मानसून बनाम पोलखोल

वीथिका            Jul 27, 2015


संजय जोशी सजग मानसून के आने से सबसे ज्यादा ख़ुशी किसान को होती है लेकिन इसके आने का डर और दुःख उनको ही रहता है जिनकी पोल मानसून के आते ही खुलती है । किसान मानसून आने की मन्नत करता है और ये न आने की। मानसून भी दुविधा में रहता है फिर भी अपने को रोक नही पाता है और देर तो करता है पर अंधेर नहीं करता । टोनो—टोटकों से डरकर तो आना ही पड़ता है जब मानसून आने की भविष्यवाणी होती है भ्रष्टों की साँस फूलने लगती है और वे प्रार्थना करते रहते हैं कि मानसून उनकी पोलखोल न करें। घटिया निर्माण का चेकर तो मानसून ही है संबंधित इंजीनियर तो अपनी दक्षिणा लेकर इस ओर से मुँह फेर लेता है और इसके आने की आहट के पहले ही सब बिल पास कराकर ठेकेदार माल अपनी अंटी में कर लेता है। जो होना है होता रहे जांच पर जाँच चलती रहे होना जाना क्या सबको मॉल बाँट दिया है कोई ऊँगली उठाने से रहा जनता का काम रोना है रोती रहेगी और थोड़े दिन में भूल जाएगी भुलक्क्ड़ जो ठहरी। आखिर मानसून आ ही गया और समाचार पत्रों में घटिया निर्माण की पोलखोल के समाचारों में अचानक वृद्धि हो गई तो बांकेलाल जी कहने लगे। पहली बारिश में ही भ्रष्टाचार की पोल खुलने लगी है। अप्रेल में बनी रोड जुलाई में गड्ढों में तब्दील हो गई। अब वे पूछने लगे कि बारिश के पहले ही रोड क्यों बनाई जाती है बाद में क्यों नहीं ?मैंने कहा कि बारिश के मत्थे मढ़कर नेता ,अधिकारी और ठेकेदार अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और बदनामी के कलंक से बच जाते हैं सब उच्च सोच विचार का परिणाम है। रोड में गड्ढे हैं या गड्ढों में रोड़ है पता लगाना मुश्किल हो जाता है। बांकेलाल जी आगे कहने लगे स्टाप डेम पहली बारिश में ही बह जाते हैं ब्रिज में क्रेक ,भवनों में पानी का रिसाव, कितना चूना लगाया बनाने में पोलखोल हो ही जाता है पर इन सब का नतीजा तो जीरो ही रहता है हर साल मानसून आता है और यही क्रम चलता है और चलता रहेगा। नगर निगम, बिजली विभाग ,टेलीफोन विभाग का मानसून पूर्व तैयारी का ढोल इतना पीटा जाता है और पहली मानसून बारिश में दावों की पोल सरेआम हो जाती है फिर भी ढर्रा वहीं ढांक के तीन पात। विपक्ष का काम इन मुद्दों को हरा करना और सबंधित विभाग दो -चार दिन अपनी मुस्तैदी दिखाकर गायब हो जाते है। बाढ़ के नाम की राहत सामग्री भी कितनी सही जगह पहुँचती होगी ,कौन जानें ? मानसून तो अपनी पोल खोल का काम ईमानदारी से कर देती है पर बेईमानी की भांग तो इतनी घुली हुई हैं कि कुछ नहीं हो सकता है जिनको पीड़ा भोगना है ,वह भोगते रहेंगे ।


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