ओ,मेरे नादान पड़ोसी मैंने तो सोचा था, मेहँदी की बागुड़ होगी और पुरा-भर की हथेलियों मेरी मेहँदी फूल रचाए। मेरे आँगन गाएँ पाँखी, तेरे आँगन गूँज सुनाए। ओ, मेरे नादान पड़ोसी तूने मेरी हिम-सीमा पर अंगारों की बागुड़ बो दी। जिस दिन बंदूकी-डगान पर पहला बारूदी-फल फूटा, तू क्या जाने मूर्ख-अभागे! उस दिन सहसा फूट-फूट कर मेरी भारत-माता रो दी! ओ मेरे नादान पड़ोसी, मैंने तो सोचा था, मेहँदी की बागुड़ होगी! पापा अपनी इस रचना में कितनी नाजुक बात कहते हैं -मेहँदी की बाँगुड़ और पुरा-भर यानी सारे मोहल्ले की माँ,बहन-बेटियों के हाथ रचे होगें। पर हमारी इन आशाओं को इन सपनों को ,अमन और शांती कपोतों पर पर सदा से पड़ोसियों ने बारुद उड़ाई है। क्या कभी वहाँ के शायरों ने भी ऐसा सोचा या लिखा है?
आज पूरी दुनिया को पाकिस्तान मुर्दबाद के नारे लगाना चाहिए ,जो देश एक आतंकी के मारे जाने पर ब्लेक डे मना रहा हो उसे कैसे माफ किया जा सकता है? इतिहास गवाह है भारत ने युध्द कभी नहीं चाहे ,युध्द तो हम पर थोपे गये हैं। हम जब भी इन युध्दी मैदानों में खड़े-लड़े हैं तो अपने मूल अधिकारों की रक्षा के लिए लड़े हैं या फिर अपने पड़ोसी को सिरफिरे गुंड़ों से बचाने के लिए लड़े हैं। आजादी की लड़ाई हमारे बुनियादी मानव-अधिकारों की लड़ाई थी,जिसे पूरे भारतीय समाज ने एकजुट होकर लड़ा और ब्रिटेनी हुकूमत को खदेड़ दिया। हमारे साथ ही नयी दुनिया के अनेक देशों की जनता ने भी अपने अधिकारों की लड़ाइयाँ लड़ी और जीतीं। सीमा पर हमारे धीरज की परिक्षाऐं चलती रहती हैं कभी चीन हमारी सीमाओं पर घुसपैठ करता तो कभी पाकिस्तान।हमारी सेना इसका मुंह-तोड़ जबाब भी देती है चूंकि हम युध्द नहीं चाहते और युध्द टालते हैं।लड़ाई दुतरफा मजबूरी होती है,गुंड़ों के लिए अपनी खूनी हवस अपना वर्चस्व और श्रेष्ठता सिध्द करने का इससे बेहतरीन कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आता और भले आदमियों को अपनी सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती है। पर सिरफिरों को यह कौन समझाये कि हमारी अहिंसा नीति को हमारी कमजोरी ना समझा जाये। कश्मीर की आवाम को समझ नहीं आता क्या कि इन्हें जो अपना इंधन बना रहे हैं दरअसल इन्हें कश्मीर और कश्मीर की अवाम से कोई लेना-देना नहीं इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ दहशदगर्दी है। ये दुनियाभर में आतंक फैला कर अपनी गुंडागर्दी दिखाना है और रही पाकिस्तान की बात तो उसे तो बस भारत से दुश्मनी निभाना है इसमें चाहे कितना भी धन और बलि चढ़ जाए दोनों देशों की। पापा की एक और रचना के माध्यम से मैं दुनियाभर को कहना चाहती हूँ----हम प्रजातंत्र के कोटी-कोटी खम्भों वाले युग-राजभवन से बोल रहे हैं-सारा विश्व सुने। हर खम्बा है फौलाद आशोकी लाटों का हर कलावती मेहराब ज्योति की टहनी है जिसको दुनिया से बात शांति की कहनी है जो भी इन शांति कपोतों पर बारुदी बाज उड़ाएगा उसके नापाक इरादों की पल-भर में धूल उड़ा देंगे यह सारा विश्व सुने। जब से चोरों ने बस्ती के सीमावर्ती घर टोहे हैं उस दिन से ही मेरे कृपाणधारी भुजदंड न सोये हैं उस दिन से ही हर चौकी पर जयमल-फत्ता का पहरा है उस दिन से ही हर रात रत्न -दिवाली है, हर स्वर्ण -विहान दशहरा है। इस अमन-चैन के आलम में जो भी हमसे टकराएगा वह मिट्टी में मिल जायेगा।यह सारा विश्व सुने। हम प्रजातंत्र के कोटी-कोटी खम्भों वाले युग- राज भवन से बोल रहे हैं।
मुझे कहने में गर्व होता है कि मेरे घर की तीन पीढ़ियों के चिराग स्कॉड्रर लीडर रविन्द्र जैन , शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट संदीप जैन और आज सीमा पर तैनात मेरा बेटा केप्टन अहद बजाज हम सबकी और देश की रक्षा में तैनात है। मुझे नाज है हमारी थल,जल और नभ सेना के जांबाज जवानों पर जो भारत माँ की रक्षा के लिए अपनी जवानी कुर्बान करने को तैयार हैं। देश के वीर लाड़लों तुम्हें सलाम ।
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