आल्हा—1:आल्हा-उदल की ऐतिहासिकता

वीथिका            Feb 29, 2016


मल्हार मीडिया डेस्क। यह वीर गाथा इतिहास- सिद्ध तीन प्राचीन राजाओं से संबद्ध है :- 1. दिल्ली का पृथ्वीराज चौहान यानी पिथौरा 2. कन्नौज (कनवज्ज) का राजा जयचंद राठौड़ तथा 3. बुंदेलखण्ड महोबा का चंदेल राजा परमर्दिदेव। पृथ्वीराज चौहान और जयचंद राठौड़ दिल्ली के अनंगपाल तोमर (तँवर) के वंशज थे। उसकी मृत्यु के बाद, ज्येष्ठ होने के कारण, जयचंद सिंहासन का अधिकारी था, किंतु पृथ्वीराज को राजा बना दिया गया। इसलिए जयचंद और पृथ्वीराज में आजीवन वैर रहा। पृथ्वीराज और उसका उसका चारण चंदबरदायी मुसलमानों के साथ युद्ध करते हुए थानेसर की लड़ाई में 1193 ई.में मारे गये थे। कन्नौज पर कब्जा किया जा चुका था। जयचंद का 1194 ई. में शहादुद्दीन के हाथों कत्ल हुआ। उसका पुत्र मारवाड़ भाग गया जहाँ उसने अपना राज्य कायम किया जो अब जोधपुर कहलाता है। परमर्दिदेव चंदेल ने 1165 से 1202 ई. तक राज्य किया। 1182 ई के लगभग पृथ्वीराज ने उसे महोबा से बेदखल कर दिया था।अंत में 1203 ई. में कालं और महोबा मुसलमानों के अधीन चला गया। परमर्दिदेव चंदेल (गाथा में परमाल) नान्नुक का वंशधर था, जिसने 900 ई. के लगभग बुंदेलखंड (जेजाकभुक्ति) में अपना राज्य स्थापित किया था और खर्जुरवाहक (खजुराहो) नामक गाँव को राजधानी बनाया था। यही परमर्दिदेव चंदेल (परमार) महोबा के वीर आल्ह का स्वामी तथा अभिभावक था। आल्ह खंड उपर्युक्त चौहान, चंदल, राठौड़ों के इर्द- गिर्द घूमता है। जनश्रुतियों में घिरी गाथा इतिहास से भटक जाती है। तदनुसार परमाल, पराजित हो, राज्य से भाग गया था, जहाँ अंत में उसकी मृत्यु हो जाती है यानी वह अंतिम चंदेल राजा था। जबकि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार बीस साल बाद भी (1203 ई.) हम उसे कुतबुद्दीन के विरुद्ध युद्धरत पाते हैं। वह अंतिम चंदेल राजा भी नहीं था। उसके बाद भी अनेक चंदेल सिंहासनासीन हुए। 1205 ई. से पहले परमर्दिदेव के पुत्र त्रैलोक्य बर्मन ने ककडादह (बेदवार के दक्षिण- पूर्व में) में मुसलमानों को हराकर अपना राज्य पुनः हस्तगत किया था। किंवदंती के अनुसार परमाल ने सारे भारत पर विजय पाई थी। पहला नगर महोबा था, जिसका राजा बासदेव परिहार था। राजा बासदेव के तीन पुत्रियाँ -- मलना, (मल्हना, मलन दे नार), दिवला (देवल दे) तिलका तथा एक पुत्र माहिल महला था। मल्हना महोबा के राजा परमाल की पत्नी थी। परमाल माहिल का बड़ा सम्मान करता था, किंतु माहिल अपने पिता को पराजित करनेवाले परमाल को कभी क्षमा नहीं कर पाया। वही परमाल के पतन का कारण सिद्ध हुआ। पूरे आल्ह खंड में माहिल शातिर और चुगलखोर पात्र की भूमिका अदा करता है। परमाल के दो बनाफर राजपूत सेवक थे दसराज और बच्छराज, परमाल ने दसराज के साथ अपनी रानी मल्हना की बहन दिवला का और बच्छराज के साथ तिलका का विवाह करा दिया था। दसराज (दस्सराज, जसहर) के आल्हा (नुन आल्हा) और उदयसिंह (उदल, रुदल) एवं बच्छराज के मलखान (मलखै) और सुलखान नामक पुत्र हुए। दसराज के यहाँ किसी अहीर स्त्री से चौड़ा (अवैध पुत्र) भी पैदा हुआ था, जिसे नदी में बहा दिया गया था। सौभाग्य से उसे पृथ्वीराज चौहान के पास पहुँचा दिया गया था। चौहान ने पुत्रवत् इसकी देखरेख की थी। यहीं चौड़ा, कालान्तर में, चौहान सेना का अधिपति बना। आल्ह खंड की अंतिम लड़ाई में इसे आल्हा, ऊदल यानी सौतेले भाइयों के विरुद्ध युद्ध- रत पाते हैं। एक किंवदंती के अनुसार दसराज की कोई पुत्री भी थी, जिसका सिहा नामक पुत्र था। राजा परमाल और रानी मल्हना का इकलौता पुत्र ब्रह्मा (ब्रह्मजित वर्मा) था। पिता की सहमति के बिना वह पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला से विवाह कर लेता है। गौने से पूर्व ही बेला विधवा हो जाती है, क्योंकि ब्रह्मजित उरई की लड़ाई में मारा गया था। कौन नहीं जानता आल्हा और ऊदल को? जो नहीं जानते यहां पढ़ें


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