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अंग्रेज चले गये नाम रह गये...

वीथिका            Feb 04, 2015


कुंवर समीर शाही [caption id="attachment_1206" align="alignnone" width="212"] कानपुर शहर का इतिहास आजादी के दौर की दास्तान अपने आंचल मेंमें संजोए है कानपुर शहर का इतिहास आजादी के दौर की दास्तान अपने आंचल मेंमें संजोए है[/caption] यूं तो कानपुर शहर का इतिहास आजादी के दौर की दास्तान अपने आंचल में संजोए है, पर क्या आपको यह मालूम है कि शहर में ऐसे भी कई मोहल्ले हैं जहां आज भी अंग्रेज ‘माननीयों की यादें बसी हैं और शहरिए हर रोज उन्हें उनके नाम से याद करते हैं। शहर में कई ऐसे मोहल्ले हैं जिनका नामकरण ही अंग्रेज अफसरों के नाम पर किया गया और आज हम उन्हें उसी या फिर कुछ बदले नामों से पुकारते और जानते हैं| चलिए एक नजर डालते हैं उन मोहल्लों के नामों और इतिहास पर। सबसे पहले बात करते हैं कर्नलगंज की, इस मोहल्ले का नाम कर्नल जेम्स शेफर्ड के नाम पर पड़ा। यह मोहल्ला अंग्रेजो के नाम पर बसे मोहल्लों में सबसे पुराना माना जाता है। उस दौर में कर्नल जेम्स की हैसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 1801 के आस-पास उन्हें अंग्रेज सरकार पेंशन के तौर पर एक हजार रुपए का भुगतान करती थी। [caption id="attachment_1207" align="alignnone" width="300"]का नाम मैकराबर्ट साहब के नाम पर पड़ा जो 1889 से 1908 तक लाल ईमली के जर्नल मैनेजर के पद पर तैनात रहे लाल ईमली[/caption] आगे चले तो मजदूरों के आवासीय परिसर के तौर पर बसाए गए मैकराबर्टगंज और मैकराबर्ट अस्पताल दोनों का नाम याद आ गए, जिनका नाम मैकराबर्ट साहब के नाम पर पड़ा जो कि 1889 से 1908 तक लाल ईमली के जर्नल मैनेजर के पद पर तैनात रहे। आज का कोपरगंज कभी कूपरगंज के नाम से जाना जाता था। इस मोहल्ले को लेफिटिनेंट इ.डब्ल्यू कूपर का नाम दिया गया। इसका जिक्र साल 1871 मैप में भी है। कूपर साहब चीफ कमीशन ऑफ अवध के पद पर भी रहे। शहर के व्यस्त बाजारों से घिरे मूलगंज मोहल्ले का नाम साल 1886 से 1890 तक शहर के कलेक्टर एफ डी मॉल के नाम पर पड़ा। इस मोहल्ले के साथ ही उन्होंने फूलबाग यानी के क्वींस पार्क भी बनवाया। शहर के तंग गलियों में बसे वेकनगंज का नाम 1827-28 में कानपुर के जज रहे डब्ल्यू वेकन के नाम पर पड़ा। आज यह बेगमगंज के नाम से जाना जाता है। इसी तरह हैरिसगंज का नाम भी 1842 में कर्नल रहे कर्नल हैरिस के नाम पर पड़ा। इस कारवें को आगे बढ़ाए तो उस फेहरिस्त में फेथफुलगंज का नाम आएगा। इस मोहल्ले के नाम को लेकर यूं तो कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेज माननीयों को यहां बसाया गया इसलिए इस मोहल्ले का नाम फेथफुलगंज पड़ा जबकि इतिहास के पन्नों में इसका जिक्र आजादी के पहले से है। इसके मुताबिक कमिश्नर टू द बाजीराव पेशवा बिठूर के आरसी फेथफुल के नाम पर पड़ा। करवां आगे बढ़ाने पर मालूम चलेगा कि 1940 में एडवर्ड सूटर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के सभापति एडवर्ड सूटर के नाम पर एल्गिल मिल से ग्वालटोली के बीच के बसे मोहल्ले का नाम सूटरगंज नाम दिया गया। 1778 में शहर आए दस हजार जवानों के लिए बनाए गए बाजार का नाम ब्रिगेडियर जर्नल स्टीवर ग्लिश के नाम पर पड़ा। जो मोहल्ला आज गिलीश बाजार के नाम से जाना जाता है।


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