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माजेन:एक ये भी है झाडू जो मुफ्त में बनता है

वीथिका            Oct 13, 2022


संजय वोहरा।

कश्मीर के गांवों के घरों में एक ख़ास तरह का पौधा सूखता हुआ दिखाई देता है .

आमतौर पर धूप में और सूख जाने पर स्टोरनुमा किसी ऐसे स्थान पर ये पड़ा मिलता है जहां पानी न गिरता हो.

जड़ समेत उखाड़कर सुखाए गए इस पौधे को झाड़ू के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

यहां गांव में लोग इसे ' माजेन ' (majen ) कहते हैं.

यूं यहां पर अन्य तरह के झाडू भी इस्तेमाल होते हैं,  जो खुजूर के पत्तों से बनते हैं और वो भी जिनको हम उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में फूल झाड़ू कहते हैं.

सीख या तीलियों वाले झाडू भी यहां खूब इस्तेमाल होते है .

' माजेन ' के पौधे (झाडी ) का नाम तो कोई नहीं बता पाया, बस यहां के लोग इस ' माजेन कुल ' कहते हैं.

कश्मीरी में कुल का मतलब पौधा होता है. ' माजेन + कुल ' मतलब माजेन का पौधा.

शुरू में ये ये हरे रंग की झाड़ी की तरह होता है.  

पहले पहल मुझे तो ये कोई जड़ी बूटी सी लगी लेकिन बाद में असलियत सामने आई .

हरे के बाद इसकी टहनियां चमकदार खुबसूरत जामुनी रंग की हो जाती हैं और फिर धीरे धीरे धूप में भूरे रंग की.

ये मज़बूत और कम लचीली सीख के गुच्छे का रूप ले लेती है.

एक झाड़ी से आराम से एक झाड़ू यानि माजेन बन जाता है कुछ लोग दो झाड़ियों को एक साथ बांधकर थोड़ा मोटा झाड़ू बना लेते हैं .

नीता ने इस ' माजेन ' को पुरानी पड़ी कांगड़ी ( जिसमें कोयला जला कर हाथ तापते हैं ) में करीने से चीड के सूखे फूलों के साथ मिलाकर ऐसे रखा कि खिड़की का खाली पड़ा एक कौना सज गया .

कश्मीरी गांव की संस्कृति की एक विशेषता ये भी है कि यहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल करने की गुंजायश है.

हालांकि आधुनिकता की अंधी दौड़ में काफी लोग यहां भी पुराने तौर तरीकों और इस्तेमाल होने वाले घरेलू सामान को भुलाते जा रहे हैं .

 

 



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