अनिल कुमार।
मांगेराम शर्मा बीते पंद्रह दिन से बीमार था। मैं बीमार दोस्त को देखने की गरज से मांगेराम के घर पहुंचा। मांगे कमजोर दिख रहा था।
भाभीजी ने बताया, ”अभी रामभरोसे के पापा का इलाज इलाके के मशहूर डाक्टर मेवालाल तिवारी कर रहे हैं, लेकिन वह अब तक असली बीमारी नहीं पकड़ पाये हैं।
उनके इलाज के बाद भी मांगे को आराम नहीं मिल पा रहा है।” मेवालाल इलाके के जाने माने डाक्टर थे।
पंद्रह साल की कठोर कम्पाउन्डरी के बाद वह डाक्टर बने थे, जबकि उनके कंपटीटर डाक्टर ओसामा मात्र नौ साल की कम्पाउन्डरी का अनुभव था।
किडनी, लीवर, फेफड़ा, दिल और दिमाग को छोड़कर मेवालाल कोई भी ऑपरेशन कर सकते थे, जबकि उनके मुकाबले ओसामा को केवल पानी और ग्लूकोज चढ़ाने का अनुभव था।
मैंने आशंका जताई कि इतने अनुभवी डाक्टर से इलाज के बाद भी अगर मांगे को आराम नहीं मिल रहा है तो जरूरी इसको कोई विदेशी बीमारी है, लोकल होती तो डाक्टर मेवालाल जरूर पकड़ लेते।
मैंने मांगे से कहा कि चल तेरा इलाज सरकारी अस्पताल में कराते हैं।
मांगे मेरी बात सुनकर सहम गया। उसने कहा, ”सुन छबीले, मुझे नहीं कराना सरकारी अस्पताल में इलाज।
सरकारी अस्पताल में डाक्टर-कम्पाउन्डर यहां से वहां दौड़ाकर मार डालेंगे। कोई सुनेगा नहीं। दवाई भी ऐसा देंगे कि उसका लाभ हमको नहीं बीमारी को पहुंचेगा। जांच भी बाहर से कराना पड़ेगा।”
मुझे उसकी अज्ञानता पर आश्चर्य हुआ। मैंने उसका सामान्य ज्ञान बढ़ाने की गरज से कहा, ”किस दौर की बात कर रहा है तू मांगे? वो दौर गया जब सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं मिलता था, अब सरकारी अस्पताल पर छापा मारा जा चुका है। खुद मंत्रीजी ने अपने हाथों से छापा मारा है।
तू उनका सोशल मीडिया देखा कर, उनका वीडियो देखा कर। ये नहीं कर सकता तो कम से कम अखबार पढ़ा कर।
अखबार में सब अस्पताल ठीक हो चुके हैं। छापा मारकर मंत्री जी अस्पताल के स्टॉफ को चेतवानी भी देते हैं कि सब सुधर जाओ, ठीक हो जाओ। अब कोई नहीं सुधरे तो उनकी क्या गलती? उनके प्रयास में कोई कमी हो तो बता!”
भाभीजी मेरी बातें ध्यान से सुन रहीं थीं। उन्होंने भी अखबार पढ़ रखा था। फिर उन्होंने मांगे को बताया, ”छबीले भइया सही कह रहे हैं रामभरोसे के पापा।
मंत्री जी छापेमारी करने में दूसरों की तरह झुंड लेकर नहीं जाते हैं कि सब डाक्टर-कम्पाउन्डर जान जाये कि कोई छापा मारने आया है।
वह केवल अपने कैमरामैन को लेकर छापा मारने जाते हैं ताकि कोई भी तीसरा व्यक्ति ना जान सके कि वह छापेमारी करने आये थे। बहुत चोरी चुपके छापेमारी करते हैं।
एक बार तो उस सीएचसी पर भी छापेमारी कर आये, जहां केवल सफाईकर्मी नियुक्त था। उन्होंने सफाईकर्मी को ही चेतावनी दे डाली कि गरीब जनता का इलाज ठीक से होना चाहिए नहीं तो कठोर कार्रवाई होगी।
मंत्रीजी से डर का कमाल कि सफाईकर्मी अब सफाई छोड़कर बीमारों का इलाज करने में जुट गया है। मंत्री जी तो सरकारी अस्पतालों में सुधार के लिये इतने लालायित है कि एक डाक्टर-कम्पाउन्डर के अभाव में बंद पड़े माधोपुर पीएचसी पर भी छापा मार आये और बेहतर इलाज की चेतावनी दे डाली।
माधोपुर के कई बीमार तो बस उनके छापे और चेतावनी के असर से उठ खड़े हुए, उन्हें इलाज की जरूरत ही नहीं पड़ी।”
मांगे सरकारी अस्पताल में बदलाव की बात सुनकर भौच्चक हुआ ही था कि भाभीजी ने उसे और चौंकाते हुए बताया, ”रामभरोसे के पापा, छापेमारी का असर इतना हो गया है कि अब इलाज के बिना कोई वापस नहीं लौट रहा है।
डाक्टर तो डाक्टर मंत्रीजी के चेतावनी के डर से अस्पताल का चपरासी भी इलाज कर दे रहा है। मंत्री जी के चेतावनी का असर यह है कि डाक्टर ने अगर सीटी स्कैन लिख दिया और अस्पताल में स्कैन मशीन खराब है या उसको चलाने वाला नियुक्त नहीं है, तब भी मरीज को खाली हाथ नहीं लौटने दिया जा रहा है।
उसका एक्सरे, खून या बलगम जांच जरूर किया जा रहा है, और किसी कारणवश यह जांच भी संभव नहीं हो पा रहा है तो फिर मरीज का एलआईयू जांच कराया जा रहा है।”
पत्नी के मुंह से सरकारी अस्पताल के क्रियाकलाप में आये चमत्कारिक बदलाव की बात सुनकर मांगेराम को जोश आ गया और बीमारी की हालत में ही उसने जोर से नारा लगाया – वंदे… मातरम, भारत माता की जय, मंत्री जी जिंदाबाद, चिकित्सा सिस्टम अमर रहे। नारा लगाने में किडनी तक जोर लगा देने के चलते मांगे बेहोश हो गया, जिसके बाद हम उसे सरकारी अस्पताल लेकर आये हैं, सफाईकर्मी अब उसके किडनी के एलआईयू जांच की तैयारी करा रहा है।
लेखक उत्तरप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं
Comments