पं. सोमेश्वर जोशी
शनिवार से प्राम्भ हुए श्रावण का समापन भी रक्षाबंधन के साथ शनिवार श्रावण मास की पूर्णिमा २९ अगस्त २०१५ शनिवार के दिन मनाया जायेगा यह त्यौहार भाई-बहन के प्यार एवं रक्षा के वचन को दोहराते है। इस दिन बहन अपने भाईयों की कलाई में राखी बांधती है और उनकी दीर्घायु व प्रसन्नता के लिये प्रार्थना करती है। और भाई अपनी बहन की हर विपत्ति से रक्षा करने का वचन देते है।
मालवा के ज्योतिर्विद एवं कर्मकांडी पं. सोमेश्वर जोशी के अनुसार वर्षो बाद अति शुभ स्थिर योग बनने जा रहे हे जिसमे स्थिर सिह लग्न में सूर्य, गुरु की युक्ति एवं स्थिर शनिवार रक्षाबंधन पर स्थिर रक्षा के योग बना रहा हे 2 अमृतमय सिंहस्त तथा सर्वार्थ सिद्दी और अमृत सिद्दी योग पूणिमा इस दिन को अति स्थिर शुभ योग में जिसमे किसी भी वस्तु का मुहूर्त करेंगे वह स्थिर रूप से लाभकारी रहेगी इस बार रक्षा बंधन को अति शुभ बनाएगा लगातार तीसरे वर्ष भद्रा का साया बरकार रखते हुए लगभग हर पूर्णिमा की तरह इस पूर्णिमा पर भी भद्रा रहेगी यह प्रातः ३:२६ से दोपहर १:५१ तक रहेगी तथा अगले वर्ष भद्रा तो रहेगी परन्तु पुरे दिन बनेगा रक्षाबंधन वैसे तो श्रावणी कर्म सुबह ही होने का विधान हे परन्तु इस वर्ष भद्रा होने के कारण श्रावणी कर्म भी ०१:५१ के पश्चाद् होगे पूणिमा प्रातः ३:२५ से प्रारम्भ होकर देर रत तक रहेगी इस दिन धनिष्ठा नक्षत्र हे, जो २९ अगस्त को दोपहर ३:३१ तक रहेगा दिन की भद्रा को को अशुभ माने जाने के कारण रक्षा बंधन का त्यौहार दोपहर १:५१ के बाद ही मनाया जायेगा रक्षाबंधन मुहूर्त बताते हुए पं. जोशी ने बताय की वास्तविक चौघड़िया कभी भी १:३० का नहीं होता और यह हर दिन अलग-अलग होता हे इसके अनुसार
रक्षा सूत्र बांधने का शुभ समय है
दोपहर १:५१ से २:१४ तक चर
दोपहर २:१५ से ३:५1 तक लाभ
दोपहर ३:५२ से ५:२८ तक अमृत
साय: 6:४२ से ८:२० तक लाभ
रात्रि ९:४५ से ११:१५ तक शुभ
साय: ९:४२ से ८:२० तक लाभ
रात्रि ९:४५ से ११:१५ तक शुभ
अन्य त्यौहार एवं पर्व:
सत्यपर्व,श्रावणी(यजुर्वेदी उपाकर्म),संस्कृत दिवस, नासिक कुम्भ पहला शाही स्नान, उड़ीसा बलभद्र पूजा, कोकिला व्रत, अमरनाथ यात्रा समापन
पौराणिक कथा एवं महत्त्व:
पुराणों मे वर्णन है कि एक बार देव व दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे। 1)भगवान इन्द्र घबराकर गुरू बृहस्पति के पास गये और अपनी व्यथा सुनाने लगे । वहां पैर बैठी इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी यह सब सुन रही थी। उन्होने एक रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र कर अपने पति की कलाई पर बांध दिया। इन्द्र को इस युद्ध में विजयी प्राप्ति हुयी। तभी से लोगो का विश्वास है कि इन्द्र को विजय इस रेशमी धागा पहनने से मिली थी। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। २) द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को अपनी साड़ी को चीरकर अंगुली में बांधी थी। भगवान ने चीरहरण के समय द्रौपदी का आंचल बढ़ाकर उसी का उपकार चुकाया था। ३) सिकंदर की प्रेमिका ने पोरस को राखी बांधी थी, उसी को ध्यान में रखते हुए पोरस ने सिकंदर की जान बख्शी।
विधि-विधानः
पूर्णिमा के दिन प्रातः काल जल, रोली, मोली, धूप, फूल, चावल, प्रसाद, नारियल, राखी, दक्षिणा आदि चढ़ाकर दीपक जलाना चाहिए। भोजन के पहले घर के सब पुरूष व स्त्रियां राखी बांधे। बहने अपने भाईयों को राखी बांधकर तिलक करें व गोला नारियल दें। भाईयों को चाहिए कि वे बहन को प्रसन्न करने के लिये रूपया अथवा यथाशक्ति उपहार दें।
रक्षा सूत्र बांधने का मन्त्र :
ऊं येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः तेन त्वां प्रति बंधनामि, रक्षे मा चल मा चल।
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