विजयदत्त श्रीधर!
सयानों के श्रीमुख से सुनता आया हूँ- पईसा तेरे तीन नाम परसू-परसा-परशुराम।
तात्पर्य यह कि यदि व्यक्ति निर्धन हुआ तो पुकारा जाएगा ऐ परसू नितान्त निर्धन हुआ तो पुकारा जाएगा परसा लेकिन खाता- कमाता हुआ तो पुकारा जाएगा परशुराम संपन्न को इसलिए उदाहरण नहीं बनाया गया होगा क्योंकि तब तो नाम के आगे 'श्री और पीछे जी स्वयं जुड़ने लगता है।
तात्पर्य यह कि धन का जीवन में न केवल महत्व होता है, बल्कि मानव के सम्मान में भी धन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ऋषि मुनि, मनीषी अवश्य अपने तप और ज्ञान से प्रतिष्ठा पाते हैं, परंतु सामान्य जनजीवन में धन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
पिछले दिनों मध्यप्रदेश में
मुख्यमंत्री शिवराज ने घोषणा की कि महिलाओं को हर माह कुछ धनराशि सरकारी खजाने से देंगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा से उपजी क्रिया-प्रतिक्रिया में उपर्युक्त कहावत का स्मरण करा दिया।
भारतीय समाज में परिवारों पर निगाह डालिए। परिवर्तन की प्रक्रिया चलते रहने के बावजूद समाज के बहुत बड़े हिस्से में घर-परिवार में महिलाओं के श्रम और सहभागिता का समुचित मूल्यांकन नहीं होता।
धारणा है कि घर से बाहर कमाने के लिए जाने वाले पुरुष सदस्य का काम ही गणना योग्य होता है पता नहीं यह धारणा कितनी शताब्दियों से समाज में ग्रंथि बनकर पैठ जमाए हुए हैं।
परंतु इससे महिलाओं के साथ अन्याय होता है और उनकी उपेक्षा भी की जाती है ऐसी परिस्थिति में सामाजिक कल्याण की भावना से जय महिलाओं के लिए कोई विशिष्ट ध्यान किए जाते हैं, तब उसका समाज की सोच पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और महिलाओं के चैनन्दिन जीवन में भी प्रभाव परिलक्षित होता है।
मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना में यह प्रावधान किया गया है कि 21 वर्ष से 80 वर्ष आयु प्रत्येक पात्र महिला को पात्रता की अवधि में प्रति 1,000 रुपये दिए जाएँगे। यह धनराशि उनके बैंक खाते में भेजी जाएगी।
प्रदेश में लगभग 1.20 करोड़ महिलाओं का पंजीयन इस योजना के अंतर्गत हुआ है। इनके खातों में 11 जून को पहली मासिक किस्त भेजी जा चुकी है, तात्पर्य यह कि मुख्यमंत्री की घोषणा पर अमल आरंभ हो गया है।
लाड़ली बहना योजना का फलितार्थ यह होगा कि अल्प आय वाले परिवारों की महिलाएँ "कमाऊ' मानी जाने लगेंगी। हर माह 1,000 रुपये के हिसाब से वर्ष में 12,000 रुपये की वितीय भागीदारी के परिवार की आर्थिक आमदनी में करने लगेगी।
उन्हें परिवार पर बोझ नहीं, बल्कि सहयोगी माना जाएगा घर परिवार के रोजमर्रा के खचों में उनका सहयोग होगा। स्वाभाविक है कि कमाऊ मान लिए जाने के कारण उनकी इच्छा की पूछ परख होने लगेगी।
फैसलों में उनकी सहभागिता होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाडली यहना योजना की राशि में क्रमिक बढ़ोत्तरी करते हुए 3000 रुपये तक हो जाने की घोषणा करते हुए परिवार में महिला की स्थिति को और बेहतर किया है।
निर्धन अगवा अन्य आय वाले परिवारों की स्थिति का जिन्हें उन्हें उनकी रोजर्स की जिंदगी की कठिनाइयों की भी जानकारी होगी। भी दूध की बात तो छोड़िए दाल-सब्जी भी उनके लिए दुख प्रतीत होती है।
कमाने का परिवार का कोई सदस्य बीमार पर जाए, यस दिन उस घर में चूल्हा जलने की नौबत नहीं आती। इलाज और दवाई तो दूर की कोड़ी होती है।
ऐसे परिवारों में लाडली बहना योजना की 1,000 रूपए की राशि महीने के रुपये कितना महत्व रखते हैं, इसे सहज ही समझा जा सकता है।
राजनीति में यह आम चलन है कि किसी भी घोषणा का नाता चुनावी दाँव से जोड़ा जाने लगता है। लाडली बहना योजना के साथ भी यही हुआ।
संसदीय प्रणाली में राजनीतिक दल सत्ता की दावेदारी करते हुए लोकलुभावन नीतियों और कार्यक्रम घोषित करते हैं। इसमें कोई अनीति की बात भी नहीं है। सामाजिक कल्याण के बहुत से कदम उठाए जाते रहे हैं।
जहाँ तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की रीति-नीति का सवाल है, समाज में महिलाओं का सम्मान बढ़ाने वाली योजनाएं लागू करना उनकी प्राथमिकता रही है। सन 1990 में जब पहली बार विधायक बने में भी अपने क्षेत्र की एक निर्धन कन्या के विवाह का दायित्व कर उन्होंने इस प्रवृत्ति का परिचय दिया था।
नवबंर 2005 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रान 2006 में मुख्यमंत्री कन्या विवाह/निकाह योजना कर दी। तब से अब तक प्रदेश की 60098 कन्याओं का विवाह इस योजना के माध्यम से हुआ।
इस नेक काम में 1004 करोड़ रुपये की सहायता कन्याओं को मिली। 21.333 कन्याओं के निकाह पर 64.66 करोड़ की सहायता दी गई।
मुख्यमंत्री ने एक और महत्वाकांक्षी योजना लाड़ली लक्ष्मी का सूत्रपात किया।
एक जनवरी 2006 के बाद जन्मी बेटियों को लखपति बनाने की इस योजना के माध्यम से समाज को यह संदेश दिया गया कि बेटी का जन्म परिवार पर बोझ नहीं होता। केवल बेटे के जन्म पर बधाई मत गाओ बेटी के जन्म का भी आनन्द मनाओ।
अभी तक 44.85 लाड़ली लक्ष्मी बेटियों को इस योजना का लाभ सुनिश्चित हो गया है लाड़ली बेटियों के 21 वर्ष की आयु होते ही उनके खाते में 1,43,000 रुपये की धनराशि पहुँच जाती है। छात्रवृत्तियाँ और प्रोत्साहन राशि के प्रावधान इसके अलावा है।
(विजयदत्त श्रीधर।
संस्थापक-संयोजक मोबा.
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