ममता मल्हार।
मांगने के लिये उठते हाथों से मेहनत करके कमाते हाथ ज्यादा खूबसूरत लगते हैं। अनुभव कहता है, जो इंसान यह बोल दे कि अकेले हैं कोई नहीं है हमारा उससे आगे कोई सवाल नहीं करना चाहिए
खैर कई दिनों से मन में था कि सहजन यानि मुनगा की देशी फल्ली मिल जाये। हाईब्रिड फल्ली लंबी और मोटी तो होती है पर कड़वी और बेस्वाद सी लगती है।
आज काम निपटाकर यूं ही पैदल चलने का मूड बना लिया कि ये अम्मा दिख गईं। इनके पास अपनी सोची हुई चीज़ मिल गई।
अम्मा को बस हाथ से इशारा किया तो दाम बोल पड़ीं औऱ बोलीं ले लो बेटा बौनी हो जाएगी। हमने कहा पूरी तौल दो।
लम्बे समय से देख रही हूं थोड़ी-थोड़ी 2-3 सब्जी रखकर बेचती हैं सड़क किनारे। ऐसे लोगों और ऐसी चीजों को देखकर महसूस होता है कि 100-200 कमाकर अपनी दो रोटी बनाकर खाने वालों का इस उम्र में जिंदा रहने का संघर्ष कितना बड़ा है।
अम्मा की एक ही लाईन इसे साबित भी करती है बोलीं बेटा दो रोटी तो पेट में खाना ही है। चेहरे की झुर्रियों और पनीली आंखों में जैसे पूरा जीवन, अनुभव संघर्ष औऱ जीने की जिजीविषा छलक पड़ती है एक ही पल में।
यह लिखते हुए बस यही लाईन याद आ रही है
एक लम्हे में सिमट आया हो सदियों का सफर
जिंदगी तेज बहुत तेज चली हो जैसे।
जब भी खुद के पास कोई कमी महसूस करके मन परेशान हो तो ऐसे लोगों को देखकर यह सोचना चाहिए कि आपके पास उससे भी बहुत ज्यादा है जो एक सामान्य जीवन जीने के लिये भी कईयों के लिए सपना ही है।
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