तीन तलाक,हलाला जैसी इस्लामी प्रथाओं को शायरा की चुनौती
वामा
Apr 19, 2016
मल्हार मीडिया ब्यूरो।
उत्तराखंड की तलाकशुदा महिला सायरा बानो का मामला केंद्र सरकार की गले की हड्डी बनता जा रहा है। सायरा ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिदत, हलाला और पुरुषों की एक से ज्यादा शादी जैसी इस्लामी प्रथाओं को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर बेहद कड़ा रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार से अपना पक्ष रखने को कहा है। उधर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मोदी सरकार से कहा है कि वो इस मामले में ना कोई हस्तक्षेप करे और ना कोई राय दे।
इस मामले ने आज से ठीक 30 साल पहले हुए शाहबानो मामले की याद दिला दी है। उस समय राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नए कानून के जरिये पलट दिया था। सवाल ये है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत करने वाली बीजेपी सरकार अब क्या करेगी? उससे भी बड़ा सवाल ये है कि जब पाकिस्तान, सऊदी अरब, इराक, जॉडर्न जैसे इस्लामिक बहुल देश तलाक-ए-बिदत जैसे प्रथा खत्म कर सकते हैं तो भारतीय उलेमाओं को क्या दिक्कत है। आवाज़ अड्डा पर यहां इसी बेहद अहम मुद्दे पर चर्चा की जा रही है।
उत्तराखंड की सायरा बानो को उसके पति ने शादी के 10 साल बाद मायके में चिट्ठी लिख कर तलाक दे दिया। चिट्ठी में सिर्फ तीन बार तलाक...तलाक...तलाक लिखा था। सायरा ने गुजारा भत्ता के बजाए तलाक की वैधता को चुनौती दी। इसके अलावा उसने एक से ज्यादा शादी और हलाला को भी चुनौती दी। इसके लिए सायरा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा की कानूनी वैधता जांचने के आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ लैंगिक भेदभाव की जांच जरूरी है। शादी और विरासत से जुड़े कानून धर्म का हिस्सा नहीं हैं। समय के साथ कानून में बदलाव होना जरूरी है। केंद्र सरकार को इस मामले में अपना पक्ष रखना चाहिए। कोर्ट ने इस मामले पर अपने आप संज्ञान लिया है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में विरोधी पार्टी बना है। ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि वह एससी में तलाक की प्रथा में छेड़छाड़ का विरोध करेगा। केंद्र सरकार इस मामले में दखल ना दे। बोर्ड का कहना है कि केंद्र तलाक, हलाला, एक से ज्यादा विवाह पर राय ना दे। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील है कि एससी को कुरान पर बने पर्सनल लॉ की समीक्षा का हक नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ संसद से पास हुआ कानून नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ एक सांस्कृतिक मामला हैष इसे मजहब से अलग नहीं किया जा सकता। यूनिफॉर्म सिविल कोड एकता की गारंटी नहीं है।
आपको बता दें कि सऊदी अरब, पाकिस्तान, इराक, इजिप्ट, जॉर्डन, कुवैत, सूडान, सीरिया, यूएई, यमन जैसे मुस्लिम देशों नें तीन तलाक प्रथा खत्म कर दी है। बीएमएमए के 2015 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 90 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक और एक से ज्यादा शादी से मुक्ति चाहती हैं। तो अब सवाल ये है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत करने वाली बीजेपी सरकार अब क्या करेगी!
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