डॉ राकेश पाठक।
मध्य प्रदेश विधान सभा का चुनाव नवम्बर 2018 में होना है लेकिन उससे ठीक एक साल पहले बीजेपी और कांग्रेस लिटमस पेपर टेस्ट से गुजर रहीं हैं। पहले लिटमस टेस्ट में कांग्रेस और खासकर अजय सिंह 'राहुल' ने धमाकेदार जीत दर्ज करा दी है।अब आने वाले दिनों में ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र की दो सीटों पर उप चुनाव होना है। इन पर हार,जीत सिंधिया के लिए आगे का रास्ता तय करने का काम करेंगे।
प्रदेश के चित्रकूट,मुंगावली और कोलारस विधानसभा क्षेत्रों के विधायकों के निधन से उपचुनाव की नौबत आई है। यह संयोग ही है कि इन तीनों सीटों पर पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई थी। चित्रकूट से प्रेम सिंह,मुंगावली से महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और कोलारस से रामसिंह यादव विधायक थे।
चित्रकूट नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह 'राहुल' और मुंगावली,कोलारस पूर्व मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र में हैं। चित्रकूट में आज का नतीजा कांग्रेस के लिए बूस्टर डोज़ साबित होगा। भले ही कांग्रेस पार्टी पूरी तरह मिलकर लड़ी हो लेकिन ये जीत सीधे तौर पर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह 'राहुल' के खाते में जाएगी।
बीजेपी के लिए चित्रकूट के घाट पर "धोबी पाट" हार बहुत कसकने वाली है। प्रदेश के मुखिया शिवराज सहित पूरी सरकार एड़ी चोटी का जोर लगाकर भी पार्टी को नहीं जिता सकी।शिवराज जिस गांव में आदिवासी की झोंपड़ी में रुके उस गांव में भी पार्टी हार गई।बीजेपी ने हिंदुत्व के मुखर चेहरे यूपी के सी एम योगी आदित्यनाथ से मंदाकिनी के तट पर दीपदान भी कराया लेकिन कमल दल की नैया डूब ही गयी।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए ये मौका बहुत कौन अहम है क्योंकि दो विधानसभा सीटें उनके अपने संसदीय क्षेत्र में आती हैं इसलिए जीत को बरकरार रखने की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर है।
अगले चुनाव में मुख्यमंत्री का "चेहरा" बनने की कवायद में भी सिंधिया का नाम सबसे आगे है इसलिए इन सीटों पर हार जीत से उनकी संभावनाओं पर असर पड़ सकता है। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के निधन के बाद अटेर(भिंड सीट ) पर कांग्रेस की जीत का श्रेय सिंधिया के खाते में दर्ज है।
फिलहाल ये तीन उपचुनाव अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए लिटमस पेपर टेस्ट जैसे ही हैं लेकिन दोनों पार्टीयों के लिए हैं बहुत महत्वपूर्ण।
फिलहाल चित्रकूट में उपचुनाव का ऊंट "पंजे" के बल करवट ले गया है सो कांग्रेस को थोड़ी सांस लेने का मौका मिल गया है।लेकिन फिर भी 2018 में सत्ता की "कौड़ी अभी बहुत दूर" ही है।
लगभग डेढ़ दशक से सत्ता पर काबिज बीजेपी के लिए इस हार से बौनी खराब हो गयी है। अब उसे बाक़ी दो सीटों के उपचुनाव में अतिरिक्त ताकत झौंकना पड़ेगी जबकि ये सीटें आमतौर पर कांग्रेस की परंपरागत सीटें मानी जाती हैं।
खास बात यह भी है कि दोनों सीटें मुख्यमंत्री का चेहरा बनने के सबसे प्रबल दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र में हैं। अभी उपचुनाव की तारीख भी घोषित नहीं हुई है लेकिन सिंधिया ने वहां चौसर बिछा दी है। जाहिर सी बात है उनके लिए ये दोनों उपचुनाव आर या पार के साबित होंगे।
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