में रहने जाएंगे। लेकिन बीजेपी नेता इस सवाल को टाल गए कि बीते दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को दलित बताया था और बाद में इस बयान पर सफाई भी दी थी।
योगी आदित्यनाथ के इस बयान के बाद हनुमान की जाति को लेकर कई दावे किए गए। उत्तर प्रदेश बीजेपी के एमएलसी बुक्कल नवाब हनुमान को मुसलमान बता चुके हैं। उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी जाट बता चुके हैं।
अपनी बात के समर्थन में चौधरी ने कहा था कि 'हम किसी भी स्वभाव से पता करते हैं कि ये किसके वंशज होंगे। जैसे वैश्य जाति को हम अग्रसेन महाराज के वंशज मानते हैं, क्योंकि महाराज अग्रसेन स्वयं व्यापार करते थे।
जाट का स्वभाव होता है कि अगर किसी के साथ अन्याय हो रहा हो, तो वो बगैर बात के, चाहे वह जान पहचान का हो या न हो, वो उसमें जरूर कूद पड़ता है|। ऐसे ही हनुमान भगवान राम की पत्नी सीता के अपहरण होने पर दास के रूप में शामिल हुए, यानि हनुमान की प्रवृति जाटों से मिलती है।
केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने कहा कि हनुमान आर्य थे। उस समय कोई और जाति नहीं थी, हनुमान आर्य जाति के महापुरुष थे। भगवान राम और हनुमान जी के युग में इस देश में कोई जाति व्यवस्था नहीं थी, कोई दलित,वंचित, शोषित नहीं था।
राजस्थान में विधानसभा चुनावों के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने हनुमान को दलित बताया था। इसके बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साय ने हनुमान को आदिवासी होने का दावा किया।
इस जाति बखान प्रतियोगिता से दो सवाल पैदा होते हैं। भारतीय जनता पार्टी में ही यह होड़ क्यों है ? और इसकी जरूरत क्या है ? दूसरा देव तुल्य कार्यकर्ता रचने का दावा करने वाला संघ इस विषय पर मौन क्यों है ? इन सवालों का जवाब ही “आराध्यों” की जाति खोज प्रतियोगिता को रोकेगी। अभी जो परिणाम दिखते हैं, वे मंगलकारी नहीं हैं।
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