लोकेन्द्र सिंह।
कविता के संबंध में कहा जाता है कि यह कवि के हृदय से सहज ही बहकर निकलती है और जहाँ इसे पहुँचना चाहिए, वहाँ का रास्ता भी खुद ही बना लेती है। हृदय से हृदय का संवाद है- कविता। युवा कवि सुदर्शन व्यास के हृदय से भी कुछ कविताएं ऐसे ही अनायास बहकर निकली हैं, जिनका संग्रह ‘सुन रही हो न तुम…’ के रूप में हमारे सम्मुख है। इस संग्रह की किसी भी कविता को आप उठा लीजिए, आपको अनुभूति हो जाएगी कि कवि के शब्दों में जो नमी है, कोमल अहसास है, जो आग्रह है, विश्वास है; वह सब अनायास है। उनकी भावनाओं में कुछ भी बनावटी नहीं है। एक भी पंक्ति प्रयत्नपूर्वक नहीं लिखी है। सभी शब्द, वाक्य, उपमाएं, संज्ञाएं कच्चे-पक्के युवा प्रेम की तरह अल्हड़ और बेफिक्र हैं।
काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविता ‘सुन रही हो न तुम’ को ही लीजिए, जिसमें प्रेमी बिछोह को एक सुखद अहसास देना चाहता है। वह आग्रहपूर्वक अपनी प्रेमिका से कह रहा है- “सुनो न… जिस हृदय ने तुम्हें प्रेम किया हो न, उसका कभी उपहास मत करना”। इसी कविता में अपने मनोभाव प्रेयसी के समक्ष समर्पित करने के बाद कवि कहता है- “जब कभी भी उससे अलग होना हो, अथाह स्नेह अपने मन में समेटकर होना”। कितना सुंदर भावपूर्ण निवेदन है। आज की पीढ़ी के लिए जरूरी सीख है यह कविता, जिनके लिए प्रेम और बिछोह ‘हँसी का खेल’ हो गया है। इसी प्रकार की सीख उनकी और कविताओं में भी दिखायी पड़ती है। इसी शीर्षक से एक और कविता में सुदर्शन कहते हैं- “सुनो न… मैं प्रेम करता हूँ तुमसे और ऐसा नहीं है कि जो तुम नहीं मिलोगे तो मैं प्रेम करना छोड़ दूंगा”। यही है प्रेम की अभिव्यक्ति, जिसमें पाने की अपेक्षा और खोने का डर नहीं। बस प्रेम में होने का आनंद है।
कविताएं प्रेम पर केंद्रित हैं, नि:संदेह ‘कहे-अनकहे प्रेम’ को समर्पित भी हैं, लेकिन सामाजिक जीवन की दिशा का बोध भी उनमें दिखायी पड़ता है। उनकी कविताओं का प्रेम फिल्म ‘कबीर सिंह’ के नायक के प्रेम की तरह अमर्यादित नहीं है। उनकी कविता का प्रेम जीवन सिखाता है, ईश्वर की कृपा से प्राप्त जीवन को अंधकार में धकेलने के लिए प्रेरित नहीं करता। सबसे सुंदर बात, जो सुदर्शन की कविताओं में दिखायी पड़ती है, वह है- एक-दूसरे का सम्मान। इससे पहले भी सुदर्शन का एक काव्य संग्रह ‘रिश्तों की बूंदें’ प्रकाशित हो चुका है। उस संग्रह को भी साहित्य जगत से खूब सराहना मिली थी। उनकी कविताओं में आप रिश्तों की गर्माहट को सहज अनुभव कर सकते हो। ‘सुन रही हो न तुम…’ शीर्षक से ऐसा लगता है कि एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को अपने मन की सुनाना चाहता है परंतु सत्य यह है कि कवि ने स्त्री के हृदय की विवशता, अपेक्षा और आग्रह की ओर समाज का ध्यान खींचने का प्रयास किया है। एक कविता के आते आर्तनाद को थोड़ा सुनने की मानसिकता से सुना जाए, तो वह हमारी मानसिकता के कुरूप चेहरे को दिखती है। वह कविता ‘बड़े उम्र की कुंआरी लड़की’ के प्रति हमारे नजरिए को बेपर्दा कर देती है। सुदर्शन की कविताएं हमें विवश करती हैं कि हम स्वयं को स्त्री के स्थान पर रखें और फिर दुनिया को देखें, प्रेम को देखें, खुद को भी देखें।
सुदर्शन की कविताओं से होकर जब हम गुजरते हैं तो आहिस्ता-आहिस्ता यह बात ध्यान आती चली जाती है कि उनकी कविताएं पहाड़ से निकली किसी नदी की तरह कुछ दूर तक सरपट भागती दिखती हैं लेकिन आगे उनके प्रवाह में धैर्य है और गंभीरता है। एक दार्शनिक की भाँति वे अपनी एक कविता में ‘प्रेम की उम्र’ बता रहे होते हैं- “प्रेम की उम्र इतनी होनी चाहिए कि जब गीली रेत पर, खींची लकीर की तरह, चेहरे पर झुर्रियां उभर आएं”। मेरे मत से यहाँ उनका यह कहने का अभिप्राय हो सकता है कि प्रेम के लिए परिपक्वता चाहिए। जब आपके पास वरिष्ठों-सा अनुभव हो, तब आप प्रेम कर सकते हैं। सही भी है, हम देखते भी है कि अपरिपक्व युवा जब प्रेम करते हैं, तब कई बार उसके कितने भयावह परिणाम हमारे सामने आते हैं। इसी कविता में एक बार फिर कवि अपनी प्रेयसी को कहता है कि हमारे प्रेम की उम्र आखिरी सफर तक होनी चाहिए। सुदर्शन की प्रेम कविताओं की इस पोटली में ‘इंतजार’ भी है, ‘ख्याल प्रेम का’ और ‘अनकही ख्वाहिश’ भी है। शब्द-शब्द ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने अपने इस संग्रह में खुलकर ‘बात दिल की’ की है। ‘मन की बात’ कही है। अपनी कविताओं से वे बार-बार ‘प्रेम का संदेश’ देने का जतन कर रहे हैं। कह रहे हैं कि ‘जिन्दगी और तुम्हारा प्रेम’ हमारा एक ‘पवित्र रिश्ता’ है। आखिर में कवि सुदर्शन ‘बात उन दिनों की’ कहते हुए हर किसी को उसके जीवन के प्रेम और उसके कोमल अहसास की ‘यादें’ याद दिला ही देते हैं। विश्वास है कि सुदर्शन का यह काव्य संग्रह पाठकों का प्रेम प्राप्त करेगा।
(समीक्षक, साहित्यकार एवं कवि हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।)
काव्य संग्रह : सुन रही हो न तुम…
कवि : सुदर्शन व्यास
कविताएं : 54
पृष्ठ : 96
मूल्य : ₹ 200/-
प्रकाशक : लोक प्रकाशन
Comments