मनमोहन सिंह।
सलाम श्रीजेश, हमारी शुभकामनाएं
महान शंकर लक्ष्मण की याद दिला दी...
मेरी खेल पत्रकारिता के जीवन में ऐसा बहुत कम वार हुआ है जब किसी एक खिलाड़ी के बारे में लिखने के लिए दिल में जज़्बात उठे हों। आज भारतीय हॉकी टीम के गोलरक्षक पीआर श्रीजेश के बारे में लिखने को मन उतावला है। हमारी हॉकी टीम पेरिस ओलंपिक खेलों से कांस्य का पदक ले कर लौट रही है। टोक्यो ओलंपिक में भी हम ने कांस्य ही जीता था।
लगातार दो ओलंपिक खेलों से कांस्य पदक जीतना यह बताता है कि टीम के खेल में एक निरंतरता बनी हुई है। इससे पूर्व 1968 (मैक्सिको सिटी ) और 1972 (म्यूनिख) में भी टीम ने लगातार दो ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीते थे।
जिन लोगों ने कांस्य पदक के लिए भारत और स्पेन का मैच देखा है वे अच्छी तरह जानते हैं कि भारत की उस जीत में श्रीजेश का कितना बड़ा योगदान था। जहां भी हमारी रक्षापंक्ति लड़खड़ाई वहीं श्रीजेश खड़े नज़र आए। पूरे टूर्नामेंट के दौरान हमने कभी भी इस मजबूत दीवार को कमज़ोर होते नहीं देखा।
कल के इस मैच ने मुझे महान गोलराक्षक शंकर लक्ष्मण की वो गोलकीपिंग याद दिला दी जो उन्होंने 1964 के टोक्यो ओलंपिक के फाइनल मैच में पाकिस्तान के खिलाफ की थी। भारत ने चरणजीत सिंह की कप्तानी में वो मैच और गोल्ड मेडल भारत के लिए जीता था। उस समय की फोटोग्राफ्स को अगर देखोगे तो पूरी टीम ने शंकर लक्ष्मण को अपने कंधों पर उठा रखा था। हालांकि वहां भारत का एक मात्र गोल मोहिंदर लाल ने पेनल्टी स्ट्रोक से बनाया था।लक्ष्मण के बाद गोलकीपिंग का कद पीआर श्रीजेश ने उरूज पर पहुंचाया है।
2006 से भारत की दीवार बने श्रीजेश ने देश के लिए 300 से अधिक मैच खेले। केरल में जन्मे श्रीजेश ने इन ओलंपिक खेलों से पहले ही अपने संन्यास की घोषणा कर दी थी। अब यह जिम्मेदारी पूरी टीम की थी कि उन्हें कैसी विदाई दी जाए। और टीम ने उन्हें विदाई पर दिया कांस्य पदक। एक ऐसा तोहफा जो वो चाहते भी थे और उसके अधिकारी भी थे।
मैच के खत्म होते ही पूरी टीम जिस तरह उनसे आ कर लिपटी, उनके सामने झुक कर उन्हें सलाम किया और जिस तरह टीम के कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने उनसे अपने कांधों पर उठा कर चक्कर लगाया, उन भावुक पलों को हुबहू कागज़ पर उतरने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। उन भावनाओं को बस महसूस किया जा सकता है।
...श्रीजेश ने खेल प्रेमियों को अंग्रेजी में लिखे अपने संदेश में कहा है:
" आज जब कि मैं आखरी बार गोल पोस्ट के नीचे खड़ा होने जा रहा हूं तब मेरा दिल अहसान और गर्व से भरा हुआ है। आज मैं भारत के लिए अपना आखरी मैच खेल रहा हूं। मेरा हर बचाव, हर डाइव, दर्शकों का शोर हमेशा मेरे दिल में गूंजता रहेगा। आभार भारत, मुझ पर विश्वास करने के लिए, मेरे साथ खड़ा होने के लिए। यह अंत नहीं शुरुआत है...जयहिंद" ...
श्रीजेश अब भारत की गोलपोस्ट में नहीं होंगे पर गोलकीपिंग का जो स्तर उन्होंने बना दिया है उसे पाने के लिए अगली पीढ़ी को बहुत मेहनत करना होगी....
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