हौले-हौले से झाड़ू चलती है

वीथिका            Feb 10, 2015


संजय जोशी 'सजग '

              जब  किसी सफाई अभियान में झाड़ू लगायी  जाती है  तो  झाड़ू हौले -हौले  से  चलती  दिखती है ।  झाड़ू लगाने वाले के चेहरे पर विजयी  मुस्कान के साथ ही उनके हाथ में विशेष प्रकार की झाड़ू होती है लगाने वालों का पूरा ध्यान कैमरों की और होता है ।  घर की सफाई तो बिना नहाये व पुराने कपड़े पहन  कर की जाने की परम्परा है लेकिन अभियान तो  प्रेस किये कपड़े ,पॉलिश किये हुए जूते विशेष प्रकार की खुशबू वाले  .परफ्यूम. से महकता रहता है क्योकि यह तो सांकेतिक अभियान है सफाई तो वो ही करेंगे जिन्हे करना है ।  इस अभियान से देश और जनता में जागरूकता आयी लेकिन  जिन्होंने अपनी नौकरी के अंतिम पड़ाव तक कभी अपनी टेबल पर भी कपड़ा न  मारा हो उनके हाथो में झाड़ू देखकर अधिनस्थ  कर्मचारी  मन ही मन सोचते होंगे कि  अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे ।  

कुछ दृश्य ऐसे भी थे जिनमें एक झाड़ू पकड़े हुए को चार पांच लोग घेरे हुए थे यह सीन ऐसा लग रहा था जैसे मानो बेट्समेन को चार - पांच फील्डर घेरे हुए है । कुछ सीन तो साफ करे हुए को साफ़ करने का अभिनय कर रहे थे । ऐसा लग रहा था कि केवल औपचारिकतावश मजबूरी में निभा रहे है सफाई करने वाले साहबों के हाथ में झाड़ू देख कर हर कोई अभिभूत थे ऐसे में एक महाशय कहने लगे चलो कुछ तो समझ आयेगा कि खाली पिली सफाई -सफाई का खौफ पैदा करने से कुछ नहीं होता है बंद अक्ल का ताला भी खुलेगा ऐसे ही कदम -कदम मिलाकर सफाई करने से ही कुछ होगा खाली चिंता से कुछ नही । आज मेरा अरमान पूरा हुआ साहब के हाथों में झाड़ू देखकर ,कुछ हो या न हो सफाई करने पर यह तो समझेंगे की गंदगी नही करना है तो भी आधी समस्या हल हो जाएगी ।
एक नेताजी कहने लगे कि हमने शपथ ली है की न गंदगी करूंगा और न करने दूंगा ,मैंने कहा शपथ लेना तो आसान है पर पालन करना कठिन है सविंधान की शपथ खाकर भी तोड़ने वालों की कमी नही है तो इस शपथ का क्या होगा? नेताजी कहने लगे देखते हैं क्या होता है हर क्षेत्र तो गंदगी से पटा पड़ा है लोगों के दिमाग के जालों की सफाई की भी जरूरत है केवल शपथ और अभियान से कुछ नहीं होना है जब तक हर आदमी न सुधरें । मेडिकल शॉप वाला कहने लगा कि बाम की खपत बड़ गयी जब से ऐसे लोगों ने झाड़ू उठा ली कुछ की तो कमर ही लचक गई और कुछ को तो शर्म व भय के मारे सरदर्द होने लगा कि कल से क्या होगा कहीं हमें कमरे और टेबल की सफाई भी न करना पड़े ।
कई साहबजादों की पत्नियां इस अभियान से अति प्रसन्न थी कि चलो गुरुर तो टूटा जब ऑफिस और रोड की सफाई की तो घर की तो आराम से करवा सकते है मैंने कहा कि पहले न्यूज़ चैनल से बात कर लीजियेगा सफाई तो तभी कर पायेंगे क्योकि कैमरा देख कर अच्छे -अच्छों को जोश आ जाता है । वह कहने लगी घर की मुर्गी दाल बराबर होती है अब हमें रास्ता तो मिल ही गया है हौले -हौले सब करवा लेंगे । जब बाहर हौले -हौले झाड़ू चला सकते है तो घर पर क्यों नही ? घर पर हम भी चलवा लेंगे । हमारे अच्छे दिन की शुरुआत हो गई है इस अभियान से ऐसा मान सकते है । अभी तक पद का रूतबा दिखा कर कन्नी काटते थे , अब थोड़ी जागृति आयेगी हमें भी थोड़ी राहत तो मिलेगी । प्राथमिकता से घर में भी सफाई होगी तब ही तो बाहर की कर पाएंगे । हौले -हौले झाड़ू चलती रहेगी ...अब न थमेगी अब केवल घिसेगी और झाड़ू पर झाड़ू बिकती रहेगी ।



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