टर का डर

वीथिका            Feb 02, 2015


sanjay-joshi संजय जोशी 'सजग' टर हमारी व्यवस्था का अभिन्न अंग बन चुका है कुछ विशेष किस्म के टर तो इतने घातक है कि इनके नाम सुनते ही लोगों की सिट्टी -पिट्टी गुम हो जाती है। चेहरे की रौनक खत्म हो जाती है । इनमे दांव धरने की अदभुत क्षमता होती है ,कमजोरी का फायदा उठाने की कला में ये माहिर होते है । धन के प्रति आकर्षण ,कर्तव्य के प्रति विकर्षण ,ईमानदारी से रिश्ता न होना ,परिस्थिति का दास अपने से बड़े को देख कर उदास व हताश और इनकी नियत और नियति में लंंबा गेप होता है । घाघपन और ठगपन दोनों अवस्था की भरमार रहती है l एक मित्र हमेशा कहा करता है की ऎसे टरों ने ही देश में ईमानदारी की मात्रा को नगण्य कर दिया है इनसे मुक्ति के लिए ईश्वर से भी याचना असर नहीं दिखाती है । भ्रष्टाचार नामक वाइरस इन्हीं की देन है। यूँ तो टर की बहुत बड़ी सूची बनाई जा सकती है पर कुछ टर जिनसे जन समान्य भी अछूता नहीं है । देश की दशा और दुर्दशा दोनों ही में इनकी अहम भूमिका होती है । प्रमुख टर जैसे इंस्पेक्टर ,आडिटर ,डॉक्टर ,मास्टर ,मिनिस्टर , कंडक्टर , राइटर और एडिटर है इनमें सबसे ज्यादा खौफ इन्स्पेटर और ऑडिटर का रहता है इनकी भी भिन्न -भिन्न किस्में पायी जाती है ,आदर्श. दबंग , अड़ियल ,लकीर के फकीर ,चापलूसी पसंद ,बातूनी, आलसी आदि विशेषताओं के तो धनी होते ही हैं और भी हो सकती है जनता अपने हिसाब से उन्हें तमगा देती रहती है इनके काम के अनुसार । एक टर टमाटर ने तो खाने का जायका कम करके राजनीति का जायका बड़ा दिया था । इंस्पेक्टर हर विभाग में प्रमुखता से पाया जाने वाला टर होता है कभी -कभी परेशान होकर लोग कह उठते है कि इंस्पेक्टर राज के मारे दुखी है इसकी कई प्रकार की प्रजाति होती है टर किसी भी विभाग का हो उसका अपना विशेष महत्व होता है पर पुलिस विभाग के टर से हर कोई डरता है यह कई कानूनों की धारा का विशेषज्ञ माना जाता है और विशेष प्रकार की वर्दी होने से भीड़ में भी अलग नजर आता है इसे देख कर अच्छे -अच्छे सहम जाते है फिर भी हमारे देश में निरंतर अपराधों का ग्राफ इनकी कार्य शैली पर प्रश्न चिन्ह लगाता है । एक रिटायर्ड इंस्पेक्टर सा. का तर्क है कि जनता के हिसाब से हमारी संख्या नही बढ़ी मैनेज करना मुशिकल होता है पर क्या करें, कहीं सहयोग भी नहीं मिलता है और हमेशा हम पर अविश्वास किया जाता है । हद तो जब हो जाती है जब सब काम छोड़ कर कुत्ते ,भेंस और कटहल के लिए अपनी सेवायें देना पड़ती है । उद्योग ,धंधे वालों का भी कहना है कि सरकार कोई भी हो हम पर इंस्पेक्टर राज ही चलता है कितने विभाग के कितने ही इंस्पेक्टरों को मैनेज करना पड़ता है जब कहीं काम स्मूथ चलता है मरीज डॉक्टरों से परेशान रहता है और डॉक्टर मरीज से । कहते है कि डॉक्टर भगवान की मूरत होते हैं पर आजकल ऐसे कम ही देखने को मिलते है वह मरीज को एटीएम की मशीन समझने लगे है । मास्टर तो मास्टर होते है कितने भी अच्छे हो छात्रों को खडूस ही नजर आते है । ऑडिटर उसे कहते है जैसे सौ -सौ चूहे खाने के बाद बिल्ली हज को जाती है । अपने आपको आदर्शवादी ,सिंद्धांत ,ईमानदार और काम में निपुण समझता है । छोटी -छोटी गलतियों को निक़ाल कर इतना डराता है सामने वाले को पूरी तरह हताश और निराश करके अपने आपको राजा हरिश्चंद्र समझता है । इसके जाल में कोई फंसना नहीं चाहता है और ये भरसक प्रयास करता है इसलिये इसकी थिंकिंग पूरी तरह से नेगटिव हो जाती है अच्छा सोचने की कल्पना ही नहीं कर सकते । काका हाथरसी के अनुसार कंडक्टर वो बला है जो पुल्लिंग को भी स्त्रीलिंग बना देता है पुरुष को भी कहता है सवारी । और जनता कहती है कि ये सवारियों को सामान की तरह ठूंसने की क्षमता रखता है सबसे बड़ा और भारी टर है मिनिस्टर इसके बारे में आप सबके पास ज्ञान का विशाल भंडार है यह टर आश्वासनों का पहाड़ और कर्तव्य राई जैसा करता है सत्ता इसे अहंकारी बना देती है इसमें इनका कोई दोष नहीं होता है यह तो उस कुर्सी का प्रभाव है जो जाने अनजाने में सब करवाता है । समाज और देश प्रभावित करता है इस कारण डर का साया मंडराता रहता है l रायटर नामक टर विचारों की शक्ति से लेस रहता है यह दिल और दिमाग से संपन्न होता है कहते है ना सो बका एक लिखा मतलब बोलने से लिखने वाला कई गुना भारी होता है कलम को तलवार पहले से कहते आ रहे है पर अब किताब को भी बम कहा जाने लगा है । संत्री से मंत्री सब डरें ,फिर भी राइटर को लगता एडिटर भारी ,यह कांट ,छांट ,स्वीकृत और अस्वीकृत कुछ भी कर सकता है । किसी भी समाचार को हेड लाइन बना सकता है इनसे तो अच्छे -अच्छे राइटर,मिनिस्टर ,इंस्पेक्टर ,ऑडिटर सभी भयभीत रहते हैं ।


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