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मल्हार मीडिया के साथ स्मृतियों में पुष्पेंद्र पाल सिंह

वीथिका            Mar 13, 2023


 

ममता यादव।

वो 2002 का वर्ष था जब ठीकठाक पत्रकारिता में आमद दर्ज होने लगी थी मेरी। 7 नम्बर के माखनलाल यूनिवर्सिटी पर खड़े एक नाम कानों में पड़ा पीपी सर। मेरी प्रतिक्रिया समझ वो लड़की बोली पुष्पेंद्र पाल सिंह सर।।हम लोग बाबा कहते हैं उन्हें। छात्रों की बहुत मदद करते हैं। फिर 2006 में सांध्यप्रकाश में एजुकेशन बीट मिली।।पुष्पेंद्र सर से पहली बार फोन पर बात हुई उन्होंने बुलाया आओ।

मैं बहुत संकोच में गई क्योंकि एक छोटे शहर में आमतौर पर तब टीचर्स को उतना स्टूडेंट फ्रेंडली नहीं पाया था। उन्होंने कुछ पीआरओ के नम्बर दिए। फिर जब भी मिले लगा नहीं कि हम छात्र हैं वो शिक्षक। हालाँकि मैं माखनलाल की छात्रा नहीं रही। 2015 हिंदी सम्मेलन तक मल्हार मीडिया ठीकठाक जगह बना चुका था। सर बगल से जा रहे थे मैंने देखा नमस्ते किया उत्साह से बोले आओ और अपनी नजर से इसे देखो कवर करो।

मल्हार मीडिया का एक साल होने पर प्रतिभाशाली दिव्यांग बच्चियों का सम्मान किया तो अतिथि सूची में सर का नाम भी प्राथमिकता से लिखा मिलने गए उम्मीद के विपरीत उन्होंने तुरंत सहमति दे दी। कार्यक्रम सफल रहा।

सागर के जूनियर पत्रकारों में मैं एक ऐसी अकेली पत्रकार रही कि मुझे सर के साथ 3-4 मंच साझा करने का मौका मिला। बुंदेलखंड पर सप्रे संग्रहालय ने बड़ा आयोजन किया था।।संचालन की जिम्मेदारी मुझे और सर को सौंपी गई। मंच पर वक्ता ज्यादा थे सो मैंने मेरी कुर्सी मंच के बगल में नीचे लगा ली। वैसे भी वरिष्ठतम लोगों के बगल में मैं नहीं बैठती क्योंकि यह हिमाकत कहलाती है।

पुष्पेंद्र सर आये और वहीं मेरी बगल में बैठ गए। 2018 में सागर के पत्रकारिता विभाग की एलुमनी मीट होने तक मुझे पता नहीं था कि सर हमारे यूनिवर्सिटी से बहुत-बहुत ज्यादा सीनियर हैं। इतने साल हो गए थे उन्होंने कभी जताया नहीं। एल्युमनी फंक्शन के बाद लायब्रेरी की सीढ़ियों पर हम लोग बैठे थे तो सर ने आकर कहा तुम जाना मत तुम्हारे घर चलना है तुम्हारी मम्मी से मिलना है।

पीपी सर तो पीपी सर ही ठहरे 10-12 जितने लोग थे सबको गाड़ी में भर लिया चलो ममता के यहां। उसके बाद मणिकांत सोनी जी के यहां गए 2020 में PRSI का महिला पत्रकारों को सम्मानित करने का कार्यक्रम तय हो रहा था। कि रात को सवा 12 बजे सर का फोन आया ममता तुमको उदिता सम्मान दे रहे हैं क्या कहती हो?

हालांकि ये जूनियर पत्रकारों का है पर मनोज ने बताया कि तीन साल हो गए अपनी ममता को तो दिया ही नहीं तो सर बोले मुझे लगा उसको दे दिया होगा घर की लड़की है।

सागर के कुछ लोगों में एक चर्चा हमेशा निकलकर आई पीपी सर के सामने भोपाल में अपनी ममता। उस दिन दो घटनाक्रम एक साथ घट रहे थे इत्तेफाक ही था कि एक सीनियर मंच पर ममता को सम्मानित कर रहे थे तो दूसरे कार्यक्रम में उसके पत्रकारीय आजीविका को लेकर मंच से एक सीनियर द्वारा कमेंट्स किये जा रहे थे।।राजधानी के सबसे वरिष्ठ और गरिमामय नाम ने उस वक्त उन्हें काउंटर किया। बात मुझतक भी आई।

माध्यम एक ऐसी जगह जो अरेरा हिल्स पर है जब कभी उस तरफ़ जाना हुआ तो सर को फोन लगा दिया। हाँ ममता आ जाओ। बेझिझक पहुंच गए। कहीं सर व्यस्त हुए तो हमने बोल दिया सर फलाने ऑफिस में हैं अभी आप फ्री हो जाएं तो कॉल कर लेना। और बकायदा पुष्पेंद्र सर का फोन आ जाता आ जाओ मैं आ गया हूँ।

एक बार माध्यम में ही एक सज्जन मुझसे कहते हैं कि आपने एक पोस्ट पर मुझे डाँटा था झगड़ा किया था मैंने कहा मैं तो आपको जानती भी नहीं। पुष्पेंद्र सर बोले कारण बताओ बिना कारण ममता किसी से नहीं बोलती तो उसने पोस्ट का जिक्र किया।।मैंने कहा सर ये पार्टी बनकर मुझे इनबॉक्स में धमका रहे थे वो बंदा चला गया।।ऐसे एक नहीं अनेक किस्से हैं सर के साथ। जिन्हें बयान करने में किताब भर जाए।

पिछले सप्ताह के पहले की बात है विधानसभा में सर मिले मैं भागती जा रही थी उन्होंने रोका आराम से कहाँ भाग रही हो मैंने कहा सर बाइट हो रही है तो बोले हां हां पहुंचो ऑफिस नहीं आई हो 2 साल से आओ मैंने कहा आती हूँ सर लेमन टी पीने।

और मन बना लिया था कि होली के बाद घर से लौटकर जाउंगी माध्यम।।पर होली की सुबह ही फोन घनघना रहा था मैं इग्नोर कर रही थी कि कोई समाचार वगैरह के लिये होगा मैं फिर सो गई कि देख लूंगी। उठकर व्हाट्सएप देखा सागर के एल्युमनी ग्रुप में देखा। यकीन नहीं हुआ। जितने मिसकॉल थे सबको लगाया खबर सच थी। इतनी आकस्मिक मौतें देख चुकी हूं कि अब लगता है जो भी ठीक इंसान हैं करीबी हैं उनसे मिलना कल पर न टाला जाए।

पुष्पेंद्र सर इन लाइनों की जीती जागती मिसाल थे

वो शख्स जो तुमसे झुककर मिला होगा

यकीनन उसका कद तुमसे बड़ा रहा होगा।

बड़ा आदमी कौन होता है वह जो आपको कभी भी किसी भी परिस्थिति में छोटा महसूस न करवाये।

सर अब कैसे कहूंगी लेमन टी ड्यू रही मेरी बचाकर रखना। हक से यह कितने लोगों से कह पाते हैं हम।

अब माध्यम की तरफ शायद पैर ही न मुड़ें।

और आखिर में

रहने को इस दयार में आता नहीं कोई

जैसे तुम गए हो ऐसे भी जाता नहीं कोई।

स्मृति ही शेष बचती है और कुछ नहीं।

 

 



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