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याद-ए-अनुरागी:अनुरागियों की बातें, अनुरागियों से पूछो, उनकी खबर तुम्हारा अखबार नहीं लाता

वीथिका            Feb 16, 2016


richa-anuragi-1 ऋचा अनुरागी। पिता को बेटी से बेहतर कोई नहीं जानता। मूर्धन्य साहित्यकार राजेंद्र अनुरागी  की पुत्री की यादों में  वे हर पल जीवित हैं। कितनी ही यादें कभी कवि दुष्यंत तो कभी कवि नीरज के साथ की ऋचा जी ने साझा की हैं। मल्हार मीडिया अपने पाठकों के लिये इन्हें कॉलम के रूप में लायेगा हर मंगलवार। आज स्वर्गीय राजेंद्र अनुरागी का जन्म दिवस है सो इससे बेहतर शुरूआत का दिन इस कॉलम के लिये नहीं हो सकता। पेश है पहली कड़ी

कहीं अनुरागी मिले तो भुजाओं में भर लीजिये, उसे तो वैसे दिल में लिए रहते हैं लोग । पापा जिन्दाबाद, आज पापा का 85वॉ जन्मदिन है पर हमें आज भी लगता कि वे कहीं से बच्चों के मानिंद डा .डा.डि.डी.गाते झूमते आकर गलबहिया डाल देगे ।वही प्यारी सी माथे पर पप्पी अंकित हो जायेगी ।शारीरिक रूप से उन्हें हमारे बीच से गये आठ बरस बीत गये पर वे आज भी हमारे आपके बीच गा रहे हैं....... उत्सव मेरा गौत्र है। मेरी जाति आनन्द है । उनकी जाति और गौत्र से उनके सभी अनुरागिणा:उसमें शामिल भी हैं ।हर हाल में उत्सव होना ही चाहिए ।वे हमें खुश रहने का महा मंत्र दे गये । वे कहते भी थे ..... rajendra-anuragiअनुरागियों की बातें,अनुरागियों से पूछो उनकी खबर तुम्हारा अखबार नही लाता । और उनका यह अनुरागी परिवार मात्र एक घर में सिमटा नही रहा पूरे विश्व में फेले हैं उनके अनुराग में रंगे अनुरागिणा: ।आज मैं उन सभी अनुरागिणा:ओ की ओर से उन्हें याद करते हुए ,पापा जिन्दाबाद,अनुरागिणा:जिन्दाबाद के नारे बुलंद करती हूँ ।

यादें और वो भी पापा अनुरागी की ,ममता ने मुझे पहली बार मिलते ही सीधे अपनी मल्हार मीडिया पर सुचना दी। मैं जिस की यादों के खुमार में दिन रात रहती हूँ या यूं कहूँ कि कभी वो पल आया ही नही जब हम उन्हें भूले हो। वे मूर्त बन मेरी धड़कनों में बस गये हैं ,बेटी हूँ इसलिए उनकी शिराओं में बहने वाला रक्त मेरी धमनियों में दौड़ रहा है ,यह वैज्ञानिक सत्य भी है । जब एक पिता परमप्रिये सखा बन जाता है ,मार्ग दर्शक, पथप्रदर्शक हो जाता है जब वह दिल आत्मा के इतने नजदीक हो जाता है कि ईश्वर या एक सत्य मनुष्य की चेतना में रम जाता है तब वह ,वह नही होता वह उस जैसा या स उसमय हो उठता है ,और यही वह सार्थक स्थिति होती है उसे पा लेने की। जब तक पूजा आडम्बरों में दिखाने पडती है, तब तक पूजा सार्थक नही होती ,जब पूजा दिखाई देना बन्द हो जाती है और भक्त में प्रभु दिखाई देने लगता है या यूं कहूँ समर्पण पूर्ण आकार ना होकर निराकार हो उठता हो तब ही वह सार्थक होता है। अब वे चेतन हो मुझमें उसमें हममें और सबमें हैं ,जो उन्हें जितना पाना चाहता है पा ले। वे नदी नही महासागर हो गये हैं। हम उन्हें जितना बडा पात्र लेकर भरना चाहें भर लें। पापा ही के शब्दों में....नदी तो बह रही है वह सबके लिये है तुम जितना बडा घडा लेकर भरना चाहो भर लो ,हवा बह रही है ,तुम्हारी सांसे जितनी प्राण वायु चाहती हैं उतनी भर लो वह कब मना करती है मुझे मत भरो ,यह तो तुम्हारी इच्छा पर है तुम कितना लेना चाहते हो। बचपन से लेकर आज तक इतनी यादें हैं कि मैं इस जन्म में तो क्या कई जन्मों तक उनकी यादों को सुनहरे अक्षरों में अंकित करना चाहूँ तो नहीं कर सकती। यूँ तो पापा का जन्मदिन दादी ,हम सब ,और उनके सभी अनुरागिणा: मित्र महा शिवरात्री को मनाते आये हैं पर अंग्रेजी तारीख से 16 फरवरी पापा का जन्मदिन है। आज भी हम सब पापा जिन्दाबाद के नारे गुंजित करते हैं और उनका गीत....शान्ति के पाँखी

शान्ति के पाँखी चँदनियाँ पंख वाले शान्ति के पाँखी गगन भर के उजाले शान्ति के पाँखी उड़ो विचारो गगन में उड़ रहा मकरन्द हो मानो पवन में जगत भर को शान्ति का संदेश दो। नये जीवन को सुखद परिवेश दो ।

यादें अभी शेष हैं ।


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