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मिसाल:तिपहिया में सिमटी गेंदालाल की जिंदगी,जिंदादिली से जीने का जज्बा बरकरार

वीथिका            Feb 22, 2016


sriprakash-dixit श्रीप्रकाश दीक्षित। जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया, जो खोे गया मैं उसको भुलाता चला गया । मरहूम साहिर लुधियानवी के एक मशहूर फिल्मी गीत के इन बोलों को मानो उसने अपने जीवन में उतार लिया है। पिछले दो दशकों से वह एकला चलो की तर्ज पर एक तिपहिया सायकिल के सहारे पूरी तरह गतिशील और सक्रिय है। सरकार की स्कीम से मिली यह बेजान सायकिल ही उसे जिन्दा रखे हुए है। अब यही उसकी कुल जमा पूंजी है, एकमात्र सहारा है और बिना मिटटी, गारे का बना घर भी । जिंदगी से हार न मानने वाले इस शख्स का नाम गेंदालाल है। मैं पिछले तेईस-चौबीस बरसों से गेंदालाल की जिन्दादिली और गजब की इच्छाशक्ति का चश्मदीद हूँ ,मुरीद तो खैर हूँ ही। गरीब के घर में जहां दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए हर छोटे बडे को कमाना पडता है, अपाहिज सदस्य बोझ जैसा होता है। इसलिए परिवार ने उसे लगभग छोड़ दिया है। बैतूल के दूरदराज गांव से मां शांताबार्इ और पिता लक्ष्मण रोजगार की तलाश में भोपाल आ पहुंचे। यहां के पशु अस्पताल परिसर में परिवार झुग्गी बनाकर रहने लगा। गेंदालाल सायकिल चलाते-चलाते एक दिन वह ऐसे गिरा कि फिर कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया । इस बीच उसका परिवार पुराने भोपाल से नए भोपाल के शिवाजी नगर में आकर झुग्गी बस्ती में रहने लगा । गरीब के घर में जहां दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए हर छोटे बड़े को कमाना पड़ता है, अपाहिज सदस्य बोझ जैसा होता है। पैरों से स्थायी तौर पर लाचार होने से गेंदालाल धीरे—धीरे परिजनों से दूर होता चला गया। उसकी दवा दारू, दिन रात की देखभाल और दो वक्त की रोटी का प्रबंध करने की अपनो में से किसी के पास न तो फुरसत थी और न हीं इसके लायक पैसा ही। उसके लिए विकलांगों की स्कीम के जरिए एक तिपहिया सायकिल की जुगाड जरूर कर दी गर्इ । उसकी जिंदगी का सबसे बडा विरोधाभास है कि जहां दोपहिया सायकिल ने उसे हमेशा के लिए पैरों से महरूम कर दिया है वहीं तिपहिया सायकिल ने पैरों की कमी पूरी कर दी है। उसकी दुनिया अब तिपहिया सायकिल पर सिमट कर रह गर्इ है। साल के 365 दिन और चौबीस घंटे वह इसी तिपहिया पर गुजारता है। दुबला पतला गेंदालाल तिपहिया में सवार होकर मौसम के बदलते तेवरों का पूरी बहादुरी से मुकाबला करता है। शरीर से लाचार होने के बावजूद दिलो दिमाग से वह पूरी तरह सेहतमंद है । शिवाजी नगर के छोटे से बाजार का मानो वह दत्तकपुत्र बन गया है। इस बाजार के व्यापारी और आसपास की बस्ती के रहवासी उसकी यथासंभव मदद करते हैं। जिन्दगी जीने का गेंदालाल जज्बा उन सभी के लिए एक चुनौती है जो प्रतिकूल परिस्थितियों से घबरा जाते हैं और बहुत से तो ख़ुदकुशी कर दुनिया ही छोड़ देते हैं। जीवन से निराश ऐसे कमजोर इन्सान गेंदालाल से बहुत कुछ सीख सकते हैं। एक तिपहिया साइकिल के सहारे उसका स्वस्थ, सक्रिय और निरंतर चैतन्य बने रहना डाक्टरों के लिए भी शोध का विषय हो सकता है ।


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