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फिलीपीन्स की ग्लोबल समिट में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहीं भोपाल की यशस्वी

वामा            Sep 05, 2024


  मल्हार मीडिया भोपाल।

             एफआईए की एशियन काउंसिल की सह-समन्वयक बनीं

  •  एकता परिषद की ओर से युवा प्रतिनिधि के रूप में समिट में भागीदारी

 

 दुनिया में गैर बराबरी और भेदभाव मिटाने के लिए साझा रणनीति तैयार करने के मकसद से फिलीपीन्स में हो रही ग्लोबल समिट में एकता परिषद की ओर से  युवा प्रतिनिधि के रूप में भोपाल की यशस्वी कुमुद भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। 

फाइट अगेन्सट इनइल्क्वेलिटी एलायंस (FIA) के नेतृत्व में यूनिवर्सिटी आफ फिलीपीन्स दिलीमन मनीला में हो रही इस समिट में एशिया के 9 देशों के 45 प्रतिनिधियों समेत दुनिया भर के 40 देशों के 200 से भी ज्यादा प्रतिनिधि हिस्सा से ले रहे हैं।

 यह बड़ी उपलब्धि है कि एशियाई देशों के लोगों की समस्याओं और चुनौतियों को रेखांकित करते हुए पहली बार ‘एफआईए’ ने एशियन काउसिंल का गठन किया है, जिसका समन्वयक फिलीपीन्स की प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री मैंजिट और सह- समन्वयक भारत की यशस्वी कुमुद (एकता परिषद) को बनाया गया है।

उल्लेखनीय है कि लैंगिक असमानता, भेदभाव जैसे मुद्दों पर काम करने वाली यशस्वी कुमुद 2016 में संयुक्त राष्ट्र संघ न्यूयार्क में बाल अधिकारों को लेकर यूनिसेफ की ओर से भारत के एक प्रतिनिधि के रूप में अपनी बात रख चुकी हैं और चार्टर आफ डिमान्ड्स ( मांग पत्र) पेश कर चुकी हैं.

 बता दें कि 2 सितंबर से यूनिवर्सिटी आफ फिलीपींस में शुरू हुई इस ग्लोबल समिट के पहले दौर में एशिया के भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया, कंबोडिया, थाईलैंड, फिलीपीन्स आदि विकासशील, पिछड़े, गरीब देशों में व्याप्त समस्याओं और चुनौतियों की पहचान और खुशहाल दुनिया के लिए अहिंसक माध्यमों से रणनीति बनाने पर केन्द्रित रही। समिट में साउथ अफ्रीका, कीनिया, मेक्सिको और ब्राजील जैसे कई देश शामिल हुए हैं।

 एशियन काउंसिल की पहली सह समन्वयक यशस्वी कुमुद ने बताया कि इस ग्लोबल समिट का मकसद गैर बराबरी और भेदभाव रहित दुनिया बनाने के लिए  काम करना है, जहां 99 फीसदी लोगों को बुनियादी सुविधाओं, संसाधनो, अधिकारों से वंचित कर दिए गए हैं।

 दुनिया के केवल एक फीसदी लोगों के कब्जे में संपत्ति, सत्ता और संसाधनों का बड़ा हिस्सा है. इससे यह पता चलता है कि सामाजिक और आर्थिक असमानता की जड़ें कितनी गहरी हैं.

 प्रतिनिधियों ने बैठक में चर्चा के दौरान इस तथ्य को रेखांकित किया कि एशियाई देशों में लोकतांत्रिक आवाजों, अभिव्यक्ति के लिए स्पेस यानी स्थान कम मिल पा रहा है. विकासशील देशों में लोगों के पास बुनियादी सुविधाएं और संसाधन वैसे ही बहुत कम है, कोविड जैसी महामारी के बाद तो और भी  बुरी तरह पिछड़ गए हैं।

 

बड़ी आबादी के शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, सुरक्षा, भूख जैसी जीवन जीने से जुड़ी बुनियादी समस्याएं तो हैं ही। जल और भूमि का असमान वितरण बड़ा मुद्दा है। विकास के लिए जो मानदंड तय किए जा रहे या नैरेटिव तय किये जा रहे, वह केवल एक फीसदी लोगों को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे। 

लोगों में सिविक एजुकेशन यानी सामाजिक शिक्षा का ना होना एक बड़ी समस्या है। एफआईए की कोशिश साझा अभिव्यक्ति को मजबूत करने और युवा वर्ग को इस अहिंसक संघर्ष से जोड़ते हुए वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाने की है।

 

 

 

 

 


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