13 राष्ट्राध्यक्षों,लाखों लोगों की मौजूदगी में ममता की मूरत मदर टेरेसा संत घोषित हुईं

वामा            Sep 04, 2016


मल्हार मीडिया। पोप फ्रांसिस ने रविवार (4 सितंबर) को मदर टेरेसा को संत घोषित करते हुए उन्हें ममता की मूरत और दीन दुखियों का प्रबल हिमायती बताया। पोप ने कहा कि भले ही हमें उन्हें संत टेरेसा कहने में कुछ मुश्किल रही हो, लेकिन उनकी पवित्रता हमारे इतने करीब, इतनी करुणामय और सार्थक है कि हम स्वभाविक रूप से उन्हें मदर कहना जारी रखेंगे। पोप ने कहा कि उन्होंने इस दुनिया की शक्तियों के समक्ष अपनी आवाज उठाई, ताकि वे अपने उन अपराधों के लिए दोष को स्वीकार कर सकें, जो गरीबी के जरिए उन्होंने पैदा की है। पोप फ्रांसिस ने वेटिकन के सेंट पीटर्स स्कवायर में एक लाख श्रद्धालुओं और 13 राष्ट्राध्यक्षों और सैकड़ों की संख्या में ननों की मौजूदगी में उन्हें संत की उपाधि दी। इस मौके पर स्पेन की रानी सोफिया और 1500 बेघर लोग भी मौजूद थी। पोप ने भारतीय महानगर की झुग्गी बस्तियों में टेरेसा के कार्य को दीन दुखियों के पास ईश्वर के मौजूद होने के साक्ष्य के रूप में जिक्र किया। टेरेसा की सराहना करते हुए पोप ने कहा, ‘मदर टेरेसा यह कहना पसंद करती, ‘शायद मैं उनकी भाषा नहीं बोलती लेकिन मैं मुस्कुरा सकती हूं।’ उन्होंने कहा, ‘उनकी मुस्कुराहट को हमें दिलों में संजोए रखने दीजिए और उन्हें देने दीजिए जिनसे अपने सफर में मिलेंगे, खास कर दीन दुखियों से।’ उन्होंने लैटिन भाषा में कहा कि वह कलकत्ता (कोलकाता) की टेरेसा को संत घोषित करते हैं और उन्हें संतों की सूची में शामिल करते हैं और अब से वह सभी चर्चों के लिए श्रद्धेय हैं। सोमवार (5 सितंबर) को मदर टेरेसा की 19वीं बरसी थी। 1997 में कोलकाता में उनका निधन हो गया था। 20 वीं सदी की महानतम हस्तियों में शामिल मदर टेरेसा करीब चार दशकों तक कोलकाता में रहीं और वहां बीमार और दीन दुखियों की सेवा में जीवन गुजार दिया। इस कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाने के लिए करीब 3,000 अधिकारियों को तैनात किया गया था। एकत्र भीड़ में शामिल रहे करीब 1,500 गरीब लोगों की देखभाल टेरेसा की ‘मिशनरी ऑफ चैरिटी’ की इतालवी शाखाएं कर रही हैं। संत की उपाधि दिए जाने के बाद फ्रांसिस के अतिथियों के लिए वेटिकन में पिज्जा भोजन कराया गया जिसे 250 सिस्टर और 50 पुरुष सदस्यों ने परोसा। टेरेसा युवावस्था में भारत में रहीं, इस अवधि के दौरान पहले उन्होंने शिक्षण किया और फिर दीन दुखियों की सेवा की। दीन दुखियों की सेवा करने को लेकर वह धरती पर सबसे मशहूर महिला बन गई। मदर टेरेसा का जन्म स्कोप्जे (जो कभी ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा रहा है और अब मकदूनिया की राजधानी है) में हुआ था। उनके माता पिता कोसोवो अल्बानियाई मूल के थे। उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें ईसाई मूल्यों के लिए आत्म बलिदान और परमार्थ सेवा के पथ प्रदर्शक के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है। हालांकि, धर्मनिरपेक्ष आलोचकों का उन पर आरोप है कि उन्होंने दीन दुखियों की सेवा करने से कहीं अधिक ईसाई धर्म के प्रचार पर ध्यान दिया। उनके निधन के बाद भी उनकी विरासत को लेकर बहस जारी है। अध्ययन करने वाले उनके मिशन के संचालन में अनियमिता होने की बात उजागर कर रहे हैं और रोगियों की अनदेखी करने, अस्वास्थ्यकर स्थितियां तथा उनके मिशन में धर्मांतरण किए जाने के साक्ष्य पेश कर रहे हैं। वहीं, वेटिकन में कोई संशय नहीं था क्योंकि क्योंकि पोप एक ऐसी महिला को श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले थे जिन्होंने गरीबों के प्रति उनके सपनों को साकार किया था। टेरेसा को इस मुकाम तक पहुंचाने में पूर्व पोप जान पॉल द्वितीय का काफी योगदान रहा है। वह टेरेसा के मित्र थे और उनकी मृत्यु के समय पोप रहने को लेकर उन्होंने साल 2003 में टेरेसा को संत की उपाधि हासिल करने के प्रथम चरण को पार करने में मदद की थी। गौरतलब है कि संत की उपाधि हासिल करने के लिए दो चमत्कारों को वेटिकन की मंजूरी मिलनी जरूरी है। टेरेसा के प्रथम चमत्कार को 2002 में मंजूरी मिली थी। दरअसल, मोनिका बेसरा नाम की एक भारतीय महिला ने कहा था कि टेरेसा के निधन के साल बाद उनका गर्भाशय का कैंसर ठीक हो गया। उनके दूसरे चमत्कार को पिछले साल मंजूरी मिली, जब ब्राजीलियाई नागरिक मारसीलो हद्दाद एंडरीनो ने कहा कि उनकी पत्नी द्वारा टेरेसा से प्रार्थना करने के चलते उसका ब्रेन ट्यूमर खत्म हो गया।


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