संजय शेफर्ड।
कुछ लोग जुगनू की तरह होते हैं। थोड़े समय के लिए जिन्दगी में शामिल होते हैं। फिर अपनी रोशनी को समेट, कहीं दूर निकल जाते हैं।
कहां ? किसी को नहीं पता, फिर भी उनके होने का एक सकून होता है।
विश्वास नहीं होता तो कोई भी एक ऐसा चेहरा आप याद कीजिए जिसके साथ आपने कभी बहुत अच्छा वक़्त गुजारा हो, जिसके साथ आप खुलकर हंसे हों, जिसके साथ बैठकर आप एकांत में रोएं हों। याद कीजिए, याद करेंगे तो ऐसे दर्जनों भर लोग मिल जाएंगे।
हर किसी की जिन्दगी में कुछ ऐसे लोग होते हैं। जिनका ना तो आपको जिन्दगी में शामिल होना याद होगा, ना ही उनका जाना, फिर भी सैकड़ों स्मृतियां होंगी।
आप याद करेंगे तो लगेगा कि वह अभी भी आपके आसपास हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि वह जा चुके हैं।
और उनका यह जाना आपको बिल्कुल भी याद नहीं। क्यों ? पता है आपको ? क्योंकि भीड़ में नहीं और ना ही मझधार में बल्कि किसी नदी के मुहाने पर ले जाकर उन्होंने हमारा हाथ छोड़ा होता है।
उन्हें पता होता है कि यहां से आगे आप अकेले अपना रास्ता तय करना चाहते हैं। वह वहीं रुक गए और आपकी जिन्दगी आगे निकल आई।
वह खड़े—खड़े कुछ देर तक इंतजार भी किए होंगे। फिर आपको अपनी बनाई दुनिया में सहज और खोया देख उनके कदम एकदम से मुड़े होंगे वह दुबारा अपनी जिन्दगी में लौट आए होंगे।
सच कहूं तो खुशी भी एक तरह की लम्बी बेहोशी है दोस्त, इसका नशा कई बार मीठा तो कई बार बहुत ही ख़तरनाक होता है।
इस नशे में कई बार हम दुनिया जहां को याद कर लेते हैं, कई बार आसपास के लोगों तक को भी भुला देते हैं। कई बार तो इस नशे के टूटने से पहले दो-चार को छोड़कर हर कोई जा चुका होता है।
कभी आपने सोचा है कि वह दो चार कौन लोग होते हैं ? यदि नहीं तो कभी सोचना।
जिस रास्ते पर आप होते हैं, ठीक उसी समय में, उन्हीं रास्तों पर हजारों लोग चल रहे होते हैं। पर हजारों लाखों की इस भीड़ में बमुश्किल आपको दो-चार चेहरे नजर आते हैं।
सच कहूं तो अजनबियत में भी एक रिश्ता होता है और आंखें अपनों को पहचान लेती हैं।
आपको पता होता है कि आप चलते-चलते एक दिन थकेंगे और गिरेंगे तो आपको संभालने के लिए बगल में खड़े लोग नहीं बल्कि वह लोग होंगे जो आपसे कोसों दूर खड़े हैं।
वह दौड़े हुए आएंगे, आपके माथे पर हाथ रखेंगे और दूरियों की परवाह किए बगैर अपनी छाती से चिपका लेंगे।
उस समय आपको ना तो गैरों की अजनबियत याद आएगी और ना ही अपनों कि शिकवा, शिकायत और नाराजगी।
हम सबको रोने के लिए एक कंधा ही तो चाहिए होता है।
एक और बात बताऊं, आपको विश्वास भले ना हो- इंसान सबसे ज्यादा सहज अपने दुखों में होता है। क्योंकि उस वक़्त उसके पैर जमीन पर होते हैं।
एक- एक करके उसे वह हर एक चेहरा याद आता है जिसे कभी थामा, सहारा दिया होता, अपने बगल में बैठाकर बातें किया होता है।
मानाकि आपके पास धन- दौलत, सुख और समृद्धि है। आप अच्छी और खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं, लेकिन क्या आपके पास एक दो भी ऐसे लोग हैं जो आपका हाथ पकड़कर जबरदस्ती आपको अपने पास बैठाकर बातें करते हों ?
खुद को टटोलिए। जिन्दगी बड़े बड़े—वादों और दावों से नहीं बनती। छोटी- छोटी मामूली बातों और स्पर्शों से बनती है।
सबकुछ भुला देने के बावजूद अपनों का छूना याद रह जाता है।
छूने का एक अर्थ कंधे, पीठ और सर पर हाथ रखना होता है, बहुत सारे लोग बस इसलिए हमें याद रह जाते हैं क्योंकि हमें मालूम होता है कि आखिर मुलाकात में हमें छुआ कैसे था।
वह लोग जो चले गए आप अपने खाली उदास कंधे पर उनका हाथ आज भी महसूस कर सकते हैं।
वह अंगुलियां जिसने आपके टूटते हुए आंसुओं को पोछकर आपको संभलने का मौका दिया हो वह आज पंजा बनकर आपकी पीठ पर महसूस होती होंगी।
वह लोग जो आपके दोनों कंधों को अपने दोनों हाथों से लगभग झकझोरते हुए कहते थे कि जरा होश में आओ।
वही आपके अपने थे, जिन्होंने कोई बड़े वादे नहीं किए, बड़ी बातें नहीं कीं।
कोई समय और जगह नहीं चुनी, मौके- बेमौके आपको छुआ और प्यार किया। फिर चुपके से उठकर आपकी जिन्दगी से दूर चले गए। आपको कभी महसूस तक नहीं होने दिया कि आपसे नाराज़ हैं वो।
आखिर कहां हैं वे लोग ? हमें नहीं मालूम। बस, स्मृतियां शेष रह गईं हैं।
लेखक स्ट्रोलिंग इंडिया के संस्थापक संपादक हैं।
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