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लाचार हो या अनाचार, चार दोनों में छिपा है गनीमत है मामला दुराचार तक नहीं पहुंचा

राज्य            Jul 19, 2019


प्रकाश भटनागर।
मध्यप्रदेश के चार मंत्रियों को नया जिम्मा मिल गया है। वे शिवराज सरकार के समय एक ही दिन में सात करोड़ पौधों के रोपण की सच्चाई तलाशेंगे।

ये चार का अंक है बड़ा जोरदार। ये शिवराज सिंह चौहान से कुछ यूं छिटका कि उनका लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का सपना टूट गया।

सत्ता संभालने के बाद से ही कमलनाथ निरंतर मुसीबतों से 'दो-चार' हो रहे हैं। उनके मंत्रिमंडल के अलग-अलग गुट जहां 'चार यार मिल जाएं।' की शैली में अपनी-अपनी ताकत दिखाने में जुटे हुए हैं। अध्यक्ष पद को लतियाते राहुल गांधी की हालत भी 'उम्र-ए-दराज मांगकर लाये थे चार दिन। दो आरजू में कट गये, दो इंतजार में।' वाली हो गयी है।

आरजू थी नरेंद्र मोदी को हराने की। अब उन्हें इंतजार है पार्टी के भीतर मौजूद निकम्मों के इस्तीफे का। एक ही गेंद पर चार रन यानी चौक्का तो गोपाल भार्गव ने भी बड़ी खूबसूरती से जड़ दिया।

पौधारोपण की बात पर विधानसभा में ऐसी चुनौती दे दी कि शिवराज के खिलाफ जांच का पुख्ता इंतजाम हो गया।

भार्गव स्वभाव से ही धाकड़ हैं। उस पर बुंदेलखंड का पानी उन्हें और ताकत से भरा हुआ है। फिर सबसे खास बात यह कि पौधारोपण से उनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं रहा था। इसलिए उन्हें जो कहना, करना था वह कह और कर गुजरे।

बाकी शिवराज जानें और जाने उनका काम। वैसे एक महीना, चार मंत्री और सात करोड़ गड्ढे का आंकड़ा रोचक बन पड़ा है। वह मुबारक दिन याद आ रहा है, जब शिवराज ने सपत्नीक विधिवत पूजन के बाद एक पौधा रोपकर महा अभियान की शुरूआत की थी।

पूर्व मुख्यमंत्री पेशे से किसान हैं। कृषक जमीन खोदकर वहां अच्छी फसल की कामना के बीज बोता है। चौहान ने भी शायद उस गड्ढे में एक बार फिर लहलहाती सियासी फसल की मन्नत मानी होगी।

लेकिन चंद सीटों का सूखा पड़ा और हाथी तथा सायकिल की सवारी करते हुए कमलनाथ ने फसल की हरियाली को अपने खलिहान में बंद कर लिया।

अब आरोप है कि इस पौधा लगाने की प्रक्रिया के नाम पर 499 करोड़ रुपए यूं ही बर्बाद कर दिये गये। सच कहा जाए तो जिस दिन शिवराज सरकार ने इस को रिकॉर्ड बनने का ऐलान किया, उसी दिन से यह लगने लगा था कि मामला वैसा नहीं है, जैसा दिखाया जा रहा है।

उम्मीद की जा सकती है कि अगले स्वतंत्रता दिवस के आसपास इस पौधारोपण का सच भी आजाद होकर सामने आ जाएगा।

फिलहाल तो यह सामने आया है कि सज्जन सिंह वर्मा अपनी ही पार्टी के लोगों की बजाय विपक्ष पर भी गुस्सा करने लगे हैं।

कल विधानसभा में उन्होंने पूर्व मंत्री रामपाल सिंह को चमका दिया। मामला पीडब्ल्यू के काम करने वाले ठेकेदारों के भुगतान का था। मंत्री रहते हुए रामपाल का कामकाज चाहे जितना भी सुस्त रहा हो, लेकिन अब वह 'तुरंत भुगतान,महा कल्याण' वाली मांग कर रहे हैं।

 

इसलिए वर्मा की डांट खाकर वह चुप रह गये। लेकिन मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर चुप नहीं रहे। भाजपा के हंगामे से इतने क्षुब्ध हुए कि विधानसभा परिसर में बनी बापू की मूर्ति के नीचे जा बैठे।

यकीनन यह दु:ख के अतिरेक का मामला था। नाउम्मीदी के चरम की स्थिति थी। वरना जो काम विधानसभा अध्यक्ष से औपचारिक शिकायत या विशेषाधिकार हनन के नोटिस से हो सकता था, उसके लिए बापू की प्रतिमा को तकलीफ देने की क्या जरूरत थी!

अब बेचारे बापू क्या-क्या करें! 'कांग्रेस-मुक्त भारत' वाली अपनी अधूरी इच्छा पूरी करने के लिए प्रयासरत नरेंद्र मोदी को दुलार से निहारें या फिर प्रद्युम्न जैसों को कोफ्त से भरकर देखते रहें! इस अनाचार के मारे वह बेचारे स्वर्ग में भी खुद को लाचार महसूस करते होंगे।

लाचार हो या अनाचार, चार दोनो में छिपा है। गनीमत है कि मामला दुराचार तक नहीं पहुंचा है। ऐसा होना भी नहीं चाहिए।

डोली उठाने के लिए चार लोगों की जरूरत होती है और अर्थी को कांधा देने के लिए भी इतनी ही संख्या पर्याप्त है।

चार मंत्रियों का गड्ढा खोजो अभियान किस की डोली उठाता है और किस की अर्थी, यह देखना अब रोचक होगा। अंत में एक जिक्र प्रासंगिक है।

हैदराबाद में बची चारमीनार देश का सीना गर्व से चौड़ा कर देती है और चारमीनार सिगरेट इंसानी सीने की धड़कनों की आयु कम कर मरने का पुख्ता बंदोबस्त करती है। सीना यानी हृदय।

मध्यप्रदेश को भी देश का हृदय प्रदेश कहते हैं। इस प्रदेश में ऐसे सियासी घटनाक्रम चलते रहने चाहिए। ताकि किसी भी बहाने सही, मगर दिल तो धड़कता रहे।

वे अपने राजनीतिक इतिहास के सबसे खुशनुमा दौर से गुजर रहे हैं। अपेक्षाओं से भी अधिक जनसमर्थन मिला है उन्हें। केंद्र के साथ ही अधिकतर राज्यों में उन्हीं की सरकारें हैं।

फिर वे इतने हलकान क्यों हैं? न्यूनतम राजनीतिक शुचिता और लोकलाज को भी ताक पर रख वे क्यों खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने में लगे हैं?

आखिर क्यों...?

क्या ये कुछ और राज्यों में महज सत्ता हासिल करने के लिये है?

उन्हें क्या हासिल हो जाएगा अगर वे तमाम राजनीतिक नैतिकताओं को दरकिनार कर कर्नाटक में भी अपनी सरकार बना लें? या...भविष्य में इसी खेल के सहारे मध्य प्रदेश या राजस्थान में?

 


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