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लोक बोलियों पर लिखी गई किताबों की मांग बढ़ रही

वीथिका            Feb 18, 2024


मल्हार मीडिया भोपाल।

मध्य प्रदेश की बोलियों के इतिहास पर लिखी गईं किताबों की आजकल युवाओं में भारी मांग है। इसके पीछे कारण नई पीढ़ी में अपनी जड़ों से जुड़ने की ललक और लोक साहित्य तथा लोक बोलियों से जुड़े प्रश्नों को सिविल सेवा सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल करना है।

इसके साथ लोक साहित्य व लोक बोलियों पर आधारित पुस्तकों की मांग भी बढ़ गई है। इनमें मालवी, निमाड़ी, बुंदेली और बघेली का इतिहास शामिल है, जिनका प्रकाशन मप्र साहित्य अकादमी ने किया है।

प्रदेश में मालवी, निमाड़ी, बुंदेली और बघेली आंचलिक बोलियां हैं जो क्रमश: मप्र के उज्जैन, नीमच, खंडवा, खरगोन, भोपाल, ग्वालियर चंबल, रीवा- सतना आदि जिलों में बोली जाती हैं। इन सभी बोलियों में मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा अब तक चार पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं, जबकि राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में गोंडी और भीली बोलियां बोली जाती हैं।

मप्र हिंदी साहित्य अकादमी के निदेशक डा विकास दवे ने बताया कि लोक साहित्य की मांग बढ़ने के पीछे का कारण लोक साहित्य और लोक बोलियों को सिविल सेवा सहित प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल करना है। पहले युवा पीढ़ी में इन किताबों को पढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे अपने घरों में भी अपनी बोली में बात नहीं करते थे, लेकिन अब जो छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उन्होंने इन पुस्तकों को आनलाइन खोजा। जब उन्हें यह प्रामाणिक लगीं तो वे किताबें खरीदने के लिए साहित्य अकादमी के कार्यालय में आने लगे।

डा दवे के मुताबिक इसके अलावा अकादमी द्वारा प्रकाशित आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी टंट्या मामा, जैन और महावीर दर्शन पर आधारित पुस्तक 'मध्यप्रदेश के रचनाकार' भी मांग में है। हमने अब तक टंट्या मामा पर लिखी किताब की लगभग एक लाख प्रतियां प्रकाशित की हैं। हमने जैन और महावीर दर्शन पर पुस्तक की लगभग 14 प्रतियां दोबारा छापी हैं। दवे ने कहा कि यह बहुत अच्छा है कि कम से कम युवा पीढ़ी किसी भी कारण से इन पुस्तकों में रुचि ले रही हैं।

 

 



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